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उड़ी हमले के पीछे सिपाह-ए-सहाबा!
चिंता : पाकिस्तान में उभरा एक और खतरनाक आतंकी संगठन उत्तरी कश्मीर के उड़ी में रविवार की सुबह आतंकी हमले में भारतीय सेना के18 जवान शहीद हो गये. जिन चार आतंकियों ने कायराना तरीके से हमले को अंजाम दिया, उनके पाकिस्तान से जुड़े होने के साक्ष्य मिले हैं. बताया जाता है कि ये आतंकी पाक […]
चिंता : पाकिस्तान में उभरा एक और खतरनाक आतंकी संगठन
उत्तरी कश्मीर के उड़ी में रविवार की सुबह आतंकी हमले में भारतीय सेना के18 जवान शहीद हो गये. जिन चार आतंकियों ने कायराना तरीके से हमले को अंजाम दिया, उनके पाकिस्तान से जुड़े होने के साक्ष्य मिले हैं. बताया जाता है कि ये आतंकी पाक के सिपाह-ए-सहाबा से जुड़े थे. आखिर कैसा है यह संगठन, आइए जानें.
नियंत्रण रेखा से सटे उड़ी में सेना के 12 ब्रिगेड मुख्यालय में हमला के पीछे पाकिस्तान के या इसके समर्थित आतंकियों के हाथ होने के स्पष्ट प्रमाण मिल चुके हैं. हमले के बाद सेना ने मारे गये आतंकियों के पास से जो सामान वगैरह बरामद किये हैं, उससे पता चलता है कि हमलावर पूरी तैयारी से आये थे. उनके पास से पश्तो भाषा में लिखा हुआ दस्तावेज भी मिला है, जिसमें उनका प्लान था.
प्रारंभिक जांच में पता चला है कि ये आतंकी एक आतंकी संगठन सिपाह-ए-सहाबा पाकिस्तान (एसएसपी) से जुड़े हुए थे. दरअसल सिपाह-ए-सहाबा का मतलब होता है पैगंबर के सिपाही. यह पाकिस्तान के सुन्नी मुसलमानों का संगठन है.
कभी यह संगठन पाकिस्तान में राजनीतिक दल के रूप में सक्रिय था और उसने चुनाव में भी हिस्सेदारी की थी. अब इस संगठन ने एक नया फ्रंट संगठन अहले सुन्नत वल जमात के नाम से गठित कर लिया है. दुनिया के कुख्यात आतंकी मसूद अजहर के नेतृत्व वाले जैश-ए-मुहम्मद के साथ इस संगठन का दोस्ताना संबंध है.
हाल के दिनों में इसने मसूद के निर्देश पर काम करना शुरू किया है.1985 में हक नवाज झांगवी ने अंजुमन सिपाह-ए-सहाबा का गठन किया था. देवबंदी सुन्नी संगठन जमायत उल उलेमा इसलाम से टूट कर इसकी स्थापना हुई थी. मकसद पाकिस्तान में शिया समुदाय के बढ़ते प्रभाव को रोकना था. इसने अपना ध्येय 1979 में हुई ईरान की इसलामी क्रांति के बाद पाकिस्तान में शियाओं के प्रभाव को कम करना बताया था. 1990 में झांगवी की हत्या कर दी गयी, तो यह संगठन जिया-उर-रहमान फारूकी के हाथों में आ गयी. सिपाह-ए-सहाबा ने खुद को राजनीतिक दल के तौर पर स्थापित करना शुरू किया. चुनाव लड़ा और संसद व विधानसभा में कुछ सीटें भी जीतीं. 1993 में तो इसके नेता पंजाब में तत्कालीन गठबंधन सरकार में मंत्री भी रहे.
19 जनवरी, 1997 को लाहौर में हुए एक बम धमाके में फारूकी भी मारे गये. इसके बाद आजम तारिक ने सिपाह-ए-सहाबा की कमान संभाली. लेकिन, 2002 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने इस संगठन को आतंकी संगठन घोषित कर दिया,तो इसकी राजनीतिक गतिविधियां थम गयीं. इसके बाद इसने अहले सुन्नत वल जमात नाम से नया संगठन खड़ा कर लिया. हालांकि अभी भी इसे ‘सिपाह-ए-सहाबा’ ही बुलाया जाता है.
अक्तूबर, 2003 में आजम भी एक हमले में मारे गये. ब्रिटेन में 2001 से ही इस संगठन पर पाबंदी है.खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, सिपाह-ए-सहाबा के लोगों के पास अत्याधुनिक हथियार हैं और यह जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर के साथ तालमेल से काम करता है. यही नहीं, अक्सरहां शिया समुदाय के लोगों के साथ इसकी झड़पें होती हैं. करीब चार साल पहले इस संगठन के लोगों के साथ शिया समुदाय के लोगों की हिंसक लड़ाई में 11 लोग मारे गये थे.
मसूद अजहर ने अक्टूबर ने 2000 में कहा था कि सिपाह-ए-सहाबा जिहाद में जैश-ए-मुहम्मद के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहा है. मार्च 2012 में पाकिस्तान की सरकार ने सिपाह-ए-सहाबा पर फिर से पाबंदी लगा दी. लेकिन, नवंबर, 2014 में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने इस पर से पाबंदी हटा दी. हालांकि इसका फ्रंट संगठन अहले-सुन्नत-वल-जमात अभी भी प्रतिबंधित है.
इस संगठन के बारे में इसलामाबाद स्थित अमेरिकी दूतावास ने जो गोपनीय दस्तावेज जुटाये थे, उसमें कहा गया था कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के बड़े आतंकी है और तालिबान के तमाम आतंकी सिपाह-ए-सहाबा से हैं.
(इनपुट : न्यूज चैनल आज तक से साभार)
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