रियो डी जेनिरियो :हरियाणा सरकार ने साक्षी मलिक के रियो ओलंपिक में पहला पदक जीतने के बाद 2.5 करोड़ रुपये के इनाम की घोषणा की है. इसके साथ ही सरकार ने उन्हें सरकारी नौकरी देने का भी ऐलान किया है.भारत को रियो ओलंपिक 2016 में पहला मेडल दिलाने वाल साक्षी मलिक ने कहा कि यह उनके 12 साल की तपस्या का परिणाम है. क्वार्टर फाइनल में हारने के बाद साक्षी ने मेडल की उम्मीद छोड़ दी थी. उनके कोच ने उन्हें समझाया कि अभी भी उनके पास मेडल जीतने का अवसर है. अगर वह छह मुकाबले जीत जाती हैं तो मेडल पक्का हो जायेगा. साक्षी ने अपने आप को एकबार फिर मानसिक रूप से तैयार किया और लगातार जीतते हुए भारत के लिए कांस्य पदक हासिल कर ली. इस जीत की खुशी में साक्षी के पैत्रिक आवास के पास जमकर आतिशबाजी हुई और रंग गुलाल उड़ाये गये.
#FLASH Haryana Govt announces Rs 2.5 crore & a Govt job for #Rio2016 Bronze medallist wrestler #SakshiMalik
— ANI (@ANI) August 18, 2016
इतिहास रचने के पीछे भारतीय महिला पहलवान साक्षी मलिक अपने पिता सुखवीर सिंह और मां का बड़ा योगदान मानती हैं. हालांकि मां पहले नहीं चाहती थी कि उनकी बेटी खेल पर इतना ज्यादा ध्यान दे. मां का मानना था कि जो बच्चे खेल पर ज्यादा ध्यान देते हैं उनकी पढ़ाई पिछड़ जाती है. लेकिन साक्षी ने इस मिथक को तोड़ा और पढ़ाई में भी 70 प्रतिशत नंबरों के साथ अव्वल रही. साक्षी बताती हैं कि उन्होंने कुश्ती लड़ने की प्रेरणा अपने दादाजी से ली, जो अपने समय में पहलवान थे.
साक्षी के पिता सुखवीर मलिक बताते हैं कि हमारे घर के बाहर रात से ही पटाखे और रंग गुलाल खेला जा रहा है. रात से ही घर के अंदर-बाहर लोग इकट्ठा हो गये. आज के बाद देशवासियों के लिए साक्षी अनजान नहीं रहेगा. सुखवीर मलिक का कहना है कि जब साक्षी पैदा हुई तो मेरी पत्नी की जॉब लग गई. हमनें साक्षी को उसके दादा दादी के पास रहने भेज दिया. वह सात साल की होने तक अपने दादा दादी के पास रही. जब गांव के लोग मेरे पिता जी से मिलने आते थे तो पहलवान जी राम-राम कहते थे. तभी से उसने ठान लिया कि वो दादा की तरह पहलवान बनेगी. फिर हमने रोहतक के छोटू राम स्टेडियम में उसको ट्रेनिंग दिलाई.
साक्षी की मां कहती हैं कि मैं कभी नहीं चाहती थी कि बेटी पहलवान बने. समाज में अक्सर यही कहा जाता रहा कि पहलवानों में बुद्धि कम होती है, पढ़ाई में पिछड़ गई तो कॅरिअर कहां जाएगा. लेकिन खेल में 6 से 7 घंटे प्रैक्टिस करने के बाद भी साक्षी ने पढ़ाई में 70 फीसदी मार्क्स लेकर इस मिथक को तोड़ दिया. उसके कमरे में आज गोल्ड, सिल्वर व ब्रांज मेडल का ढेर लगा है. पहली बार 15 साल पहले साक्षी को उनकी मां खिलाड़ी बनाने के लिए छोटूराम स्टेडियम लेकर गई थी. वहां साक्षी ने अपने लिए खुद कुश्ती का चुनाव किया था.