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इराक में अगवा 39 भारतीय दो साल बाद भी असमंजस
कहां हैं अपहृत भारतीय? खूंखार आतंकी संगठन इसलामिक स्टेट द्वारा जून, 2014 में इराकी शहर मोसुल से अपहृत 39 भारतीयों का अब तक कोई सुराग नहीं मिल सका है. आतंकियों के चंगुल से बच निकले एक व्यक्ति का दावा है कि उसके सामने ही अन्य सभी की हत्या कर दी गयी है. सोमवार को राज्यसभा […]
कहां हैं अपहृत भारतीय?
खूंखार आतंकी संगठन इसलामिक स्टेट द्वारा जून, 2014 में इराकी शहर मोसुल से अपहृत 39 भारतीयों का अब तक कोई सुराग नहीं मिल सका है. आतंकियों के चंगुल से बच निकले एक व्यक्ति का दावा है कि उसके सामने ही अन्य सभी की हत्या कर दी गयी है.
सोमवार को राज्यसभा में विपक्ष ने इस मामले को उठाते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पर देश को गुमराह करने का आरोप लगाया. दूसरी ओर सरकार लगातार यह दावा करती रही है कि सभी अपहृत भारतीय जीवित हैं और उन्हें छुड़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं. अपहृत लोगों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल इराक भेजने की मांग भी उठायी गयी है. इस प्रकरण पर आधारित है आज का इन-डेप्थ…
भारत सरकार ने 17 जून, 2014 को भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से जानकारी दी थी कि इसलामिक स्टेट ने इराकी शहर मोसुल में 40 भारतीयों का अपहरण कर लिया है. यह घटना 15 जून को हुई थी. विदेश मंत्रालय के तत्कालीन प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने बताया था कि ये सभी लोग निर्माण मजदूर हैं और मोसुल के तारिक नूर अल हुदा कंपनी में कार्यरत थे.
मोसुल राजधानी बगदाद के बाद इराक का सबसे बड़ा शहर है. तब एक अन्य बड़े शहर तिकरित के एक अस्पताल में 46 भारतीय नर्सों के फंसे होने की चिंताजनक खबर भी चर्चा में थी, जिन्हें बाद में सुरक्षित निकाल लिया गया था. ये दोनों शहर इराक के बड़े हिस्से के साथ इसलामिक स्टेट के कब्जे में हैं. अपहृत लोगों को बचाने के क्रम में भारत सरकार ने एक विशेष दूत भी इराक रवाना किया था. हालांकि इसलामिक स्टेट या किसी संबंधित गिरोह की ओर से न तो फिरौती मांगी गयी थी और न ही भारतीय अधिकारियों से संपर्क बनाने की कोशिश की गयी थी.
विदेश मंत्रालय के तत्कालीन प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने यह भी कहा था कि 40 लोगों को बंधक बना कर कहां रखा गया है, इसकी भी कोई जानकारी नहीं मिल सकी है. इस घटना से पहले ही भारत ने अपने नागरिकों को इराक की यात्रा न करने तथा वहां मौजूद लोगों को इराक छोड़ देने की सलाह जारी कर दी गयी थी.
बच निकला हरजीत मसीह, किये सनसनीखेज दावे
अपहृत 40 लोगों में अधिकतर पंजाब के निवासी हैं, जबकि कुछ लोग बंगाल, बिहार और हिमाचल प्रदेश से हैं. जून, 2014 में अपहरण के कुछ समय बाद पंजाब के गुरदासपुर का रहनेवाला 25 वर्षीय हरजीत मसीह किसी तरह आतंकियों के चंगुल से बच निकला और भारत पहुंच गया. उसने मीडिया को बताया कि उसके सामने ही बाकी 39 को मार दिया गया. हालांकि सरकार और अपहृतों के परिवारजन उसकी बात को खारिज करते हैं.
मसीह अवैध आप्रवासन रैकेट चलाने और धोखाधड़ी के एक पुराने मामले में पंजाब पुलिस द्वारा इस वर्ष 30 जून को गिरफ्तार कर लिया गया है और फिलहाल जेल में है. पिछले साल मसीह ने यह भी आरोप लगाया था कि जुलाई, 2014 में वापस आने के बाद मोसुल की कहानी बताने के बाद सरकार ने उसे हिरासत में ले लिया था.
मसीह के अनुसार, 15 जून को अपहृत होने के चार-पांच दिन बाद इसलामिक स्टेट के आतंकी उन्हें एक पहाड़ी पर ले गये और कतार में खड़े होने को कहा. इसके बाद सभी को पीछे से गोली मार दी गयी. मसीह को पैर में गोली लगी और वह गिर पड़ा. वह आतंकियों के जाने तक मृतक की तरह पड़ा रहा. उसका कहना है कि उसकी आवाज पर किसी ने हरकत नहीं की और सभी खून में सने पड़े थे. मसीह की मानें, तो उनमें से छह बिहार से और दो बंगाल से थे. अन्य सभीपंजाब से थे.
वहां से भागने के बाद वह कुछ दिनों तक बांग्लादेशी युवकों के एक समूह के साथ रहा. फिर उसने इरबिल की एक निर्माण कंपनी से संपर्क किया, जिसके लिए वह काम करता था. उस कंपनी ने उसे भारतीय दूतावास पहुंचाया. मसीह के मुताबिक, भारत आने के बाद उसे ग्रेटर नोएडा और गुड़गांव में रखा गया. मसीह ने दावा किया था कि अधिकारियों ने अपहृत परिवारों से उसकी जान को खतरा होने की बात कही थी.
सरकार का रवैया
मई, 2015 में हरजीत मसीह के दावे पर प्रतिक्रिया देते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा था कि उन्हें मसीह की बात पर भरोसा नहीं है और वे अपहृतों की तलाश जारी रखेंगी. उन्होंने यह भी कहा था कि पहले उनके पास छह स्रोत थे, पर अब आठ हैं. आठवां सूत्र भरोसेमंद है. मसीह को छोड़, सभी अन्य सूत्र बताते हैं कि 39 भारतीय जीवित हैं.
सुषमा स्वराज लापता भारतीयों के परिवारों से अब तक कम-से-कम नौ बार मिल चुकी हैं. उन्होंने 28 नवंबर, 2014 को संसद में कहा था कि अपहृत लोगों को छुड़ाना और सुरक्षित घर लाना उनकी जिम्मेवारी है. यह घटना मोदी सरकार के लिए विदेश नीति से संबंधित पहला संकट थी और दुर्भाग्य से दो सालों के बाद भी इसका समाधान नहीं खोजा जा सका है. जानकारी की कमी और सरकार के अस्पष्ट रवैये से पीड़ित परिवारों की परेशानी बढ़ती ही जा रही है. हालांकि विदेश मंत्री और सरकार ने बार-बार विश्वास दिलाने की कोशिश करती रही है कि अपहृत भारतीय जीवित हैं.
अरब में अशांति, इसलामिक स्टेट का बढ़ता प्रभाव और भारत
पश्चिम एशिया के गृहयुद्ध और इसलामिक स्टेट के प्रादुर्भाव ने पूरी दुनिया पर बुरा असर डाला है. भारत भी इससे अछूता नहीं है. अरब देशों में लाखों भारतीय कार्यरत हैं. माना जाता है कि इराक में ही 18 हजार भारतीय हैं. बीते दो सालों में कई बार भारतीयों के अपहरण या काम छोड़ कर भागने की खबरें आ चुकी हैं.
संतोष की बात है कि अधिकतर मामलों में उन्हें सुरक्षित बचाया जा सका है. दूसरी चिंता भारत, खासकर दक्षिण के कुछ हिस्सों, में इसलामिक स्टेट के प्रभाव बढ़ने और दर्जनों युवाओं के उसमें शामिल होने से जुड़ी है. हालांकि कुछ महीनों से इराक और सीरिया में इसलामिक स्टेट को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा है, पर अभी भी दोनों देशों के बड़े हिस्से तथा लीबिया में उसकी मजबूती बनी हुई है.
पश्चिमी एशिया के युद्धों के कारण भारतीयों के रोजगार पर असर के साथ भारत के आर्थिक हितों को भी झटका लगा है. अफगानिस्तान में शांति के संकेतों के बीच आतंक के बढ़ने की घटनाएं भी इस स्थिति को बदतर बना सकती हैं. ऐसे में भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ सक्रिय योगदान कर शांति बहाली करने और आतंक पर लगाम कसने के प्रयासों में तेजी लाने का प्रयास करना चाहिए.
जीवित नहीं है अपहृत भारतीय, बांग्लादेशी कामगारों ने बताया
व र्ष 2014 में आइएस ने इराक के मोसुल इलाके में एशियाइ कामगारों का अपहरण कर लिया था. इसमें शफी और हसन नामक दो बांग्लादेशी भी थे, जो किसी तरह भागने में सफल रहे.
इराक में वे एक सुरक्षित इलाके में ठहरे थे, जहां भारतीय खबरिया चैनल के एक संवाददाता ने इनसे मुलाकात की. इन दोनों कामगारों ने उस समय कहा, ‘आइएस ने 53 कामगारों का अपहरण किया था, जिसमें 40 भारतीय थे. इसमें से हरजीत मसीह नामक भारतीय कामगार कुछ दिनों बाद उनके शिकंजे से छूटने में कामयाब रहा. अल जामिया पहुंच उसने अपनी पहचान बदलते हुए खुद को बांग्लादेशी कामगार अली बताया. हरजीत ने बताया कि अन्य सभी भारतीय कामगारों की हत्या कर दी गयी.
आइएस के आतंकियों को धोखे में रखने के लिए हरजीत रोजाना नमाज भी पढ़ता था. इरबिल जाते वक्त इराकी सेना ने जांच के लिए सभी को रोका और दूतावास से संपर्क किया. तब तक हरजीत हमारे साथ था. इराकी सेना ने हमारी फोटोग्राफ्स ली और हमें सरकारी वाहन में ले गये. इरबिल पहुंचने के बाद हमारा उससे संपर्क खत्म हो गया.’ अन्य बांग्लादेशी कामगारों ने भी उस समय यही बात कही थी.
कुर्द अधिकारियों ने भी जतायी है अपहृतों की हत्या की आशंका
कुर्द अधिकारियों ने आशंका जतायी है कि वर्ष 2014 में आइएस ने जिन 39 भारतीय कामगारों का अपहरण किया था, उनकी हत्या कर दी गयी है. दरअसल, पिछले वर्ष भारत सरकार ने कुर्द अधिकारियों को यह बताया था कि उनके परिवारवालों को विश्वसनीय सूत्रों से यह जानकारी मिली है कि उनके परिजन वहां जिंदा हैं. लिहाजा इसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए.
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक वरिष्ठ कुर्द अधिकारी ने इमेल से बताया कि उनकी सूचना के अनुसार मोसुल में अपहरण के कुछ ही दिनों बाद आइएस ने भारतीय कामगारों की हत्या कर दी और सभी को वहीं दफना दिया.इधर भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने कुर्द अधिकारियों से इसकी दोबारा जांच करने का आग्रह किया है.
विदेश मंत्रालय ने तीन अन्य पश्चिमी एशियाइ देशों को पत्र लिख कर इन कामगारों के बारे में बताने का आग्रह किया था. लेकिन, इन्होंने भी नकारात्मक जानकारी ही दी है. हालांकि, कोई भी देश अब तक इन लापता कामगारों के फोटोग्राफ नहीं मुहैया करा पाया है, ताकि यह मान लिया जाये कि इनकी हत्या हो चुकी है. वर्ष 2014 में कुर्द अधिकारियों ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया था कि आइएस द्वारा मोसुल इलाके में समूह में लोगों को दफनाने के सबूत मिले हैं, जिसमें भारतीय कामगार भी शामिल रहे होंगे.
जून, 2014 में रिसर्च एनालिसिस विंग (रॉ) ने हरजीत मसीह के जिंदा होने के सबूत सौंपे थे. बाद में कुछ इस तरह के सबूत भी सामने आये कि हरजीत के अलावा कई अन्य अपहृत भी अब तक जिंदा हैं. पंजाब के फतेहगढ़ चुरियन निवासी चरणजीत सिंह के भाई निशान सिंह ने दावा किया है कि 19 जून को उनकी भाई से बात हुई थी. उसने बताया कि आइएस उसे तब रिहा करेंगे, जब कोई भारतीय अधिकारी उन्हें लेने आयेगा.
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