दक्षा वैदकर
दीपा कर्माकर की तारीफ इन दिनों हर कोई कर रहा है और भला क्यों न करे? ओलिंपिक में 52 साल बाद कोई भारतीय जिम्नास्ट भाग ले रहा है, वह भी महिला. पुरुष जिम्नास्ट तो इससे पहले ओलिंपिक में भाग ले चुके हैं, लेकिन ऐसा करनेवाली दीपा पहली महिला हैं.
उन्होंने रियो ओलिंपिक में वॉल्ट के फाइनल में जगह बना ली है. इस तरह दीपा इतिहास रचने से मात्र एक कदम दूर हैं. आपको शायद पता न हो, लेकिन जब दीपा ने पहली बार किसी जिम्नास्टिक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था, तब उनके पास जूते भी नहीं थे.
प्रतियोगिता के लिए कॉस्ट्यूम भी उन्होंने किसी से उधार मांगा था, जो उन पर पूरी तरह से फिट भी नहीं हो रहा था. इतना ही नहीं, पहली बार कोच नंदी के पास जब दीपा आयी थीं, तो उनकी शारीरिक बनावट जिम्नास्टिक के लिए उपयुक्त नहीं थी. पैसे भी नहीं थे.
खुद दीपा ने अपने कौशल से कई चीजें तैयार कीं. बेकार हो चुके स्कूटर के सेकेंड हैंड पुर्जों से स्प्रिंगबोर्ड बनाया और वॉल्ट के लिए कई मैट को एक के ऊपर एक जमाया था. दीपा ने महज छह साल की उम्र से ही जिम्नास्टिक का अभ्यास शुरू कर दिया था. उनके लिए जिम्नास्टिक को अपनाना शुरू से ही आसान नहीं रहा, क्योंकि उनके तलवे फ्लैट थे, जो जिम्नास्टिक के लिए अच्छे नहीं माने जाते. इसके बावजूद दीपा ने कठिन परिश्रम किया.
दोस्तों, आज हम में से कई लोग, बच्चे, युवा किसी लक्ष्य को न पा सकने का दोष अपनी शारीरिक बनावट, बुद्धि, परिस्थितियों को देते हैं. कोई कहता है कि अगर मैं फलां एक्टर के घर पैदा होता, तो मुझे भी फिल्मों में मौका मिलता. कोई कहता है कि अगर मेरे पापा ने बड़े महंगे स्कूल में भेजा होता, तो मेरे नंबर भी अच्छे आते. मैं भी इंगलिश बोलता. ऐसे बच्चों व युवाओं को दीपा से सीख लेनी चाहिए.
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