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आर्थिक सुधारों की ओर बड़ा कदम, जीएसटी से हैं ढेरों उम्मीदें

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को बीते ढाई दशकों का सबसे बड़ा सुधार माना जा रहा है. व्यापक राजनीतिक सहमति के साथ संसद से इससे संबंधित 122वें संविधान संशोधन विधेयक के पारित हो जाने के बाद अब इसे राज्यों की विधानसभाओं से अनुमोदन लेना है. इससे पहले इस विधेयक को आठ अगस्त को संशोधनों के […]

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को बीते ढाई दशकों का सबसे बड़ा सुधार माना जा रहा है. व्यापक राजनीतिक सहमति के साथ संसद से इससे संबंधित 122वें संविधान संशोधन विधेयक के पारित हो जाने के बाद अब इसे राज्यों की विधानसभाओं से अनुमोदन लेना है. इससे पहले इस विधेयक को आठ अगस्त को संशोधनों के साथ लोकसभा में फिर से पेश किया जाना है, जहां इसे अनुमति मिलने की पूरी संभावना है, क्योंकि लोकसभा ने पहले इसके मूल रूप को पारित कर दिया था. सरकार की कोशिश है कि इसे आगामी वित्त वर्ष में लागू कर दिया जाये. जीएसटी व्यवस्था से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर एक नजर आज के संडे-इश्यू में…

केंद्रीय कर जो होंगे समाप्त

केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी

दवाइयों और प्रसाधन उत्पाद बनाने में लगनेवाले शुल्क

विशेष महत्व की वस्तुओं पर लगनेवाले अतिरिक्त शुल्क

वस्त्र एवं वस्त्र उत्पादों पर लगनेवाले अतिरिक्त शुल्क

कस्टम के अतिरिक्त और विशेष अतिरिक्त शुल्क

सर्विस टैक्स

सामानों और सेवाओं की आपूर्ति से संबंधित सेस और सरचार्ज

जीएसटी काउंसिल

राष्ट्रपति द्वारा गठित इस काउंसिल के अध्यक्ष केंद्रीय वित्त मंत्री होंगे, तथा राजस्व राज्य मंत्री और हर राज्य के वित्त या कराधान मंत्री या नामित मंत्री इसमें सदस्य होंगे.

इस काउंसिल में निर्णय तीन-चौथाई बहुमत से लिया जायेगा. केंद्र के पास एक-तिहाई और राज्यों के पास कुल-मिला कर दो-तिहाई मत होंगे. किसी निर्णय से उत्पन्न विवादों का निपटारा भी काउंसिल के द्वारा किया जायेगा.

जीएसटी का निर्धारण

संसद और राज्यों की विधानसभाओं को वस्तुओं और सेवाओं पर लगनेवाले कर को तय करने का अधिकार होगा. जीएसटी पर संसद का कानून राज्यों के कानून से ऊपर नहीं होगा. अंतरराज्यीय व्यापार और वाणिज्य तथा आयात पर कर लगाने और वसूलने का विशेषाधिकार केंद्र के पास होगा. इसे समेकित जीएसटी की संज्ञा दी जायेगी. केंद्र और राज्यों के बीच समेकित जीएसटी के बंटवारे का आधार केंद्रीय कानून होगा, जो जीएसटी काउंसिल के विचारों पर आधारित होगा.

जिन चीजों पर जीएसटी लागू नहीं होगा

मानवीय उपभोग के लिए अल्कोहल से बनी शराब, कच्चा पेट्रोलियम पदार्थ, हाइ स्पीड डीजल, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस और हवाई जहाज का ईंधन. इनके बारे में जीएसटी काउंसिल बाद में निर्णय कर सकती है.

तंबाकू और तंबाकू उत्पाद पर केंद्र एक्साइज ड्यूटी लागू कर सकता है.

जीएसटी व्यवस्था कैसे काम करेगी

प्रथम चरण- उत्पादन

मान लें कि कमीज बनानेवाला उत्पादक कपड़ा, बटन, धागा, सिलाई के औजार जैसे कच्चे माल खरीदता है जिनकी लागत 100 रुपये है. इस राशि में 10 रुपये का कर भी शामिल है. वह कमीज बनाने का खर्च 30 रुपया जोड़ता है. इस तरह तैयार माल की कीमत 130 रुपये हो जाती है. आउटपुट पर 10 फीसदी यानी 13 रुपये का कर जोड़ा जा सकता है, लेकिन जीएसटी में वह 10 रुपये के कर को पहले ही अदा कर चुका है, तो अब सिर्फ तीन रुपया ही जोड़ना है.

दूसरा चरण- थोक बिक्री

थोक खरीदार इस कमीज को 130 रुपये की दर से खरीदता है और उसमें वह 20 रुपये का मार्जिन जोड़ता है. अब 150 रुपये की कमीज पर 10 फीसदी के हिसाब से 15 रुपये का कर बनता है. अब वह 13 रुपये के पहले की कर

अदायगी को 15 रुपये के साथ समायोजित कर सकता है, और जीएसटी के तहत यहां पर दो रुपये की ही वास्तविक बढ़त होगी

तीसरा चरण- खुदरा बिक्री

खुदरा विक्रेता ने 150 रुपये की दर से कमीज खरीदी और उस पर 10 रुपये का मार्जिन रखा. इस 160 रुपये पर 10 फीसदी की दर से 16 रुपया कर बनता है, लेकिन इसमें वह 15 रुपये की अदायगी को समायोजित कर देगा और अब सिर्फ एक रुपये की वृद्धि होगी. इस तरह इस पूरे सिलसिले में कुल जीएसटी कर 10+3+2+1 यानी 16 रुपये बैठता है.

बिना जीएसटी के कमीज का हिसाब

मौजूदा कराधान प्रणाली में ‘कर के ऊपर कर’ का बोझ है. उदाहरण के लिए, दस रुपये कर के साथ 100 रुपये में कमीज के लिए कच्चा माल खरीदा गया. तीस रुपये के वैल्यू एडिशन और 13 रुपये कर के साथ कमीज थोक विक्रेता को 143 रुपये में बेची गयी. इसका मतलब यह हुआ कि 10 रुपये के पहले कर पर भी फिर से कर दिया गया. थोक विक्रेता इसके ऊपर 20 रुपये जोड़ता है और 10 फीसदी कर के साथ कमीज की कीमत 179.30 रुपये हो जाती है. खुदरा विक्रेता इसे 208.23 रुपये में बेचेगा, जिसमें उसका मार्जिन 10 रुपया और 18.93 रुपये का कर जुड़ा हुआ है. इस पूरी प्रक्रिया में कर की कुल राशि 58.23 रुपये है. उपभोक्ता को कुल 208.23 रुपये अदा करने पड़ते हैं.

कर संग्रह में बढ़ोतरी- चूंकि जीएसटी के तहत किसी वस्तु की बिक्री पर कर नहीं चुकाने पर पहले की कर अदायगी का हिसाब नहीं जुड़ेगा, और खरीदारी भी ऐसी जगह से करनी होगी, जिसने पहले कर अदा किया हो, इससे कर-संग्रह के बढ़ने की आशा है. इससे भूमिगत लेन-देन पर अंकुश लगेगा और हिसाब-किताब में पारदर्शिता आयेगी. कर की दरों में कमी- अभी करों पर भी कर देने की व्यवस्था है तथा कम वस्तुओं पर अधिक कर है. जीएसटी में सिर्फ वैल्यू एडिशन पर कर लगेगा, जो बहुत कम होगा तथा अधिक वस्तुओं पर कम कर का तंत्र बनेगा.

आसान नहीं है लागू करने की राह

संसद के बाद जीएसटी विधेयक को राज्यों की विधानसभाओं में पारित होना है तथा कानून में बदलने के लिए इसे 31 में कम-से-कम 15 विधानसभाओं की मंजूरी चाहिए. ऐसे देश में जहां भविष्य बीते हुए कल की तरह ही अनिश्चित है, वहां घटनाओं के आगे अवरोधों का आ जाना कोई असामान्य बात नहीं है. अभी और 2017 के मध्य तक कुछ राज्यों में चुनाव हैं और उनके परिणाम राष्ट्रीय मानस को सुधार के बजाय पीछे की ओर धकेल सकते हैं. तमिलनाडु ने राज्य के अधिकार में दखल और संघीय ढांचे के प्रतिकूल होने के तर्क के आधार पर जीएसटी का विरोध कर दिया है. दो राज्यों में सरकार चला रही मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रमुख सीताराम येचुरी कुछ प्रावधानों पर अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं. देश के सबसे धनी मुंबई महानगरपालिका पर वर्षों तक नियंत्रण करनेवाली शिवसेना भी खुश नहीं है. पंजाब, गोवा और गुजरात में जीतनेवाली पार्टी के रूख पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा. इस विधेयक को क्षेत्रीय राष्ट्रवाद के चक्रव्यूह से होकर गुजरना बाकी है. देशभर में जीएसटी लागू करने का विचार 16 वर्ष से चल रहा है. हमारे देश में, जो उन देशों में है जहां सबसे अधिक ब्याज दर हैं और कर तथा सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का अनुपात कम है, इतने समय का नष्ट होना बड़ी बात है. इस देरी से पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है. अनुमान लगाया जा रहा है कि जीएसटी के लागू होने से जीडीपी में एक से 1.5 फीसदी की बढ़त हो सकती है. इस पर भी आम सहमति है कि इससे कर कम होंगे, कर वसूली बढ़ेगी तथा पारदर्शिता और सुगमता बढ़ने से भ्रष्टाचार कम होगा. पर यह भी है कि भारत की नौकरशाही प्रक्रिया को रोकने और अपने निहित स्वार्थों को साधने में बहुत सिद्धहस्त है. जीएसटी विधेयक एक पहल है और यह जरूरी नहीं है कि इससे बड़ी उपलब्धियां हासिल ही हो जायेंगी. इसके लिए कई सारे उपाय करने होंगे. कई स्तरों पर व्यापक आर्थिक, प्रशासनिक और राजनीतिक सुधारों की जरूरत है. यह देखा जाना अभी बाकी है कि इनकी दिशा में क्या कदम उठाये जायेंगे.

मोहन गुरुस्वामी

अर्थशास्त्री

जीएसटी लागू होने के हैं अनेक फायदे

जीएसटी का पास होना हमारे देश के लिए एक ऐतिहासिक वक्त है. यह एक किस्म की नयी आजादी भी है, अलग-अलग तरह के कई टैक्सों से आजादी. वर्तमान में कोई 15 तरह के टैक्स वसूले जाते हैं, लेकिन जीएसटी के लागू होने के बाद सिर्फ एक ही टैक्स होगा. इसे ‘एक टैक्स प्रणाली’ के रूप में देखा जाना चाहिए. इससे कंपनियों, उद्योगों और व्यापारियों को बहुत फायदा होनेवाला है, क्योंकि इन सबको हर राज्य में अपना गोदाम नहीं रखना पड़ेगा. एक राज्य से दूसरे राज्य में सामान ले जाने और ले आने में लगनेवाले टैक्स से बचने के लिए कंपनियां अनेक राज्यों में (जिन-जिन राज्यों में अपना कारोबार करती हैं) अपना गोदाम रखती हैं और वहीं से राज्य भर में सामानों को पहुंचाती हैं. लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद उन्हें इससे आजादी मिल जायेगी और वे सिर्फ एक टैक्स देकर ही देश में कहीं भी अपना सामान पहुंचा सकती हैं.

जीएसटी से सिर्फ कंपनियों, उद्योगों और व्यापारियों को ही फायदा नहीं होगा, बल्कि आम जनता को भी फायदा होगा. मसलन, वर्तमान में एक वस्तु के निर्माण से लेकर उसे जनता तक पहुंचाने में उस वस्तु पर कुल 25-26 प्रतिशत तक टैक्स वसूला जाता है. यानी एक्साइज ड्यूटी, सेल टैक्स, सेंट्रल सेल टैक्स, स्टेट सेल टैक्स, अलग-अलग तरह के एंट्री टैक्स आदि सब मिला कर एक वस्तु पर 25-26 प्रतिशत तक टैक्स आयद कर दिया जाता है. इन सभी टैक्सों को वसूलने के दौरान अधिकारियों द्वारा बहुत सारी अनियमितताएं बरती जाती हैं, जिससे भ्रष्टाचार पनपता है, बढ़ता है. जीएसटी के तहत एक टैक्स प्रणाली के लागू हो जाने से ये सारे टैक्स खत्म हो जायेंगे और भ्रष्टाचार कम हो जायेगा, क्योंकि भ्रष्ट टैक्स इंस्पेक्टरों का दखल खत्म हो जायेगा और इनकी भ्रष्ट आमदनी चली जायेगी. भ्रष्टाचार कम होगा, तो जाहिर है इससे कीमतें कम होंगी और इसका सीधा फायदा आम आदमी काे ही मिलेगा. जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स की दरें 18 प्रतिशत तक होने का अनुमान है. इससे स्पष्ट है कि वर्तमान में जहां कई टैक्सों को मिला कर 25-26 प्रतिशत टैक्स देना पड़ता है, जीएसटी के लागू हो जाने से यह 18 प्रतिशत तक ही देना होगा. 26 से 18 प्रतिशत टैक्स यानी आठ प्रतिशत की टैक्स कटौती होगी, जिससे जाहिर है कि वस्तुओं की कीमतें कम हो जायेंगी. जहां तक सेवा कर (सर्विस टैक्स) का सवाल है, जो वर्तमान में साढ़े चौदह प्रतिशत है, तो टैक्स की दरें 18 प्रतिशत होने से सेवाओं की कीमतों में वृद्धि होगी. लेकिन, अनुमान है कि सेवाओं की कीमतों में यह वृद्धि भी ज्यादा दिन तक नहीं रहेगी.

जीएसटी के लागू होने के बाद जब भ्रष्टाचार में कमी आयेगी, तो इसका फायदा कई अन्य क्षेत्रों में भी देखने को मिलेगा. सबसे पहले तो देश में विदेशी निवेश (एफडीआइ) बढ़ेगा, क्योंकि भ्रष्ट टैक्स अधिकारियों से डर के कारण ही ज्यादातर विदेशी निवेशक यहां आना पसंद नहीं करते हैं. देश में जितना ही विदेश निवेश बढ़ेगा, उसी अनुपात से नौकरियां भी बढ़ेंगी. नौकरियां बढ़ने से लोगों के जीवन-स्तर में सुधार आयेगा और वे ज्यादा से ज्यादा सेवाओं का लाभ उठा सकेंगे, जिससे अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा. जीएसटी से सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा, क्योंकि कंपनियों, उद्योगों और व्यापारियों को 18 प्रतिशत टैक्स देना ही होगा. वर्तमान में राज्यों में कई टैक्सों की देनदारी में भ्रष्ट टैक्स अधिकारियों द्वारा घूसखोरी से सरकार के राजस्व को नुकसान होता है, लेकिन जीएसटी लागू होने से राजस्व को यह नुकसान नहीं होगा. सरकार का राजस्व बढ़ने से कई वित्तीय समस्याओं का समाधान हो जायेगा और सरकार नीतियों को लागू करने में पैसे खर्च करने से नहीं हिचकेगी. कुल मिला कर कहें, तो इस जीएसटी से हर स्तर पर फायदा नजर आ रहा है. जीएसटी से इस देश को चौतरफा फायदा होनेवाला है, लोगों को फायदा होगा, सरकार को फायदा होगा, कीमतें कम हो जायेंगी, एफडीआइ बढ़ेगी, कंपनियों-उद्योगाें को फायदा होगा, भ्रष्टाचार कम हो जायेगा, कालाधान पर लगाम लगेगी, नौकरियां बढ़ेंगी और अर्थव्यवस्था में सुधार आयेगा.

(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

गुरचरण दास

अर्थशास्त्री

कुछ लाभ, लेकिन शोर अधिक

जीएसटी विधेयक के राज्यसभा से मंजूरी मिल जाने के बाद मीडिया और आम चर्चा में ऐसा शोर मचाया गया है, मानो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था की तमाम मुश्किलों का हल मिल जायेगा. यह जरूर है कि अधिक कर वसूली जरूरी है और इसके लिए उचित कदम उठाये जाने चाहिए, पर क्या आर्थिक वृद्धि और अर्थव्यवस्था में बेहतरी को लेकर बेमानी उम्मीदों का शोर मचाना जायज है?

जीएसटी से सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के बढ़ने के दावे निराधार है. दूसरे देशों के अनुभव और आर्थिक तर्क इस उम्मीद को सही नहीं ठहराते हैं. यदि दीर्घकालिक तौर पर कर वसूली बेहतर भी होती है, तो भी जीडीपी का बढ़ना इस बात से तय होगा कि सरकार अपनी अतिरिक्त आमदनी को कहां और किस रूप में खर्च करती है. अर्थव्यवस्था की आर्थिक गतिविधियों में सरकार की परोक्ष भूमिका को देखते हुए इस बात की संभावना नहीं दिखायी पड़ती है कि सरकारी खर्च से आर्थिक उत्पादन बहुत अधिक बढ़ जायेगा. जहां तक निजी क्षेत्र के बढ़नेवाले लाभ और उसके पुनर्निवेश का मामला है, तो यह सब कॉरपोरेट जगत के इरादों पर निर्भर करेगा. हाल के अनुभव इस बात की ओर संकेत करते हैं कि अर्थव्यवस्था में अधिक बढ़त की संभावना नहीं होने पर वे अपने लाभ को रोके रखते हैं और उनका फिर से निवेश नहीं करते हैं.

दूसरी जरूरी बात यह है कि सबसे अधिक शोर मैनुफैक्चरर और सर्विस प्रोवाइडर समूहों की ओर से मचाया गया है. देशभर में एक समान कराधान से उन्हें आसानी हो जायेगी और अप्रत्यक्ष करों का बोझ कम होगा. लेकिन, आखिरी उपभोक्ता की चिंता किसी को नहीं है. जीसटी के उत्साही समर्थक दावा कर रहे हैं कि इससे दाम कम हो जायेंगे, लेकिन अन्य देशों के अनुभव इसे पुष्ट नहीं करते हैं. कुछ समय के लिए तो हर जगह इसके लागू होने के बाद कीमतें बढ़ी हैं. मुख्य रूप से ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इससे अधिक चीजों पर कर लगने लगता है और इसके दायरे में वे वस्तुएं और सेवाएं भी आ जाती हैं, जो पहले कर मुक्त थीं या उन पर कम कर था. ऐसे में उपभोक्ता को तुरंत मुद्रास्फीति की स्थिति का सामना करना पड़ता है, अगर सरकार ने दामों के नियंत्रण के लिए तुरंत हस्तक्षेप नहीं किया.

अप्रत्यक्ष करों के साथ विडंबना यह है कि बहुत-से कर ऐसे हैं, जिन्हें एक गरीब आदमी और एक धनी आदमी बराबर मात्रा में चुकाते हैं. ऐसे में ध्यान प्रत्यक्ष कराधान पर होना चाहिए. जीएसटी को लेकर अतिउत्साह अर्थव्यवस्था के लाभ-केंद्रित बनाने के सरकारी रवैये को ही परिलक्षित करता है. चौथी बात यह है कि जीएसटी का केंद्रीकरण होने से राज्यों के राजस्व जुटाने की संभावनाएं कुंद हो जायेंगी. निवेशकों को आकर्षित करने की उनकी क्षमता भी कमजोर होगी. यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि जो चीज अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी होगी, वह राजनीति और क्षेत्रीय समानता को नुकसान भी पहुंचा सकती है.

यह भी ध्यान में रखना होगा कि जीएसटी की दरों के बारे में स्पष्टता से अभी कुछ नहीं कहा जा रहा है. कई तरह की दरें कर प्रणाली के सरलीकृत करने के उद्देश्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं, और करों का छोटा दायरा भी परेशानी खड़ी कर सकता है. उदाहरण के लिए, मोबाइल के छोटे रिचार्ज के महंगे होने से गरीब उपभोक्ता नुकसान में पड़ सकता है. बहरहाल, देखना यह है कि जीएसटी काउंसिल करों का निर्धारण कैसे करती है और उसके तंत्र को किस तरह स्थापित करती है. जीएसटी से व्यापार सुगमता तो बेहतर होगी, पर अन्य प्रभावों पर भी सावधानी से ध्यान देने की जरूरत है.

अभिजीत मुखोपाध्याय

अर्थशास्त्री

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