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मायावती पर टिप्पणी भारी, दयाशंकर बीजेपी से बाहर

बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती के ख़िलाफ़ ‘अभद्र टिप्पणी’ करने वाले उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया है. समाचार एजेंसी पीटीआई का कहना है कि बीजेपी ने दयाशकंर सिंह को पार्टी से निकाल दिया है जिन्होंने मायावती के ख़िलाफ़ अभद्र शब्दों का प्रयोग किया था. राजनीतिक […]

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बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती के ख़िलाफ़ ‘अभद्र टिप्पणी’ करने वाले उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई का कहना है कि बीजेपी ने दयाशकंर सिंह को पार्टी से निकाल दिया है जिन्होंने मायावती के ख़िलाफ़ अभद्र शब्दों का प्रयोग किया था.

राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि जिस तरह मायावती के ख़िलाफ़ दयाशंकर सिंह ने अपशब्द कहे, उससे पार्टी को काफ़ी नुकसान होगा.

विश्लेषकों का मानना है कि अगर दयाशंकर सिंह मायावती पर केवल भ्रष्टाचार के आरोप लगाते तो बात इतनी नहीं बिगड़ती.

हाल ही में जिन नेताओं ने बसपा छोड़ी उन्होंने मायावती पर टिकट बेचने के आरोप लगाए थे.

वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान का कहना है कि हाल में कुछ बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने से मायावती को जो धक्का लगा था उसके बाद ये मुद्दा किसी संजीवनी से कम नहीं होगा.

पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान की राय –

इन्होंने जिस तरह की अभद्रता अपने बयान में दिखाई उससे तो लाज़मी है कि हर एक को आपत्ति होगी.

मायावती के लिए तो ये बहुत बड़ा मौक़ा साबित हो गया.

मायावती इस वक्त बहुत हताश थीं क्योंकि उनकी पार्टी के दो नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और आर के चौधरी ने पार्टी छोड़ दी थी.

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दयाशंकर सिंह के बयान वाली घटना से मायावती को नई ऊर्जा मिल गई है.

जिस तरह से उन्होंने संसद में मामले को उठाया और जिस तरह से उन्होंने सरेआम धमकी भी दी कि इस मामले को लेकर पार्टी कार्यकर्ता सड़कों पर उतर सकते हैं वो इस बात के सबूत हैं.

इसके विरोध में लखनऊ में प्रदर्शन भी होने वाला है.

जो दूसरी राजनीतिक पार्टियां इस मामले में बोल रहे हैं उनका भी नज़रिया साफ़ है.

दलित वोट के लिए उत्तर प्रदेश में होड़ लगी हुई है, चाहे वो भाजपा हो, समाजवादी पार्टी हो या कांग्रेस हो. बसपा का तो ख़ैर वोट बैंक ही यही है.

जिस तरह से दूसरी राजनीतिक पार्टियों के बयान आए हैं उससे काफी हलचल हो गई है. इसमें वोट की भी राजनीति है.

यही कारण है कि भाजपा को मजबूरन दयाशंकर सिंह के खिलाफ़ कार्रवाई भी करनी पड़ी.

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दयाशंकर सिंह जैसे लोग हर राजनीतिक पार्टी में मौजूद हैं.

वो सोचते हैं कि ऐसे बयानों से उनको बढ़ावा मिल जाएगा और वो लाइमलाइट में आ जाएंगे और पार्टी में प्रमुखता मिलेगी.

कई ऐसे उदाहरण हैं जहां लोगों ने इस तरह की भाषा शैली का प्रयोग करके पार्टी के अंदर प्रमुखता पाई है.

भाजपा जिस तरीक़े से दलित वोटरों को रिझाने की कोशिश में थी उसको झटका लगेगा.

मायावती यहीं खामोश नहीं होंगी. वो इस मुद्दे को आगे भी जीवित रखेंगी.

मायावती इस बात को महसूस कर रही थीं कि दूसरी पार्टियां ख़ासकर भाजपा उसके दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में हैं.

इससे भाजपा को शर्तिया नुक़सान होने की आशंका है.

(बीबीसी संवाददाता संदीप सोनी से बातचीत पर आधारित)

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