
बुरहान वानी की मौत और उसके बाद कश्मीर में उपजे हालात ने घाटी में रह रहे कई पंडितों और वापस आने के इच्छुक कश्मीरी पंडितों को पूरे मामले पर फिर से सोचने को मजबूर कर दिया है.
इनमें पंडित जगरनाथ भी हैं जो कई साल घाटी से दूर रहे, फिर वापस आए और दशक भर से यहीं बसे हैं.
मुझे याद है कश्मीरी पंडित जगरनाथ से वो मुलाक़ात जो 15 साल बाद 2007 में ‘अपने घर कश्मीर’ वापस लौटे थे. तबसे वह मट्टन, अनंतनाग में रह रह रहे हैं.
पंडित जगरनाथ हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद 1990 में कश्मीर छोड़ कर चले गए थे.
उन्होंने अपना जला हुआ घर फिर से बनाया और बसाया.
बीते साल मुलाक़ात के दौरन उन्होंने मुझसे कहा था, ”मैं 17 साल के बाद कश्मीर में चैन की नींद सो रहा हूँ. कश्मीर में मुझे बिलकुल डर नहीं लग रहा है. कश्मीर से बाहर मेरा दम घुट रहा था."

लेकिन ताज़ा हिंसा ने उन्हें फिर से ये सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि क्या वो घाटी में बने रहें!
कल यानी बुधवार 13 जुलाई को उन्होंने मुझे फ़ोन कर कहा, "मैं कश्मीर छोड़ने की तैयारी कर रहा हूँ. कुछ दिन पहले जब कश्मीर में हालात ख़राब हो गए तो लोगों के एक हूजूम ने हमारे घर पर पत्थर फेंके, इससे घर के शीशे टूट गए. मेरी बूढ़ी पत्नी के सिर में भी मामूली चोट आई."
पंडित जगरनाथ बार-बार उस दौर को याद करते रहते हैं जब वह मुसलमानों के घरों में जाकर सोते और मुसलमान उनके घर में.
उनके कश्मीर से भागने की तैयारी कोई अच्छा संकेत नहीं है.
इसका मतलब है कि कश्मीर के आम लोग जिस तरह कहते रहते हैं कि अगर पंडित वापस आना चाहते हैं तो वह मुसलमानों के साथ उस तरह रहें, जिस तरह वो पहले रहते थे, एक धुंधला ख्याल है, जिसे पुख़्ता करने की ज़रूरत है.

कश्मीर का आम नागरिक कश्मीर से विस्थापित हो चुके कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में अलग टाउनशिप में बसाने का सरकार के मंसूबे का विरोध कर रहा है.
कश्मीरी पंडितों को घाटी में वापस बसाने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार पिछले कई महीनों से कह रही है कि कश्मीर में वापस लाकर अलग टाउनशिप में पंडितों को बसाया जाएगा.
आम कश्मीरी सरकार के इस मंसूबे को राज्य और भारत सरकार की साज़िश मानते हैं.
वर्ष 1990 में कश्मीर में हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद कश्मीर में रहने वाले लाखों पंडित कश्मीर छोड़कर दूसरी जगह जा बसे, कुछ भारत से बाहर रहने लगे.

भारत और राज्य सरकार के इस अलग टाउनशिप के मंसूबे के ख़िलाफ़ ख़ुद वह पंडित भी हैं जो कश्मीर वापस लौटना चाहते हैं.
अभी पिछले महीने की बात है जब 26 साल बाद पंडित सबा लाल मंटो कश्मीर आकर श्रीनगर के डाउनटाउन में एक मुसलमान नज़ीर अहमद के घर में कई दिन रुके थे.
उन्होंने मुझसे कहा था, "यहाँ पंडित और मुसलमान एक ही ख़ून हैं. मुझे 26 साल बाद ऐसा लगा कि मैं अपने घर में सोया हूं."
सबा लाल और उनकी पत्नी भी कश्मीर में पंडितों को अलग बसाने के ख़िलाफ़ हैं.

एक कश्मीरी नौजवान डॉक्टर पंडित संदीप और एक कश्मीरी मुसलमान नज़ीर अहमद 15 परिवारों को पिछले महीने कश्मीर लाए थे. उनका मक़सद था कि पंडितों के दिलों से वह डर दूर करना था, जो कश्मीर वापस आने को लेकर उनके दिलों में है.
शायद ये उस बात का आगाज़ था कि कश्मीर से विस्थापित हुए पंडित फिर अपने घरों को वापस लौटें.
कुछ को छोड़कर पंडितों ने अपनी वापसी को लेकर कश्मीरी मुसलमानों से बड़ी उम्मीदें रखी हैं, और कई लोगों का मानना है कि इन उम्मीदों की हिफाज़त कश्मीर के मुसलमानों की ड्यूटी है.
वह पंडित जो कश्मीर में रह रहे हैं और कश्मीर को कभी छोड़ कर नहीं गए, वह कश्मीरी मुसलमानों से ख़फ़ा नहीं हैं, बल्कि सरकार से नाराज़ हैं. उनका आरोप है कि बीते सालों में सरकार ने उनकी बेहतरी के लिए कुछ नहीं किया.

कश्मीर के मुसलमान और अलगावादी नेता पिछले लंबे समय से कहते आ रहे हैं कि कश्मीरी पंडित कश्मीर का अहम हिस्सा हैं. वह 90 के दशक से पहले जैसे ही आकर कश्मीर में रहें.
लेकिन फिर पंडित जगरनाथ कश्मीर से वापस जाने की क्यों सोच रहे हैं?
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