
अमरीकी प्रशासन का कहना है कि राष्ट्रपति ओबामा के अब तक के शासनकाल में 64 से 116 आम नागरिक ड्रोन हमलों में मारे गए हैं.
ये संख्या पाकिस्तान, यमन और सोमालिया जैसे देशों की है जहां अमरीका सीधे तौर से जंग में नहीं शामिल है. इसमें अफ़गानिस्तान, इराक़ और सीरिया को नहीं शामिल किया गया है.
अमरीकी ड्रोन हमलों में मारे गए आम नागरिकों की ये संख्या मानवाधिकार संगठनों की तरफ़ से जारी संख्या के मुक़ाबले काफ़ी कम है लेकिन ये पहली बार है जब ओबामा प्रशासन ने औपचारिक रूप से ये जानकारी जारी की है.

अमरीकी ख़ुफ़िया संगठन डायरेक्टर नेशनल इंटेलिजेंस के अनुसार 2009 से 2015 के दिसंबर तक इन इलाक़ों में 473 ड्रोन हमले किए गए जिसमें लगभग 2500 चरमपंथी मारे गए.
इन आंकड़ों को जारी करने के साथ-साथ राष्ट्रपति ओबामा ने एक सरकारी आदेश जारी करते हुए ये भी कहा है कि अब हर साल ये आंकड़े जारी किए जाएं.
लेकिन अपने शासनकाल के आख़िरी कुछ महीनों में जारी उनके इस आदेश को अगला राष्ट्रपति बड़ी आसानी से बदल सकता है क्योंकि इसे कांग्रेस में पास करके क़ानून का दर्जा नहीं मिला है.

मानवाधिकार संगठनों ने राष्ट्रपति ओबामा के इस फ़ैसले का स्वागत किया है लेकिन साथ ही कहा है कि इसमें कोई विस्तृत जानकारी नहीं है और ऐसे में इनका संतोषजनक आकलन नहीं किया जा सकता.
प्रशासन ने इस बात को स्वीकार किया कि ग़ैर-सरकारी संगठनों के आकलन के अनुसार मारे गए आम नागरिकों की संख्या 200 से 900 तक की है. लेकिन उनका कहना था कि प्रशासन ने ऐसे तरीक़ों का इस्तेमाल किया है जिन्हें बरसों से आज़माया गया है और साथ ही उनके पास जो जानकारी के स्रोत हैं वो इन ग़ैर सरकारी संगठनों को उपलब्ध नहीं हैं.
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि बेहतर होगा कि ओबामा के सरकारी आदेश को कांग्रेस में पेश करके क़ानून का दर्जा दे दिया जाए जिससे अगला प्रशासन इसे रद्द नहीं कर सके.

राष्ट्रपति ओबामा ने ड्रोन हमलों को चरमपंथ के ख़िलाफ़ एक अहम हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है और कई बार इस बात के लिए उनकी आलोचना भी हुई है.
पाकिस्तान में ख़ासतौर से ड्रोन हमलों को लेकर ख़ासा विरोध रहा है, लोग सड़कों पर निकले हैं और सरकार ने हमेशा इनकी निंदा की है.
लेकिन वाशिंगटन में कई जानकारों का कहना है कि ज़्यादातर ड्रोन हमले पाकिस्तानी फ़ौज की सहमति से हुए हैं.
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