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अमेरिकी हवाई हमले में मारा गया ISIS चीफ अबु बकर अल बगदादी : IS न्यूज एजेंसी अल-अमाक

इंटरनेट डेस्क आइएसआइएस का प्रमुख सरगना अबु बकर अल बगदादी के मारे जाने की खबरें आ रही हैं. इस बार यह खबर आइएसआइएस की न्यूज एजेंसी अल-अमाक ने दी है. अल-अमाक न्यूज एजेंसी ने अपनी खबर में कहा है कि वह हाल में अमेरिका के नेतृत्व में हुए हवाई हमले में मारा गया है. उक्त […]

इंटरनेट डेस्क

आइएसआइएस का प्रमुख सरगना अबु बकर अल बगदादी के मारे जाने की खबरें आ रही हैं. इस बार यह खबर आइएसआइएस की न्यूज एजेंसी अल-अमाक ने दी है. अल-अमाक न्यूज एजेंसी ने अपनी खबर में कहा है कि वह हाल में अमेरिका के नेतृत्व में हुए हवाई हमले में मारा गया है. उक्त हमला गुरुवार को रमजान के पांचवें दिन किये गये थे. हालांकि यह पहला वाकया नहीं है, जब अबु बकर अल बगदादी के मारे जाने के खबर आयी है, इससे पहले भी उसके मारे जाने की खबरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में प्रमुखता से आयीं थीं. हालांकि विश्वस्त स्रोतों व अमेरिका के नेतृत्व वाली गंठबंधन सेना से अभी इसकी पुष्टि बाकी है. संभव है यह खबर फैला कर आइएसआइएस फिर से अपने सुप्रीम बॉस को बचाना का नया प्रोपेगेंडा कर रहा हो.

अल अमाक ने खबर दी है कि रक्का में हुए हवाई हमले के बाद रविवार को बगदादी की मौत हो गयी. उसने कहा है कि अमेरिका के नेतृत्व वाली गंठबंधन सेना के हमले में वह मारा गया है, लेकिन गंठबंधन सेना ने इस संबंध में कोई बयान अभी नहीं दिया है. बगदादी पर 25 मिलियन डॉलर यानी 160 करोड़ रुपये का इनाम घोषित है.

कौन है बगदादी, कैस था उसका प्रारंभिक जीवन?

बगदादी का जन्म वर्ष 1971 में इराक के समार्रा शहर में एक निम्न मध्यवर्गीय सुन्नी परिवार में हुआ था. धार्मिक आचार-व्यवहार के कारण समाज में उसके परिवार की बड़ी प्रतिष्ठा थी तथा उसके वंश का यह भी दावा था कि पैगंबर मोहम्मद उनके पूर्वज थे.
बचपन और किशोरावस्था में ही बगदादी का रूझान कुरान और धार्मिक कानूनों की तरफ था. उसने इसलामिक अध्ययन को ही अपनी शिक्षा के विषय के रूप में चुना. बगदादी को कई नामों से जाना जाता है, जैसे- अबु दुआ, अबु बकर अल-बगदादी अल-हुसैनी अल-कुरैशी, अमीर अल-मोमिमीन, खलीफा इब्राहिम, शेख बगदादी आदि. उसका असली नाम इब्राहिम अवाद इब्राहिम अल-बदरी है.

बगदादविश्वविद्यालयका छात्र रहा है

उसने 1996 में बगदाद विश्वविद्यालय से इसलामिक अध्ययन में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की तथा सद्दाम विश्वविद्यालय से 1999 में कुरान के अध्ययन में परास्नातक तथा 2007 में पीएचडी की उपाधि हासिल की.

कई रिपोर्टों के अनुसार उसकी शिक्षा बगदाद के इसलामिक विश्वविद्यालय या बगदाद विश्वविद्यालय में हुई. पढ़ाई के दौरान वह 2004 तक बगदाद के पश्चिमी छोर पर स्थित तोबची मोहल्ले में रहा जहां उसके साथ उसकी दो पत्नियां और छह बच्चे भी रहते थे. बगदादी स्थानीय मस्जिद में बच्चों को कुरान पढ़ना सिखाता था. स्थानीय स्तर पर वह फुटबॉल का भी लोकप्रिय खिलाड़ी था.

हिंसकजेहाद से जुड़ाव

स्नातक की पढ़ाई के दौरान बगदादी के एक रिश्तेदार ने उसे मुसलिम ब्रदरहुड नामक संस्था से जोड़ा जहां उसकी घनिष्ठता कुछ उग्र कट्टरपंथियों से हुई. उनके प्रभाव में बगदादी ने 2000 में सालाफी जेहादी विचारधारा को अपना लिया. वर्ष 2003 में इराक पर अमेरिकी नेतृत्व में हुए हमले के कुछ महीनों के भीतर ही एक उग्रवादी संगठन जैश-ए-अहल अल-सुन्ना व अल-जामा बनाने में सहयोगी बना.

फरवरी, 2004 में अमेरिकी सेना ने फलुजा में बगदादी को पकड़ लिया और वह कैंप बक्का में 10 महीनों तक हिरासत में रखा गया. इस दौरान वह पूरी तरह से धार्मिक मामलों, नमाज पढ़ने, शुक्रवार को भाषण देने और कैदियों को पढ़ाने के काम में लगा रहा.

अमेरिकी कैदखाने में जेहादियों के साथ उनके विरोधी सद्दाम हुसैन के समर्थक भी बंद थे. बगदादी ने अपने संवाद कौशल से उनमें से अनेक लोगों के साथ अच्छा संबंध कायम किया. दिसंबर, 2004 में रिहा होने के बाद उन लोगों से उसका संपर्क बना रहा. जेल से बाहर आने पर बगदादी ने इराक में सक्रिय अल-कायदा के एक प्रवक्ता से मिला. तब इस संगठन का प्रमुख जॉर्डन का नागरिक अबु मुसाब अल-जरकावी था.

इस संगठन ने बगदादी को प्रचार के लिए सीरिया की राजधानी दमिश्क भेजा. अगले साल यानी 2006 के जून महीने में एक अमेरिकी हवाई हमले में जरकावी की मौत हो गयी. इराकी अल कायदा के नये नेता मिस्री नागरिक अबु अयूब अल-मस्री ने संगठन का नाम बदल कर इसलामिक स्टेट इन इराक कर दिया, पर उसकी निष्ठा अल-कायदा के साथ बनी रही. इस संगठन को पहले मुजाहिद्दीन शुरा काउंसिल के नाम से जाना जाता था.

अपनी धार्मिक समझ और इसलामिक स्टेट बनानेवालों विदेशियों और इराकियों के बीच दूरी को पाटने के कौशल के कारण संगठन में बगदादी का कद उत्तरोत्तर ऊंचा होता गया. कुछ समय बाद उसे शरिया कमिटी का सुपरवाइजर तथा 11-सदस्यीय शुरा काउंसिल का सदस्य बनाया गया जिसकी जिम्मेवारी इसलामिक स्टेट के नये अमीर अबु उमर अल-बगदादी को सलाह देना था.

कुछ समय बाद उसे को-ऑर्डिनेशन कमेटी में भी शामिल कर लिया गया. इस कमेटी का काम इराक में सक्रिय कमांडरों के साथ संपर्क रखना था. वर्ष 2010 के अप्रैल महीने में इसलामिक स्टेट के संस्थापक और अमीर की मौतों के बाद शुरा काउंसिल ने अबु बकर अल-बगदादी को नया अमीर चुन लिया. बगदादी के सामने सबसे बड़ा लक्ष्य संगठन को फिर से खड़ा करना था जो अमेरिकी सेना के हमलों से तबाह हो चुका था.

इस्लामिक स्टेट का जन्म

सीरिया में 2011 में शुरू हुई अस्थिरता का फायदा उठाने के मकसद से बगदादी ने अपने एक सीरियाई सहयोगी को इसलामिक स्टेट की भूमिगत शाखा स्थापित करने का आदेश दिया जिसे बाद में अल-नुसरा फ्रंट के नाम से जाना गया. वर्ष 2011 के चार अक्तूबर को अमेरिकी विदेश विभाग ने बगदादी को वैश्विक आतंकी घोषित करते हुए उसके मारे जाने या गिरफ्तारी पर 10 मिलियन डॉलर का ईनाम रखा. इससे अधिक ईनाम सिर्फ अल-कायदा के प्रमुख अल-जवाहिरी के सर पर है. अल-जवाहिरी पर 25 मिलियन डॉलर का ईनाम है.

सीरिया में सक्रिय अल-नुसरा फ्रंट का नेता अबु मोहम्मद अल-जुलानी था. उसकी राय थी कि राष्ट्रपति बशर अल-असद के खिलाफ लड़ रहे सुन्नी विद्रोहियों का साथ दिया जाये. बगदादी इससे सहमत नहीं था और वह इसलामिक स्टेट की स्वतंत्र भूमिका के पक्ष में था. वर्ष 2013 के शुरू में बगदादी ने घोषणा की कि अल-नुसरा इसलामिक स्टेट इन इराक का हिस्सा था और उसे इसलामिक स्टेट का नाम बदल कर इसलामिक स्टेट इन इराक एंड द लेवांत कर दिया.

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