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तमिलनाडु यात्रा से उत्साहित हैं चंद्रशेखर

-हरिवंश- सत्ता में आने के बाद चंद्रशेखर 25 दिसंबर को पहली बार दक्षिण की यात्रा पर निकले. उनके साथ वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा, वाणिज्यमंत्री सुब्रह्मण्यम स्वामी, ओमप्रकाश चौटाला और कुछ वारिष्ठ अधिकारी थे. इस यात्रा का मकसद राजनीतिक था. तमिलनाडु की स्थिति का जायजा, शंकराचार्य से मिलना और नयी सरकार के प्रति लोगों की भावना से […]

-हरिवंश-

सत्ता में आने के बाद चंद्रशेखर 25 दिसंबर को पहली बार दक्षिण की यात्रा पर निकले. उनके साथ वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा, वाणिज्यमंत्री सुब्रह्मण्यम स्वामी, ओमप्रकाश चौटाला और कुछ वारिष्ठ अधिकारी थे. इस यात्रा का मकसद राजनीतिक था. तमिलनाडु की स्थिति का जायजा, शंकराचार्य से मिलना और नयी सरकार के प्रति लोगों की भावना से अवगत होना. मद्रास के मीनंबकम हवाई अड्डे पर भारतीय वायुसेना का विमान जैसे ही उतरा, दक्षिण की परंपरा में बड़ी-बड़ी मालाएं हाथों में लिये लोगों ने उनकी आगवानी की. उल्लेखनीय है कि चंद्रशेखर का सुरक्षा बंदोबस्त अत्यंत मामूली और सहज है. जानकार बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्रियों की तुलना में यह बीस फीसदी भी नहीं हैं.

हवाई अड्डे पर राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला, मुख्यमंत्री करूणानिधि, अन्नाद्रमुक की जयललिता और बड़े अधिकारी मौजूद थे. चार कांग्रेस सांसद थे. दूसरी ओर एक भारी भीड़ को पुलिस बलात प्रधानमंत्री के पास आने से रोक रही थी. इन लोगों से मिलने के बाद चंद्रशेखर खुद भीड़ में जा घुसे. पता चला कि कांग्रेस अध्यक्ष राममूर्ति को हवाई अड्डे पर न आने देने की योजना थी. डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी ने गृह सचिव को ऐसी चीज न होने देने की सख्त हिदायत दी थी.

चंद्रशेखर ने वहा कांग्रेस और जनता दल के मौजूद लोगों से उनकी बातें सुनीं. राज्य सरकार के खिलाफ प्रतिवेदन स्वीकार किया. लौटते समय पत्रकारों से बताया कि तमिलनाडु में राष्ट्रपति शासन लगाने का कोई इरादा नहीं है. पर उनकी सरकार अवश्य चाहती है कि तमिलनाडु में लिट्टे की आतंकवादी गतिविधियों पर पाबंदी लगे. राजनीतिक विरोधियों पर प्रताड़ना रूके और कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधरे. उनकी पूरी यात्रा के दौरान तमिल पत्रकार-राजनेता यही कयास लगाते रहे कि वह राज्य सरकार के प्रति कुछ सख्त बातें कहेंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा.

वहां से प्रधानमंत्री सीधे भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर से कांचीपीठ शंकर मठ गये. उनके साथ आये लोग भी भारतीय वायुसेना के दो अन्य हेलीकॉप्टरों से कांचीपुरम (कांचीपीठ को कांचीपुरम कहते हैं) रवाना हुए, दिन के लगभग 12 बजे कांचीपुरम में जब प्रधानमंत्री उतरे, तो वहां उनका भव्य स्वागत हुआ. वहां से उनका कारवां सीधे कांचीपुरम के पीठाधिपति (शंकराचार्य का आवास) के यहां रवाना हुआ. सड़क के दोनों ओर पुरुष-महिलाओं की अनुशासित भीड़ खड़ी रही. उत्तर भारत की तरह विक्षिप्त और अराजक स्थिति के बिल्कुल विपरीत. लोग छतों पर चढ़ें थे, हाथ हिला-हिलाकर स्वागत कर रहे थे.

कांचीपुरम में आदि शंकराचार्य ने पीठ स्थापित की थी. अब यह पीठ सघन बस्ती में है. साधारण बना हुआ, कोई तामझाम नहीं. उत्तर भारत के साधुओं-संतों के भव्य दिखाने के बिल्कुल उलटा. पर सात्विक और नैतिक वातावरण की धमक यहां मिलती है. फिलहाल इस मठ में परमाचार्य चंद्रशेखर सरस्वती रहते हैं. 97 वर्षीय. वह पीठाधिपति 55 वर्षीय जयेंद्र सरस्वती हैं, वह मठ का प्रबंध देखते हैं. दो वर्षों पूर्व वह तप करने अचानक कर्णाटक की पहाड़ियों में चले गये थे.

तब उनके इस कार्य को ”महाभिनिष्क्रमण” बताया गया था. वह अति सुलझे, विद्वान और जागरूक हैं. शंकराचार्य रह चुके हैं. स्वामी जयेंद्र तमिल भाषी हैं. शंकराचार्य विजनेंद्र सरस्वती की उम्र महज 20 वर्ष है. वह तेलुगू भाषी हैं. इस तरह यह मठ सचमुच तमिल, तेलुगू और कन्नड़ संस्कृतियों का समागम और भिन्नता में एकता का जीवंत उदाहरण है. प्रधानमंत्री ने बंद कमरे में इन तीनों शंकराचार्य से बातचीत की. उनकी बातचीत को बहुत आत्मीय और सौहार्दपूर्ण बताया गया. आधिकारिक तौर पर इस बातचीत को व्यक्तिगत बताया गया, पर पहले से ही वहां मौजूद भारी भीड़ में अयोध्या को लेकर अटकलबाजी हो रही थी. पूरे देश में इन तीनों संत पुरुषों की साख-प्रतिष्ठा अलग है. समझा जाता है कि प्रधानमंत्री ने इन लोगों से मौजूदा स्थिति पर चर्चा की.

उस आश्रम के एक स्वामी बताते हैं कि राज्य सत्ता को हमेशा मार्गदर्शन के लिए संतों-ॠषियों के पास आना पड़ता है, तभी नैतिकता की धुरी समाज में कायम रहती है. वह कहते हैं कि अयोध्या प्रसंग पर बच्चों-महिलाओं और बेकसूर लोगों का खून बहे, यह भला किसे पसंद है? वह बताते हैं कि कांचीपुरम धर्मनिरपेक्षता का ज्वलंत उदाहरण हैं. शंकराचार्य की पीठ से ठीक सटे वह एक बड़ी मसजिद दिखाते हैं उन्होंने बताया कि इस शहर में कभी दगा नहीं हुआ. अगर शंकराचार्य या पीठधिपति जयेंद्र सरस्वती या परमाचार्य चंद्रशेखर सरस्वती बाहर आते हैं, तो आसपास के सभी मुसलमान श्रद्धा से खड़े हो जाते हैं. वहां मौजूद अन्ना द्रमुक के एक कार्यकर्ता ने बताया कि यह सब उत्तरवालों का बखेड़ा है. हमारे यहां अयोध्या की अनगुंज नहीं है. उत्तरप्रदेश और बिहार की हिंसक राजनीति और अपसंस्कृति के खिलाफ लोगों के मन में स्पष्ट विक्षोभ पैदा हो रहा है.

प्रधानमंत्री मठ से लौटते समय कामाक्षी मंदिर भी गये. तब तक दोनों तरफ आठ किलोमीटर के रास्ते में भारी अनुशासित भीड़ जमा रही. वहां से प्रधानमंत्री सीधे हेलीकॉप्टर में मद्रास मीनांबकम हवाई अड्डे पर पहुंचे और ग्रिडी स्थित भव्य (अंगरेजों के शासन में प्रेसिडेंसी का प्रभारी यहां रहता था.) राजभवन गये. वहां पहले से ही राष्ट्रपति मौजूद थे. संभवतया यह पहला अवसर है, जब दिल्ली से बाहर राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री एक साथ मिले हों. सरकारी सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री ”कटसीं कॉल” में राष्ट्रपति से मिले. वहां जनता दल (स) कार्यकर्ताओं की भारी भीड़ थी. राजभवन के अहाते में पंत्तिबद्ध.

उत्तर भारत की राजनीतिक शैली और तेवर जिसने देखा है, उसके लिए यह अनुभव चमत्कृत करने जैसा हैं. राजभवन की आचारसंहिता के तहत न नारे, न शोर, बल्कि गरिमापूर्ण ढंग से कार्यों का निष्पादन. राजभवन के अधिकारी अति विनम्रता से मौजूद लोगों की देखभाल करते हैं. उत्तर भारत के अधिकारियों के दर्प और अहं के विपरीत. प्रधानमंत्री खुद राजभवन छोड़ने के पूर्व विजिटर बुक में यहां के कर्मचारियों-अधिकारियों की प्रशंसा में टिप्पणी लिखते हैं. राजभवन से प्रधानमंत्री का काफिला ग्रिंडी (मद्रास स्थित गिंरडी 100 वर्ष पुराने मेडिकल कॉलेज के लिए मशहूर है) में ही ”निनईवगम (बराबर याद रखें) कामराज” गया. कामराज का यह स्मारक चंद्रशेखर की स्मृतियों में प्रभावी ढंग से अंकित है. आपातकाल में जब वह जेल में बंद थे, तब कामराज की मृत्यु हो गयी. बड़े ही मार्मिक ढंग से कामराज को चंद्रशेखर ने अपनी जेल डायरी में स्मरण किया है. कामराज स्मारक पर शीर्ष पर चरखा का प्रतीक है. कांग्रेस का चुनाव चिह्न. कामराज स्मारक परिसर में बड़ी-बड़ी घासें उग आयी है.

इस स्मारक से चैंबर्स रोड़ होते हुए वह डॉ पीसी रेड्डी के घर गये. डॉ रेड्डी मशहूर अपोलो अस्पताल के संचालक हैं. वह मद्रास की तरह ही दिल्ली-बंबई में भी अपोलो अस्पताल बनवा रहे हैं. चंद्रशेखर के पुराने मित्र हैं. प्रति वर्ष उत्तर भारत से आनेवाले सैकड़ों रोगियों को वह इलाज के लिए डॉ रेड्डी के पास भेजते रहे हैं. वहां कुछ देर रहने के बाद प्रधानमंत्री पीएस गार्डेन स्थित जयललिता के घर ”वेदानिलयम” गये. करूणानिधि के कुछ वरिष्ठ खास लोगों ने चंद्रशेखर की विशेषता है कि वह सत्ता के नजरिये से संबंध को नहीं आंकते. हाल की दनकी कलकत्ता यात्रा के दौरान रमाप्रसाद गोयनका के घर यात्रा को लेकर काफी चर्चा हुई.

पर कम को पता है कि पुराने समाजवादी दल-अशोक मेहता आदि से आरपी गोयनका के पिता का बड़ा आत्मीय रिश्ता था. चंद्रशेखर से भी यह पहचान चार दशकों पुरानी है. अगर कोई उनसे इन यात्राओं पर सवाल करे, तो वह निश्चित जवाब देंगे कि प्रधानमंत्री पद के कारण चार दशकों पुराने संबंध भूल जाऊं (यह इस संवाददाता का कयास है). रेड्डी और जयललिता के घरों के बीच यात्रा के दौरान भी दोनों तरफ सड़कों पर वैसी ही भीड़ जमा थी. जयललिता वहां ‘पुरूचितलेवी’ (क्रांतिकारी नेत्री) के रूप में जानी जाती हैं. रामचंद्रन पुरूचि तलैवे कहलाते थे. उनके आवास पर भारी भीड़ जमा थी. उन्होंने बगैर शर्त चंद्रशेखर को समर्थन देने की घोषणा की.

28 दिसंबर को वह दिल्ली आ रही हैं. उनके भव्य भवन में मौजूद राजनीति व तमिलनाडु की स्थिति पर चर्चा हुई. बाहर जमा भारी भीड़ दोनों के जिंदाबाद के नारे लगाती रही. वहां से प्रधानमंत्री जयललिता के साथ हवाई अड्डे तक आये. प्रधानमंत्री की इस मद्रास यात्रा में खूबी रही कि सड़क के दूसरी ओर सामान्य ट्रैफिक रोजाना की तरह थी. तब भी पूरे मद्रास में भारी भीड़ जमा थी. शायद यही कारण था कि लौटते समय प्रधानमंत्री जब वायुसेना के विमान में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे, तो काफी उत्फुल्ल और प्रसन्न थे.

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