महासचिव, भाजपा
लोकसभा चुनाव में लोगों ने भ्रष्टाचार मुक्त शासन और भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था बनाने के लिए भाजपा को वोट दिया. हमारी सरकार की दो साल की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि हमने लोगों को भ्रष्टाचार मुक्त शासन दिया है और पारदर्शी व्यवस्था कायम की है.
इससे लोकतंत्र में देश के लोगों का विश्वास पुन: जागृत हुआ है. और सबसे बड़ी बात यह है कि हमलोगों ने देश को एक ऐसा प्रधानमंत्री दिया है, जो स्वयं निर्णय लेते हैं. इससे पहले जो सरकार थी, उसमें जवाबदेही, पारदर्शिता और निर्णय लेने की क्षमता का अभाव था. भ्रष्टाचार मुक्त निर्णय का तो घोर अभाव था. मौजूदा सरकार इन तीनों चीजों को लेकर आगे बढ़ रही है.
देश में लंबे समय से आर्थिक सशक्तीकरण का रास्ता बंद था. कांग्रेस ने 1977 में गरीबी हटाओ का नारा दिया था, लेकिन गरीबी नहीं हटी. गरीबों के आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में बढ़ना हमारी सरकार की उपलब्धि रही है. गरीबों को सशक्त करनेे की दिशा में सरकार चार बिंदु तय कर उस पर काम कर रही है.
पहला बिंदु, आर्थिक समावेशीकरण. समावेशीकरण का मतलब है कि जो वित्तीय संस्थाएं हैं, उसका लाभ गरीबों तक पहुंचाएं. उन संस्थाओं से गरीबों को लाभ मिले. सरकार की योजनाओं का लाभ लोगों को मिले, उसकी योजनाएं लोगों के पास पहुंचे. इसके लिए सबसे पहले जन-धन के अंतर्गत खाते खोले गये. दूसरी पहल हुई कि सरकारी धन में 14 हजार करोड़ रुपये की बचत कर उसका लाभ सीधे गरीबों तक पहुंचाया गया. इसके लिए सरकार आधार कानून लेकर आयी और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) को कानूनी रूप दिया गया. आर्थिक समावेशीकरण की दिशा में ये महत्वपूर्ण काम हुए.
दूसरा बिंदु, आर्थिक समावेशीकरण के साथ आर्थिक विकास भी होना चाहिए. आर्थिक विकास का सबसे बड़ा लाभ है रोजगार. आज ज्यादातर रोजगार मध्यम और असंगठित क्षेत्र में है. इसके लिए सरकार ने मुद्रा योजना शुरू की. साथ ही किसानों के लिए सरकार ने कृषि लोन को बढ़ा कर 9 लाख करोड़ कर दिया. उत्पादन से जुड़े 29 क्षेत्रों को ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के लिए खोला गया. रक्षा क्षेत्र और रेलवे में एफडीआइ को मंजूरी दी गयी.
एक बात और ध्यान देने की है कि आर्थिक समावेशीकरण और आर्थिक विकास कभी अकेले नहीं हो सकते. उसके लिए आर्थिक सुरक्षा की आवश्यकता होती है. आर्थिक सुरक्षा के लिए, सामाजिक सुरक्षा के लिए पेंशन और बीमा योजनाएं शुरू की गयीं. किसानों के लिए कृषक सुरक्षा योजना शुरू हुई. .ये योजनाएं पहले की सरकारों से अलग थीं. इन सब योजनाओं में कंटीन्यूटी यानी सततता है.
जब आप आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, आर्थिक विकास की बात करते हैं, तो इसमें सततता जरूरी है. विकास का लक्ष्य सततता से जुड़ा होना चाहिए. सततता के लिए आधाभूत ढांचे का विकास होना जरूरी है. इसीलिए मनरेगा को स्थायी परिसंपत्तियों के निर्माण से जोड़ा गया, प्रधानमंत्री सड़क योजना पर ध्यान दिया गया. रेलवे के आधुनिकीकरण पर जोर दिया गया, ताकि सततता बनी रहे. इस सबका सबसे ज्यादा फायदा युवाओं, महिलाओं और ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को होगा. दुनिया में जब वैश्विक मंदी छायी हुई है, सरकार ने आर्थिक विकास के लिए घरेलू डिमांड को बढ़ाया. सरकार ने कुछ लक्ष्य तय किये, जैसे- सभी गांव में बिजली, सभी बीपीएल परिवारों को गैस कनेक्शन, सभी गांव तक खाद्य सुरक्षा.
सरकार तय किये गये लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में बढ़ रही है. विकास के इन लक्ष्यों को आगे बढ़ाते हुए आयात-निर्यात में सुविधा के उपाय किये गये. पहले इसके लिए 23 तरह के फार्मेट होते थे, जिसे घटा कर तीन कर दिया. रजिस्ट्रेशन के लिए सर्टिफिकेट दिया, जिससे एक ही रजिस्ट्रेशन से वह अपना काम कर सकें.
असंगठित क्षेत्र में काम करनेवाले लोगों के लिए यूनिक अाइडेंडिटिफिकेशन नंबर दिया, जिससे उनके नौकरी बदलने के बाद भी उनकी राशि आसानी से ट्रांसफर हो सके. इस तरह मोदी सरकार ने ट्रांसपेरेंसी के साथ-साथ ट्रांसपेरेंट सिस्टम को आगे बढ़ाने का काम किया है.
दो साल की उपलब्धियों को आप देखेंगे, तो एक विकासोन्मुख सरकार और दूरस्थ क्षेत्र में पहुंचनेवाली शासन व्यवस्था की स्थापना हमने की है. इसके साथ ही इकोनॉमिक इनक्लूजन, इकोनॉमिक ग्रोथ, इकोनॉमिक सेक्युरिटी, इकोनॉमिक सस्टेनेबलिटी की स्थापना हमारी सरकार ने की है. कृषि क्षेत्र में भी काफी काम हुआ है. प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, फसल बीमा योजना आदि इस साल से लागू हुई है, जिसका लाभ अगले साल से किसानों को मिलना शुरू हो जायेगा.
बहुत सी योजनाएं दीर्घकालीन परिणाम और लक्ष्य को सामने रख कर बनायी गयी हैं. यह तय है कि हमारी सरकार ने जाे काम किये हैं, उसके सकारात्मक परिणाम सामने आयेंगे.
वादाखिलाफी है दो साल की सबसे बड़ी उपलब्धि
पवन के वर्मा
राज्यसभा सांसद जदयू
नरेंद्र मोदी सरकार अपने दो साल के कार्यकाल में कई मोर्चों पर असफल रही है. खासकर तीन कारणों से इसे असफल कहा जा सकता है. पहला, लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने लोगों से कई बड़े वादे किये थे, लेकिन अब वादाखिलाफी कर रही है. मोदी ने किसानों को फसलों का लाभकारी मूल्य देने का वादा किया, विदेशों से कालाधन वापस लाने की बात कही, सालाना एक करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा किया, लेकिन सत्ता में आते ही वे अपने वादों से पलट गये. दूसरा, सरकार के दो साल के कामकाज के दौरान देश में सामाजिक अस्थिरता और घृणा का माहौल बना है और इससे सामाजिक शांति भंग हुई है. लव जेहाद, गौमांस विवाद आदि के जरिये एक समुदाय विशेष को निशाना बनाने की भरपूर कोशिशें हुईं. अफवाह के कारण दादरी में एक व्यक्ति को भीड़ ने मार दिया. इससे सामाजिक ताना-बाना कमजोर हुआ है.
तीसरा, देश की संवैधानिक संस्थाओं को अनैतिक तरीके से कमजोर करने की कोशिश की गयी. ऐसा लगता है कि यह सरकार सत्ता के नशे में चूर है. भाजपा में कभी हाईकमान कल्चर नहीं रहा है, लेकिन नयी भाजपा में केवल दो लोगों की बात सर्वोपरि है. इस सरकार की विदेश नीति स्पष्ट नहीं है. पाकिस्तान के साथ कभी बात होती है, तो कभी वार्ता को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है.
नेपाल, जो ऐतिहासिक तौर पर भारत का सबसे भरोसेमंद सहयोगी रहा है, आज सरकार की गलत नीतियों के कारण हमसे दूर हो गया है. चीन को लेकर भी स्पष्ट नीति नहीं है. सरकार सख्त कदम उठाने की बात करती है, लेकिन दबाव में अपने फैसले बदल लेती है. आज हमारी विदेश नीति और कूटनीति पर इवेंट मैनेजमेंट हावी हो गया है. प्रधानमंत्री के विदेश दौरों को खूब प्रचारित किया जाता है, लेकिन इन दौरों से क्या हासिल हुआ यह समझ से परे है.
आज देश में किसानों की हालत काफी दयनीय है. पिछले दो साल से सूखे के हालात हैं, लेकिन सरकार इस मामले पर असंवेदनशील बनी रही है. बजट में कृषि के लिए उचित आवंटन नहीं किया गया है.
यह 2005 में आवंटित राशि से भी कम है. सिंचाई के लिए भी उचित आवंटन नहीं किया गया. सरकार के पास मौका था कि मौजूदा हालात को देखते हुए कृषि क्षेत्र के विकास के लिए ठोस पहल करे, लेकिन यह मौका गंवा दिया गया. आज हर दो में से एक किसान पर 41 हजार रुपये का कर्ज है. बैंकिंग सेक्टर की हालत खराब है. ऐसे में किसानों को कर्ज देनेवाला कोई नहीं है.
देश के विश्वविद्यालयों में एक खास विचारधारा को थोपने की कोशिश की जा रही है, इससे शिक्षण संस्थानों में तनाव का माहौल है. आज हर राज्य में आरक्षण के लिए आंदोलन हो रहे हैं. हरियाणा में जाट, गुजरात में पाटीदार और आंध्र प्रदेश में कापू समुदाय आरक्षण की मांग को लेकर हिंसक आंदोलन कर रहा है. इसकी वजह यह है कि देश में नौकरियों की संख्या सीमित हो गयी है.
ऐसे में हर समुदाय आरक्षण की मांग कर रहा है, ताकि उसे सरकारी नौकरियां मिल सके. कुल मिला कर, लोगों ने जिन उम्मीदों के आधार पर इस सरकार को चुना, वे उम्मीदें पूरी होने की संभावना नहीं दिख रही है. आज देश में गरीबों की हालत सबसे खराब है. इस तरह आर्थिक, सामाजिक और विदेश नीति- सभी मोरचे पर यह सरकार असफल साबित हुई है.
उजाले की दस्तक से निखरता भारत
तरुण विजय
राज्यसभा सांसद
भाजपा
जैसे रेगिस्तान की तपती दुपहरी में अचानक मरुधान मिले, वैसे ही भ्रष्टाचार और नीतिगत जड़ता से ग्रस्त भारत को मिला 2014 का नया जनादेश- नरेंद्र दामोदर दास मोदी को भारत का प्रधानमंत्री बनाने का जनादेश. जिस सरकार का प्रारंभ ही ‘सबका साथ-सबका विकास’ के मंत्र से हुआ हो, स्वाभाविक ही था कि उसके शपथ ग्रहण में न केवल देश के कोने-कोने से हर वर्ग और प्रांत के श्रेष्ठ तपस्वी, साधक, विद्वान उपस्थित हुए, बल्कि सभी पड़ोसी देशों के राष्ट्राध्यक्ष और प्रधानमंत्री भी उत्साहपूर्वक शामिल हुए. विश्व ने चकित होकर, जबकि भारत के सवा अरब नागरिकों ने नवीन उत्साह और आह्लाद के साथ नवीन प्रभात देखा और देखा नवीन चुनौतियों का अंबार.
पहला कदम था- भारत के भविष्य में जनता के विश्वास को स्थापित करना. हां हम कर सकते हैंं- हम जीत सकते हैं- हम भ्रष्टाचार और ठहराव के अंधेरे को चीर कर विश्व में शक्तिशाली, सुरक्षित, समर्थ और सफल राष्ट्र के रूप में उभर सकते हैं, यह विश्वास. ‘हम सब एक हैं’- भारत के विकास के लिए एक साथ काम करेंगे’- यह था प्रधानमंत्री का प्रगति सूत्र.
पिछली सरकारों की तुलना में छोटा मंत्रिमंडल, दफ्तर में सबको समय पर आने की आदत तुरंत डालना, जनता के प्रति जवाबदेही और पारदर्शिता, ईमानदारी से कार्य को पूरा करना, प्रारंभिक पायदान की सफलताएं रहीं. कामकाज फिर होने लगा. देरी और द्वेषपूर्ण भ्रष्टता खत्म करने के लिए टेक्नोलॉजी का सहारा लिया गया. ऑनलाइन आवेदन होने लगे. महिला सशक्तीकरण और बाल विकास में अभूतपूर्व नये आयाम जुड़े. विदेशी निवेश में आसानी हुई. राजमार्ग निर्माण व नदी जलमार्गों में विश्व कीर्तिमान बने- दो किमी प्रतिदिन बननेवाली सड़कें 20 किमी बनने लगीं, लक्ष्य है 30 किलोमीटर प्रतिदिन. भारत ने विदेश नीति में प्रथम वरीयता अपने मित्र पड़ोसी देश को दी और नरेंद्र मोदी की पहली विदेश यात्रा भूटान की हुई.
जय पशुपतिनाथ के घोष के बीच प्रधानमंत्री जब काठमांडू पहुंचे, तो उन्होंने वहां की संसद में ‘युद्ध से बुद्ध’ की ओर चलने का आह्वान किया. न्यूयार्क में मेडिसन स्क्वायर से गूंजा ‘भारत माता की जय’ का गगनभेदी उद्घोष विश्व को अपनी ओर खींच गया, तो चीन में योग का प्रदर्शन चीनियों को एक नये आत्मविश्वासी भारत का परिचय दे गया. यह सब केवल वार्ताओं और सेल्फियों तक सीमित न था. अमेरिका से 20 हजार करोड़ रुपये के पूंजी निवेश, फ्रांस से नागरिक परमाणु सहयोग, जापान से ढांचागत निर्माण के क्षेत्र में अगले 20 वर्षों हेतु 20 लाख करोड़ के समझौते- वे भी अत्यंत आसान और लगभग नगण्य ब्याज पर लंबे ऋण के करार पर, कनाडा से जापान परमाणु सहयोग- यह सूची लंबी है.
कुल 98.78 अरब डॉलर का पूंजी निवेश इतने समय में प्राप्त होना- आजादी के बाद का सबसे सुखद आश्चर्य है.प्रथम 12 महीनों में 18 देशों की यात्रा, यह अब तक का अजूबा ही था. धर्म, संस्कृति, सभ्यता और परंपरा का जो मंगलगान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ, उसने भारतीय भाषाओं के सम्मान का ध्वज अमेरिका से लेकर चीन, यूके और सऊदी अरब तक फहराया. तब दुनिया चमत्कृत हुई, जब संयुक्त राष्ट्र में 22 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित कराने के लिए 177 देशों ने भारत के पक्ष में मतदान किया.
इन सबके साथ, समानांतर चल रहा था प्रधानमंत्री के हृदय को सबसे ज्यादा छूनेवाला विषय- गांव, गरीब और किसान. फसल बीमा, किसानों को पेंशन, मजदूरों को 12 रुपये वार्षिक प्रीमियम पर बीमा और पेंशन, जन-धन योजना द्वारा करोड़ों लोगों को जीवन में पहली बार बैंकिंग के मुख्य प्रवाह में जोड़ना.
साथ ही एक चमत्कार की तरह घटित होनेवाला उज्ज्वला अभियान, जो प्रधानमंत्री द्वारा की गयी अपील से इतने बड़े पैमाने पर सफल होगा, यह देख स्वयं उनको भी आश्चर्य हुआ. एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने स्वेच्छा से अपनी एपीजी सब्सिडी छोड़ी और उसके कारण करोड़ों उन महिलाओं की रसोई में व्याप्त अंधेरा दूर हुआ, जो उनकी आंखों और जीवन को ग्रस रहा था.
अक्सर कहा जाता है कि अमेरिका या यूरोप धनी हैं, इसलिए वहां बड़े राजमार्ग हैं. यह गलत है. वहां बड़े और सघन राजमार्ग हैं, इसलिए वहां की आर्थिक स्थिति अच्छी हुई. भारत में यदि गांव-शहर-महानगर आपस में अच्छी तरह जुड़ जायेंगे, तो पूरा भारत एक बड़े गांव में तब्दील हो कर नये आर्थिक विकास का युग रचेगा. सिर्फ प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत वर्ष 2016-17 के लिए तीस हजार करोड़ रुपये निर्धारित किये गये हैं.
याद है न सोवियत संघ के मॉडल पर बना लंबा, उबाऊ, थका देनेवाला योजना आयोग. मोदी सरकार ने योजना आयोग को खत्म कर उसके स्थान पर एक बेहतर और राज्यों को ज्यादा अधिकार देनेवाला विकेंद्रीकृत नीति आयोग बनाया. नयी सरकार ने निर्णय प्रक्रिया को तेज किया और नतीजा निकला कि जहां भारत विदेशी पूंजी निवेश के सबसे पसंदीदा देशों में 2013 में 15वें स्थान पर था, वहीं 2015 में पहले स्थान पर आ गया. एक लंबा सफर, पर लम्हों में तय हो गया.
महान शौर्यवान भारतीय जवानों की 44 साल पुरानी मांग को पूरा किया नरेंद्र मोदी सरकार ने, जब ओआरओपी को मंजूर कर जवानों की बहादुरी को प्रणाम किया गया. रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने के लिए 20 हजार करोड़ के मेक इन इंडिया रक्षा उपकरण डीआरडीओ जैसी संस्थाओं के माध्यम से बने. साथ ही रक्षा क्षेत्र में 49 प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश को स्वीकृति दी गयी.
रियल एस्टेट कानून बना कर लाखों उन उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान की गयी, जो रियल एस्टेट ‘शार्क’ और ‘व्हेलों’ के शिकार हो जाते थे. अब प्रत्येक रियल एस्टेट डेवलपर को 70 प्रतिशत उपभोक्ता धन अलग खाते में सुरक्षित रख कर केवल उसी उद्देश्य के लिए खर्च करना होगा, जिसके लिए वह एकत्र किया गया था.
एक अनंत आकाश हमारे भविष्य के लिए खुला, रचा और बसा. यह इक्कीस चरणीय प्रगति गाथा एक विश्व कीर्तिमान है. 1. डिजिटल इंडिया, 2. प्रधानमंत्री जन-धन योजना 3. स्वच्छ भारत 4. मेक इन इंडिया 5. सांसद आदर्श ग्राम योजना 6. अटल पेंशन योजना 7. प्रधानमंत्री आवास योजना 8. जीवन ज्योति बीमा योजना 9. सुरक्षा बीमा योजना 10. कृषि सिंचाई योजना 11. कौशल विकास योजना 12. मुद्रा बैंक योजना 13. सुकन्या समृद्धि योजना 14. डिजी लॉकर योजना 15. इ-बस्ता योजना 16. एलपीजी सब्सिडी व उज्ज्वला योजना 17. सागर माला योजना 18. स्मार्ट सिटी योजना 19. स्कूल नर्सरी योजना 20. नयी मंजिल योजना 21. स्वर्ण मोनेटाइजेशन योजना.
देश में पहली बार अनुसूचित जातियों के लिए डॉ बाबा साहब आंबेडकर की 125वीं जयंती पर असाधारण विकास और छात्रवृत्ति योजनाएं शुरू हुई. प्रधानमंत्री मोदी डॉ आंबेडकर स्मारक व्याख्यान देनेवाले पहले प्रधानमंत्री ही नहीं बने, बल्कि बाबा साहेब के जीवन से जुड़े पांच स्थानों को- लंदन से महू तक- पंचतीर्थ के रूप में विकसित करने की योजना शुरू हुई. अल्पसंख्यक छात्रों के लिए विशेष तालीम और हुनर योजनाएं लाखों अल्पसंख्यक नौजवानों को नयी मंजिल की ओर ले जा रही हैं.
काम का सिर्फ ढिंढोरा पीट रही सरकार
बी के हरिप्रसाद
महासचिव, कांग्रेस
नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार अपने दो साल के कार्यकाल में ऐसा कुछ नहीं कर सकी है, जिसे याद किया जाये. यह सरकार काम करने से ज्यादा ढिंढोरा पिटती है. इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इस ढिंढोरा पीटने के कारण देशहित से जुड़े कई अहम मसलों पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ा है. नेपाल जैसा मित्रराष्ट्र, जो कभी भी भारत विरोधी नहीं रहा है, वहां भी भारत के खिलाफ नारे लग रहे हैं.
केंद्र सरकार यह ढिंढोरा पीटती है कि मोदी सरकार के आने के बाद विदेशों में भारत का मान बढ़ा है, लेकिन हालात ठीक इसके उलट दिख रहे हैं. नेपाल जैसे मित्रराष्ट्र के साथ भी संबंधों को सुधारने में कूटनीतिक रूप से यह सरकार विफल रही है. सरकार यह बताये कि कैसे मान-सम्मान बढ़ रहा है? पाकिस्तान के साथ तो उम्मीद भी नहीं कर सकते हैं. जब भाजपा विपक्ष में थी तो पाकिस्तान के साथ ‘जैसा को तैसा’ नीति अपनाने पर बल देती थी, लेकिन आज क्या हो गया है? हमारे जवान रोज शहीद हो रहे हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी चुप बैठे हैं.
सरकार पाकिस्तान के समक्ष नतमस्तक हो गयी है. पठानकोट हमले ने यह साबित कर दिया है कि पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह की नरमी भारत के लिए खतरनाक है, फिर भी सरकार चुप है. पाकिस्तान की बात छोड़ दीजिये, अन्य पड़ोसी देशों के साथ भी सरकार अपना संबंध सुधारने की दिशा में कोई ठोस काम नहीं कर रही है.
सरकार के दो सालों के कामकाज से यह स्पष्ट हो गया है कि यह सरकार कॉरपोरेट हितैषी और गरीब विरोधी है.किसान और कृषि भाजपा के पॉलिटिकल एजेंडे में है ही नहीं. इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि प्रधानमंत्री को हर जगह जाने के लिए समय मिलता है, लेकिन जिन किसानों ने अभाव में आत्महत्या की है, भूख से तड़प कर जान दी है, उन्हें देखने की फुरसत उनके पास नहीं है. मोदी किसानों के लिए रोज नयी योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं, लेकिन धरातल पर उसका कुछ भी असर नहीं दिख रहा है. मोदी सरकार में किसान, गरीब और आमजन बदहाल है, लेकिन पूंजीपति और कॉरपोरेट सेक्टर के लोग खुशहाल हो रहे हैं. इन लोगों की नजर में देश खुशहाल है, लेकिन सच्चाई इससे परे है.
अब तक कितने लोगों को रोजगार मिला है? पांच साल में छह करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा करनेवाली सरकार अब तक 20 लाख लोगों को भी रोजगार नहीं दे पायी है. इससे साफ जाहिर होता है कि मोदी सरकार की कथनी और करनी में फर्क है. सरकार जो घोषणा करती है, उसे पूरा करने को लेकर संजीदा नहीं है.
प्रचार का काम ज्यादा कर रही है. प्रचार से कांग्रेस को कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन झूठे प्रचार से जनता गुमराह होती है. उनके सपनों को पंख लगने का सपना दिखा कर मोदी सरकार तोड़ने का काम करती है. अच्छे दिन और अच्छे काम के मामले में भाजपा पूरी तरह से फिसड्डी साबित हुई है.
जिस जनधन योजना का प्रचार सरकार कर रही है, वह कांग्रेस की योजना है. एलपीजी सिलेंडर देने की बात सरकार कर रही है, लेकिन सरकार को यह पता होना चाहिए कि गांवों में 95 करोड़ मोबाइल पहुंचाने का काम कांग्रेस की देन है. जिस आधार कार्ड के माध्यम से भ्रष्टाचार समाप्त होने की बात कही जा रही है, उस आधार कार्ड को कांग्रेस सरकार ने अमलीजामा पहनाया है.
पिछले दो साल के कामकाज को देखें, तो अर्थव्यवस्था, आधारभूत संरचना का विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति में काफी गिरावट आयी है. महिलाओं के प्रति अपराध बढ़े हैं, युवा और ज्यादा संख्या में बेरोजगार हो रहे हैं.
स्कूलों और अस्पतालों की स्थिति ऐसी हो गयी है कि गरीब न ही अपना इलाज करा सकते हैं और न ही अपने बच्चों को पढ़ा सकते हैं. महंगाई दर में जबरदस्त उछाल आया है. इस तरह से मोदी सरकार हर मोरचे पर विफल है. पिछले दो सालों के कामकाज के आधार पर मूल्यांकन किया जाये, तो इस सरकार को शून्य अंक हासिल होगा.