यह था प्रयोग
वैज्ञानिकों ने स्वेच्छा से प्रयोग में शामिल हुए कुछ लोगों की कलाई में एक इलेक्ट्रोकोड लगाया और दिमाग के खास हिस्से में अल्ट्रासाउंड तरंगों का संचार करना शुरू किया. उन्होंने इस दौरान इलेक्ट्रोइनसेफेलोग्राफी के माध्यम से (इइजी) मानव दिमाग की प्रतिक्रि या दर्ज की. वैज्ञानिकों ने पाया कि अल्ट्रासाउंड के संचार से स्पर्श और उत्तेजना को पहचानने वाले इइजी संकेत और दिमाग की तरंगे निम्नतर होकर कमजोर पड़ रही हैं.
कई विकारों का इलाज होगा आसान
इसके बाद वैज्ञानिकों ने दो और प्रयोग किये, जिसमें पता लगाया जाना था कि क्या मानव मस्तिष्क पास से स्पर्श करने वाली दो वस्तुओं को अलग-अलग पहचान सकता है और मस्तिष्क द्वारा हवा के कश का संवेदन पहचानने की गति कितनी तीव्र होगी. इन प्रयोगों में वैज्ञानिकों ने पाया कि अल्ट्रासाउंड के संचार से मानव दिमाग न सिर्फ त्वचा को स्पर्श करने वाली दो अलग-अलग वस्तुओं की पहचान कर पा रहा है, बल्कि हवा के कश का संवेदन ग्रहण करने की गति भी अपेक्षाकृत तीव्र है. अध्ययन के मुताबिक, इस तथ्य का उपयोग न्यूरोडीजेनेरेटिव विकारों, मनोवैज्ञानिक विकारों और व्यवहारात्मक विकारों के उपचार में किया जा सकेगा.
वाशिंगटन एक अध्ययन में पता चला है कि अल्ट्रासाउंड कराने से दिमाग की गतिविधि में जो प्रभाव पड़ता है, उससे संवेदनशीलता बढ़ जाती है. वर्जीनिया टेक कैरिलियोन रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग से यह साबित किया कि दिमाग के एक खास हिस्से का अल्ट्रासाउंड, संवेदन के भेद की क्षमता को बढ़ा सकता है. सहायक प्रोफेसर विलियम जेमी टेलर ने कहा कि अल्ट्रासाउंड में मस्तिष्क की संयोजकता को मापने के रु झान में अभूतपूर्व संकल्प को बढ़ाने की क्षमता है. इसलिए हमने निश्चय किया कि दिमाग के उस हिस्से का अल्ट्रासाउंड किया जाये, जो संवेदनाओं के प्रसारण के प्रति उत्तरदायी है.