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असम लगा पाएगा भाजपा के जख़्मों पर मरहम?

थोड़ी ही देर में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में हुए विधानसभा चुनाव के शुरुआती ट्रेंड्स आने शुरू हो जाएंगे. माना जा रहा है कि दोपहर 12 बजे तक स्थिति साफ़ हो जाएगी. समाचार एजेंसी पीटीआई ने चुनाव आयोग के अधिकारियों के हवाले से बताया है कि वोटों की गिनती आठ बजे शुरू […]

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थोड़ी ही देर में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में हुए विधानसभा चुनाव के शुरुआती ट्रेंड्स आने शुरू हो जाएंगे.

माना जा रहा है कि दोपहर 12 बजे तक स्थिति साफ़ हो जाएगी.

समाचार एजेंसी पीटीआई ने चुनाव आयोग के अधिकारियों के हवाले से बताया है कि वोटों की गिनती आठ बजे शुरू हो जाएगी.

जहां टीवी चैनलों पर दिखाए गए विभिन्न एक्ज़िट पोल में दावे किए जा रहे हैं कि असम, तमिनाडु और केरल में वोटरों ने राजनीतिक बदलाव के हक़ में वोट किया है.

सबसे अधिक क़यास असम को लेकर लगाए जा रहे हैं.

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पेश है आज आने वाले नतीजों से जुड़ी 15 महत्वपूर्ण बातें.

1-क़रीब 8,300 उम्मीदवारों में से जिन महत्वपूर्ण लोगों के राजनीतिक भविष्य का फ़ैसला होगा वो हैं असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई, भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार सरबनंदा सोनोवाल और हेमंता बिस्वा सर्मा, तमिनलाडु में जयललिता और करुणानिधि, केरल में ओमान चांडी, वीएस अच्युतानंद, पिन्नरी विजयन, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और सीपीएम के सूर्यकांत मिश्रा और पुड्डुचेरी में मुख्यमंत्री एम रंगास्वामी.

2-तमिनाडु में 232 सीटों (दो सीट पर चुनाव स्थगित कर दिए गए थे) के लिए, पश्चिम बंगाल में 294 सीटों के लिए, केरल में 140 सीटों के लिए, असम के लिए 126 सीटों के लिए वोट पड़े.

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3-चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों के मुताबिक़, पोस्टल मतपत्रों की गणना के बाद ईवीएम वोटों की गिनती होगी.

4-ताज़ा नतीजे इस बात पर भी रोशनी डालेंगे कि वोटरों पर नरेंद्र मोदी का कितना असर बरक़रार है. मई 2014 आम चुनाव में जीत के बाद भाजपा ने महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू कश्मीर (पीडीपी के साथ) में सरकार बनाई लेकिन बिहार और दिल्ली की हार ने सवाल खड़े किए क्या मोदी का असर कम होने लगा है.

5-बिहार और दिल्ली में नरेंद्र मोदी और मोदी मंत्रिमंडल के मंत्रियों के भारी चुनाव प्रचार के बावजूद चुनावी हार से अमित शाह की छवि को झटका लगा था और उनकी रणनीति को भी. ताज़ा नतीजे अमित शाह के लिए महत्वपूर्ण होंगे.

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6-असम में भाजपा ने असम गण परिषद और बोडो पीपल्स फ्रंट के साथ गठबंधन किया और सर्बानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित किया. असम में जीत भाजपा के लिए उत्तर-पूर्व में नए मौक़े पैदा कर सकती है.

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7-पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वाम दलों के लिए अस्तित्व की लड़ाई है. टीएमसी के विजय के दावों के बीच सवाल उठ रहे हैं कि क्या पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी दोबारा मुख्यमंत्री बन पाएंगी?

8-वाम दलों के लिए त्रिपुरा ही एकमात्र गढ़ बचा है. केरल और पश्चिम बंगाल में हार वाम दलों को राजनीतिक अप्रासंगिक बना सकता है.

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9-विश्लेषकों के अनुसार, अगर कांग्रेस का प्रदर्शन असम, केरल और पश्चिम बंगाल में अच्छा नहीं रहता है तो राहुल गांधी पर पार्टी अध्यक्ष बनने का या फिर प्रियंका गांधी को अमेठी से बाहर ले जाने का दबाव बढ़ सकता है.

10-विश्लेषकों के मुताबिक़, पश्चिम बंगाल में जंगलमहल और पहाड़ी इलाक़ों में शांति, गोरखालैंड आंदोलन में नरमी और माओवादियों की पकड़ का कमज़ोर होना ममता बनर्जी की सफलता में गिने जाएंगे जबकि सारदा घोटाला, नारद स्टिंग, कोलकाता में पुल का गिरना जैसे मामले उनके ख़िलाफ़ गए.

11-उत्तर भारत में मज़बूत भाजपा के लिए ख़ासकर केरल में अच्छा प्रदर्शन महत्वपूर्ण है. अगर पार्टी केरल में अपना खाता खोल पाती है, तो दक्षिण भारत में पार्टी का क़द बड़ा बढ़ेगा.

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12-हर पांच साल में केरल में एलडीएफ़ और यूडीएफ़ के बीच सत्ता की अदला बदली हुई है. विश्लेषक वेंकटेश पेरुमल कहते हैं कि ओमान चंडी के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप इन चुनाव में मुख्य मुद्दों में रहे, लेकिन विपक्षी एलडीएफ़ में लीडरशिप को लेकर कन्फ्यूज़न उनके ख़िलाफ़ गया.

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13-तमिलनाडु में द्रमुक पार्टियां एआईएडीएमके और डीएमके हर पांच सालों में सत्ता का अदल बदल करती हैं लेकिन विश्लेषक वेंकटेश पेरुमल कहते हैं एआईएडीएमके के ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी लहर नहीं है और डीएमके सुशासन का वायदा कर रहा है.

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14-तमिलनाडु चुनाव में 91 वर्षीय करुणानिधि का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनने के कारण दुनिया का ध्यान उनकी ओर खिंचा. उधर जयललिता की उपलब्धता, लोगों से उनकी मुलाक़ातों में कमी को विपक्षी डीएमके ने मुद्दा बनाया.

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15-चुनावी वायदों में जयललिता ने वोटरों को लुभाने के लिए फ्री 100 यूनिट बिजली, फ्री लैपटॉप, फ्री मिक्सर ग्राइंडर, महिलाओं के लिए स्कूटर ख़रीदने के लिए सब्सिडी जैसी चीज़ों की लाइन लगा दी थी.

अब ये देखना दिलचस्प होगा कि वायदों और स्थानीय मुद्दों का वोटरों पर कितना असर रहा.

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