
उत्तर प्रदेश में 2017 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के विभाजन का प्रश्न अहम ढंग से उठने के आसार हैं.
बहुत सम्भव है कि 2017 का चुनाव प्रदेश के विभाजन के प्रश्न पर एक रिफ्रेन्डम की तरह लिया जाए. ऐसा क़यास इसलिए लगाया जा रहा है कि बहुजन समाज पार्टी जो आगामी चुनाव में सत्ता की महत्वपूर्ण दावेदार बनकर उभरने वाली है, की प्रमुख मायावती ने पिछले 2012 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले 2011 में विधानसभा में उत्तर प्रदेश को चार भागों में बांटने का प्रस्ताव पास किया था.
ये चार भाग जो बीएसपी ने प्रस्तावित किया था वे हैं- पूर्वांचल, बुंदेलखंड, पश्चिम उत्तर प्रदेश, अवध प्रदेश. समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश के इस विभाजन प्रस्ताव का विरोध किया था और उसी वक़्त मायावती ने ख़िलाफ़ विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाया था.
उस वक़्त विधानसभा में भाजपा, कांग्रेस इत्यादि दलों ने भी मायावती के ख़िलाफ़ इस अविश्वास प्रस्ताव का साथ दिया था. उस वक़्त एंटी इनकंबेंसी एवं भ्रष्टाचार का आरोप झेल रही मायावती चुनाव नहीं जीत पाई थी.
इस बार मायावती नए आत्म विश्वास से भरी दिख रही हैं. बीएसपी कैडरों के बीच चर्चा है कि इस बार पुनः बहनजी उत्तर प्रदश के विभाजन का प्रश्न अपने चुनाव घोषणा पत्र में शामिल कर सकती हैं.
अगर मायावती आगामी चुनाव में उत्तर प्रदेश के विभाजन का प्रश्न उठाती हैं तो ऐसा कर वे क्या राजनीतिक संकेत देना चाहेंगी. वस्तुतः आज़ादी के बाद उत्तर प्रदेश का विकास एवं क़ानून और विधि व्यवस्था बड़ी चुनौती बन कर उभरी है.

इसका एक कारण उत्तर प्रदेश का बड़ा होना माना जाता है. ऐसा करके एक तो मायावती अपनी विकास के विज़न एवं प्रतिबद्धता को साबित करना चाहेंगी.
उत्तर प्रदेश के लचर क़ानून व्यवस्था के लिए वे समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव की सरकार पर आक्रमण का आधार तो भोथरा नहीं करेंगी. परन्तु उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए उत्तर प्रदेश के विभाजन को एक रास्ते के रुप में सुलझा सकती हैं.
वे ऐसा करके यह भी कहना चाहेंगी की आज़ादी के बाद इन विभिन्न आर्थिक, राजनीतिक स्तरों पर बंटे इकाइयों में विकास के असंतुलन कम करन के लिए चुस्त प्रशासनिक व्यवस्था की ज़रुरत ऐसा करके पूरा किया जा सकता है.
इससे पिछड़े क्षेत्रों में विकास की नीतियों एवं कार्यक्रमों को भी पहुंचाया जा सकता है. अंबेडकर ने 1955 में भाषायी राज्य पर लिखी अपनी पुस्तक में उत्तर प्रदेश के विभाजन का सुझाव दिया था.
ऐसा करके वे अंबेडकर के विज़न के साथ अपने सम्बन्ध का क्लेम भी ज़ोर शोर से कर सकती है. इन विभिन्न उपखण्डों में आज़ादी के बाद की जनतांत्रिक राजनीति जनता में एवं स्थानीय नेतृत्व में विकास की गहरी चाह विकसित की है.

साथ ही इनमें राजसत्ता केन्द्र से क़रीबी, सत्ता में भागीदारी की चाह भी बढ़ी है. ऐसा करके वे इन चारों उपक्षेत्रों के जनमानस में अपनी लोकप्रियता सुनिश्चित कर सकती हैं.
अगर ऐसा है तो पिछले चुनाव में यह मुद्दा मायावती के पक्ष में माहौल क्यों नहीं सृजित कर सका. इसका एक कारण तो यह है कि पिछले विधानसभा चुनाव के सन्दर्भ में मायावती जी ने यह मुद्दा उठाने में देर कर दी.
देर में उठाया गया यह मुद्दा एक तो मात्र चुनावी मुद्दा बनकर रह गया, दूसरे इसका डिसेमिनेसन समय कम होने के कारण आधार तल तक नहीं पहुंच पाया.
इस बार भी यह मुद्दा चुनाव में ही उठेगा किन्तु इस बार लोगों की स्मृति में यह है कि मायावती ने इसके लिए अपनी सरकार के समय संघर्ष किया था.
अतः लोगों की स्मृति में यह मायावती का यू.एस.पी बनकर बैठ गया है. इस बार यह ज़्यादा कारगर हो सकता है. मायावती के राजनीति का आधार पश्चिमी उत्तर प्रदेश है, जहां के लोगों के मन में हरित प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश विभाजन की चाह गहरी है.
ऐसा करके मायावती पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने बेस को और भी संगठित करना चाहेंगी. भाजपा इस मुद्दे का समर्थन कर सकती है. क्योंकि वह छोटे राज्यों की समर्थक रही है.

यहां ये बताना ज़रूरी है कि उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़ इत्यादि राज्य भाजपा के अटल बिहारी वाजपेई सरकार के समय में ही बने थे. किन्तु रोचक है कि इसका समर्थन करते हुए भी इस मुद्दे का लाभ भाजपा नहीं उठा सकती, क्योंकि लोगों की स्मृति में यह बसपा का मुद्दा बन चुका है.
कांग्रेस अजीत सिंह के साथ गठबंधन करने वाली है. ऐसे में उसे हरित प्रदेश की मांग का समर्थन करना ही होगा. और अगर हरित प्रदेश की मांग का वह समर्थन करती है तो वह पूर्वाचंल एवं बुंदेलखंड की मांग का विरोध नहीं कर सकती.
ऐसे में समाजवादी पार्टी अपने ‘अखण्ड उत्तर प्रदेश’ की मांग के साथ आगामी चुनाव में भाग लेगी. वह इसे उत्तर प्रदेश की अखण्ड अस्मिता एवं राजनीतिक शक्ति को क्षीण करने के प्रयास के रुप में प्रस्तुत कर सकती है.
जीत चाहे किसी की हो ऐसा लगता है कि आगामी चुनाव में उत्तर प्रदेश के विभाजन का प्रश्न बड़ा मुद्दा बनकर उभरने वाला है.
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