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जहां बिहारी आ रहे हैं ‘लैला’ की तलाश में

मनोज सिंह बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए समउर बाज़ार बिहार के गोपालगंज ज़िले से लगा उत्तर प्रदेश का छोटा सा क़स्बा है. समउर पुलिस चौकी के बाद ही बिहार की सीमा शुरू हो जाती है, साथ ही बाज़ार का नाम भी बदल जाता है. अब दुकानों के बोर्ड पर भागीपट्टी ज़िला गोपालगंज, बिहार लिखा […]

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समउर बाज़ार बिहार के गोपालगंज ज़िले से लगा उत्तर प्रदेश का छोटा सा क़स्बा है. समउर पुलिस चौकी के बाद ही बिहार की सीमा शुरू हो जाती है, साथ ही बाज़ार का नाम भी बदल जाता है. अब दुकानों के बोर्ड पर भागीपट्टी ज़िला गोपालगंज, बिहार लिखा नज़र आने लगता है.

समउर पुलिस चौकी से बमुश्किल 20 मीटर आगे भागीपट्टी स्थित देसी शराब के ठेके पर पिछले महीने तक ख़ूब रौनक़ हुआ करती थी. यहां बिहारियों के साथ यूपी वाले भी जाम टकराने आते थे क्योंकि बिहार की शराब यूपी के मुक़ाबले सस्ती थी.

लेकिन नीतीश सरकार के शराबबंदी के फ़ैसले के बाद एक अप्रैल से सीन बदल चुका है. भागीपट्टी की शराब की दुकानें बंद हो चुकी हैं. यहां लगा बोर्ड भी हट चुका है और यहां की रौनक़ यहां से 100 मीटर दूर समउर के तमकुही रोड जाने वाली सड़क पर शिफ़्ट हो गई है.

बिहार में शराबबंदी की घोषणा के बाद ही यहां देशी शराब के ठेके पर अंग्रेज़ी शराब (इंडियन मेड फॉरेन लिकर) की दुकान भी खुल गई है.

40-42 डिग्री सेल्सियस तापमान वाली झुलसा देनी वाली दोपहरी के बाद शाम होते ही इस ठेके पर बिहार के नंबर प्लेट वाली बाइकों का जमावड़ा बढ़ जाता है. अंग्रेज़ी शराब की दुकान पर एक छोटी ट्रक से शराब की नई खेप आई है.

वोदका की मांग करने पर सेल्समैन थोड़ी देर रुकने को कहता है ताकि ‘माल’ उतर कर दुकान में आ जाए. इस दुकान के पीछे देसी शराब के काउंटर पर लोग लगातार आ-जा रहे हैं और ‘लैला’, ‘मिस्टर लाइम’, ‘ओल्ड फ्रेंड’ और ‘झूम’ मांग रहे हैं.

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अधिकतर लोग 55 (28 प्रतिशत अल्कोहल) वाला पव्वा या 65 (36 प्रतिशत अल्कोहल) वाला पव्वा बोलते हैं और दुकानदार समझ जाता है कि क्या देना है.

अग़ल-बग़ल की चाय-पान की दुकानें शाम ढलते मयख़ानों में बदलने लगी हैं. जब मयख़ाना अपने शबाब पर होता है तो यहां पर सुनाई देने वाली आवाज़ों में अक्सर एक नई आवाज़ भी होती है जिसमें नीतीश सरकार के जल्द गिर जाने की कामना या भविष्यवाणी होती है.

यहीं पर मिले एक अधेड़ शख़्स, जिन्हें उनके साथी-संगी बाबू साहब बोल रहे थे, ग़ुस्से में दिख रहे हैं. कहते हैं, ‘बताईं न. हमनी के अब 7-8 किलोमीटर दउर के आवे के पड़ ता. इहां महंगो बा. पीके जइले पर ख़तरो बा. पुलिसवा मुंह भी सूंघ ता.’

कुशीनगर ज़िले का पनियहवां रेलवे स्टेशन मछली के साथ शराब पीने वालों का बहुत पसंदीदा स्थान है. यहां नारायणी नदी में मिलने वाली ‘चेपुआ’, ‘बरारी’, ‘टेंगर’ मछली खाने के लिए लोग आते हैं जिसे भूजा के पास परोसा जाता है. यहां पर फूस के बने फ़ूड प्वाइंट हैं.

बिहार में शराबबंदी के बाद यहां पर बिहार से आने वाले लोगों की संख्या बढ़ गई है. इनमें से ज़्यादा ब्लॉक, तहसील में काम करने वाले कर्मचारी, ठेकेदार, पंचायत प्रतिनिधि होते हैं. बीयर और वोदका का रंग जब चढ़ता है तो बातचीत शराबबंदी पर ठहर जाती हैं.

ऐसी ही एक शाम बगहा पश्चिमी चंपारण ब्लॉक के दो कर्मचारी जब सुरूर में आए तो उन्होंने नीतीश सरकार को कोसना शुरू कर दिया. एक ने कहा कि नीतीश कुमार ने मेरे पूरे परिवार का वोट ले लिया लेकिन सरकार बनाने के बाद मुझे भूल गए, बीवी की सुनी.

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उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर स्थित एक पुल

दूसरे ने कहा कि हम पर पीने की पाबंदी लगाने वाले क्या कुछ लेते नहीं? इस पर पहले ने कहा कि वे पीते नहीं सूंघते हैं. इसके बाद दोनों के साथ-साथ बाक़ी लोग भी ठठा कर हंस पड़े.

यह सीन केवल समउर और पनियहवा का नहीं यूपी के बिहार से सटे हर क़स्बे की शाम का है. कुशीनगर ज़िले के सलेमगढ़, डिबनी बंजरवा, तमकुही, पटहेरवा, दुदही हो या देवरिया ज़िले का मेहरौना, मझौली, बनकटा. बिहार बॉर्डर के इलाक़ों में नए तरह की चहल-पहल है.

जब बिहार में नीतीश सरकार शराबबंदी की घोषणा कर रही थी तो यूपी की अखिलेश सरकार अंग्रेज़ी शराब के दाम में 25 फ़ीसदी तक कमी कर शराब से होने वाली कमाई का टारगेट 19 हज़ार करोड़ तय कर रही थी. इस टारगेट को पूरा करने में अब बिहार बॉर्डर की दुकानें ख़ास योगदान देने लगी हैं.

कुशीनगर ज़िले में आबकारी विभाग ने देसी शराब का न्यूनतम कोटा चार से बढ़ाकर छह फ़ीसदी और देवरिया में नौ फ़ीसदी कर दिया है. दोनों ज़िलों में बॉर्डर पर पांच-पांच नई दुकानें खोली जा रही हैं.

कुशीनगर ज़िले में देसी की 194, अंग्रेज़ी की 67 और बीयर की 80 दुकानें हैं. इसमें दो दर्जन से अधिक दुकानें बिहार बॉर्डर पर हैं.

कुशीनगर के आबकारी अधिकारी ओपी सिंह कहते हैं कि विदेशी शराब की बिक्री 25 फ़ीसदी बढ़ी है लेकिन सही स्थिति की जानकारी अगले महीने तक मिलेगी. उनका कहना है कि केवल बिहार के लोगों के उनके ठेकों पर आने से बिक्री बढ़ी है, यह कहना ठीक नहीं होगा.

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शराब सस्ती होने और लगन का समय होने के कारण भी खपत बढ़ी है.

तमकुही में देसी शराब के ठेके पर मिला एक बिहारी मज़दूर कहता है, ”इस दुकान की सेल 20 हज़ार से ज़्यादा नहीं थी लेकिन अब एक लाख रोज़ की हो गई है. पहले बिहार बॉर्डर पर यूपी के शराब का ठेका लेना घाटे का सौदा माना जाता था लेकिन अब दुकान लेने के लिए यूपी के साथ-साथ बिहार के लोग भी आवेदन कर रहे हैं.”

एक तरफ़ यूपी का आबकारी विभाग शराब की खपत बढ़ने से ख़ुश है तो वहीं बिहार में शराबबंदी से ख़ुश लोग चिंतित हो गए हैं. उनका कहना है कि इससे तो बॉर्डर के इलाक़ों में शराबबंदी का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.

दुदही क़स्बे से सटे बिहार के डिही पंचायत के मुखिया लल्लन कहते हैं कि यूपी सरकार बॉर्डर पर शराब की दुकानें खोलकर ग़लत कर रही है.

वह बिहार और यूपी सरकार के उस पुराने शासनादेश की तलाश कर रहे हैं जिसमें बॉर्डर से तीन किलोमीटर के दायरे में शराब की दुकान खोलने की मनाही है. वह इसको लेकर अदालत जाने की बात कर रहे हैं.

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लेकिन शराब के लिए हर प्रतिबंधों का तोड़ निकाल लेने वाले जानते हैं कि सरहदें उन्हें मौक़ा देती रहेंगी.

नेपाल बॉर्डर पर स्थित ठूठीबारी के पत्रकार राधेश्याम पांडेय ने याद दिलाया कि कैसे जब नेपाल में माओवादियों ने शराबबंदी लागू की थी तो भारत और नेपाल दोनों देशों के लोगों ने नो मैन्स लैंड पर दारू पीकर प्रतिबंध को तोड़ा था.

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