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दोषी हम-आप हैं अब भी चेत जाइए
अनुज कुमार सिन्हा राज्य-देश में पानी का गंभीर संकट आ गया है. झारखंड की बात करें ताे राज्य की अधिकतर नदियां सूख चुकी हैं. जलस्रोत सूख चुके हैं. जिस हुंडरू, जाेन्हा, दशम समेत राज्य के जलप्रपातों से गिरते पानी काे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते थे, जिनके पानी से नदियां भरती थीं, उन […]
अनुज कुमार सिन्हा
राज्य-देश में पानी का गंभीर संकट आ गया है. झारखंड की बात करें ताे राज्य की अधिकतर नदियां सूख चुकी हैं. जलस्रोत सूख चुके हैं. जिस हुंडरू, जाेन्हा, दशम समेत राज्य के जलप्रपातों से गिरते पानी काे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते थे, जिनके पानी से नदियां भरती थीं, उन जलप्रपातों में एक बूंद पानी नहीं है.
उजाड़ नजर आता है. कांके, हटिया, मैथन, तिलैया समेत राज्य के बड़े-बड़े डैमाें में पानी बहुत कम हाे गया है. कई डैमाें से राशनिंग कर काम चलाया जा रहा है. अधिकतर तालाब सूख चुके हैं. छह साै से हजार फीट तक बाेरिंग करने पर भी कई जगहाें पर पानी नहीं मिल रहा है. कुएं सूख गये हैं. पानी के लिए मारा-मारी हाेने लगी है, पुलिस की निगरानी में कहीं-कहीं टैंकर से पानी बंटने लगा है.
यह हालात है. पानी कहां से मिलेगा? सरकार चिंतित. हाइकाेर्ट चिंतित, एक-एक बूंद पानी बचाने का सुझाव, पर लाेग मान नहीं रहे हैं. अगर आपके घर-अपार्टमेंट में बाेरिंग ठीक-ठाक काम कर रहा है, ताे आप (अभी) शायद पानी के संकट काे महसूस नहीं कर पायेंगे. अगर कुआं सूख गया हाे, चापानल या बाेरिंग से पानी नहीं आ रहा हाे, सप्लाई का पानी आपकाे नहीं मिल पा रहा हाे, तभी आपकाे पता चलेगा कि अतीत में आपने भी क्या गलती की है.
अभी तर्क-कुतर्क करने का नहीं, चेतने का वक्त है. हालात समझिए. दाे घटना राज्य में पानी के हालात काे बताने के लिए काफी है. दाेनाें शहरी क्षेत्र नहीं हैं. जंगल के क्षेत्र की घटना है.
घाटशिला के पास हाथी का एक बच्चा पानी के अभाव में तड़प-तड़प कर मर गया (इसी गुरुवार की घटना है), गुमला के जंगलाें में जब पानी नहीं मिला ताे प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश में गांव की आेर जा रहे हिरणाें में से एक किसी वाहन की चपेट में आकर मर गया (यह शुक्रवार की घटना है). चिंता की बात यह है कि क्या गांव, क्या शहर या क्या जंगल, सभी जगह पानी का संकट. सारंडा आैर पारसनाथ के घने जंगलाें के पास स्थित गांव में भी पानी का संकट है. यानी धरती के नीचे से पानी खत्म हाे रहा है. यह अतिदाेहन का नतीजा है. क्या हाेगा हम इंसानाें का?
क्या हाेगा जानवराें का. पानी के लिए जंगली जानवर शहर की आेर भागेंगे आैर मनुष्याें से उनका टकराव हाेगा. यह अब तय लगता है. तैयार रहिए पानी की तलाश में हाथी, तेंदुआ, भेड़िए, हिरण आदि अब पास के गांव में या शहराें में आ सकते हैं. ये जानवर बेजुबान हैं. बाेल नहीं सकते. किससे शिकायत करें कि पानी के बिना वे आैर उनके बच्चे मर रहे हैं. वनाें के भीतर के जलस्रोत, तालाबनुमा गड्डे सूख गये हैं. वहां तत्काल काेई व्यवस्था नहीं हुई, ताे हालात आैर बिगड़ेंगे. सवाल है पानी आये ताे कहां से.
पानी का यह संकट उस झारखंड में हुआ है, जहां हर साल आैसतन 1400 मिमी वर्षा हाेती है,जहां 29 फीसदी वन क्षेत्र है. प्रकृति ने झारखंड काे सब कुछ दिया है, फिर भी यहां अगर जल संकट है, ताे इसके लिए दाेषी हम-आप हैं. सरकार इसमें बहुत कुछ नहीं सकती, लाेगाें काे जागना हाेगा. साफ है कि हमारा जल प्रबंधन गलत है.
सिर्फ आज की साेचते हैं, कल की नहीं. सिर्फ अपने लिए साेचते हैं, दूसराें के लिए नहीं. पाइप ताेड़ाे, अपने घर में पानी लाे, बाकी का क्या हाेगा, इसकी चिंता काेई नहीं करता. यह साेच में लाेग जी रहे हैं. छह-छह इंच की बाेरिंग करवा लें, पड़ाेसी पर क्या असर पड़ेगा, यह नहीं साेचते. अपने घर-अपार्टमेेंट, अपने घर के सामने की सड़क काे पूरे ताैर पर पक्का करायेंगे, कंक्रीट का बनायेंगे, ताकि धूल अपने घर में नहीं घुसे, यह हमलाेग की साेच बन गयी है. पानी कैसे धरती के भीतर जायेगा, इसकी चिंता काेई नहीं करता.
इस सत्य काे स्वीकारना हाेगा कि धरती के भीतर असीमित जल नहीं है. वर्षा का पानी या अन्य किसी तरह से पानी धरती के भीतर जायेगा, ताे जलस्तर बढ़ेगा. कंक्रीट का क्षेत्र है, ताे पानी अंदर नहीं जायेगा, पानी का स्तर नहीं बढ़ेगा आैर आपकी बाेरिंग सूख जायेगी, आप पानी के लिए तरसेंगे, फिर दूसराें काे, सरकार काे काेसेंगे. गलती आपकी आैर दाेष दूसराें के मत्थे, यह नहीं चलेगा.
पहले शहराें की बात करें. शहराें में (खासकर रांची, धनबाद, जमशेदपुर) में बड़े पैमाने पर अपार्टमेंट बनते जा रहे हैं. शायद ही किसी अपार्टमेंट में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा हुआ है. घर हाे या अपार्टमेंट, जमीन काे कंक्रीट से ढंक दिया गया है. एक इंच मिट्टी नहीं दिखती. सड़कें पक्की हैं, गलियां सीमेंट की बनी हुई हैं, नालियां पक्की हैं. ऐसे में वर्षा का पानी जमीन में जा नहीं पा रहा है. सीधे नाले से बहते हुए नदी में, फिर वहां से बहते-बहते समुद्र में.
जहां कहीं मिट्टी है भी, वहां पालिथीन इतने भरे हैं, जिससे पानी रिस नहीं पाता. पानी की कमी के कारण कई इलाकाें में लाेग फ्लैट बेच कर भाग रहे हैं. सरकार ने नियम बनाया है कि हर घर में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य है लेकिन काेई इसे नहीं लगा रहा. काेई कार्रवाई भी नहीं हाेती. लाेगाें काे साेचना हाेगा कि यह आपके हित के लिए है. आपकाे घराें-अपार्टमेंट के पानी काे राेकने की जिम्मेवारी आपकी है.
राेकेंगे ताे पानी पायेंगे, वरना आपकी बाेरिंग फेल हाेगी. आज भले न हाे, कल ताे हाेगी ही. नियम सिर्फ आम आदमी नहीं मानते, यह बात नहीं है. मंत्री-विधायक, पार्षद, अफसराें (अपवाद काे छाेड़ दें), सरकारी दफ्तराें में भी पानी की बरबादी हाेती है, वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगा है. ऐसे में किस मुंह से ये लाेग दूसराें पर कार्रवाई करेंगे. तालाबाें पर कब्जा कर लिया गया, किसी काे चिंता नहीं. उन पर अतिक्रमण कर मकान बना दिये गये. सर्वे करवा ले सरकार, मालूम हाे जायेगा कि इस शहर से कितने तालाब गायब हाे गये.
कानून का शासन चाहिए आैर कड़ा शासन. जिस किसी ने तालाब-नदियाें पर कब्जा कर घर बनाया हाे, कानून के तहत उन्हें ध्वस्त कर देना चाहिए. ऐसा हाेगा नहीं, क्याेंकि कब्जा करनेवालाें में बड़े-बड़े नेता, माफिया, अफसर भी हैं. हां, हाइकाेर्ट की नजर गयी, कड़ा रुख अपनाया ताे सब कुछ संभव है. हम-आप दाेषी इसलिए हैं, क्याेंकि जिस दिन तालाबाें पर कब्जा हाे रहा था, चुप क्याें थे. अगर चुप थे, ताे उसका फल अब भुगतिए.
उस दिन अगर पूरा मुहल्ला खड़ा हाे गया हाेता, ताे किसकी मजाल हाेती अतिक्रमण करने की. अतिक्रमण भी ताे हम या आप जैसे ही लाेग करते हैं. पहाड़ाें काे गायब कर दिया जा रहा है, जंगलाें काे काट कर साफ कर दिया जा रहा है, काेई नहीं बाेलता. इन सबका असर है पानी संकट. सरकार ने तालाब बनाने का आदेश दिया, कागज पर तालाब बन गये. कहां गये इतने तालाब? अगर जनता जागी रहती, तालाब का हिसाब रखती ताे आज वे तालाब दिखते, उनमें पानी हाेता.
यह संकट नहीं आता. अपने भविष्य के लिए भी अब जागना हाेगा. सरकार आदेश दे या नहीं, कार्रवाई करे या नहीं, इतना अनुशासन ताे हाेना चाहिए कि हर व्यक्ति अपने घर-अपार्टमेंट में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाये. अगर हर जगह कंक्रीट है, ताे कुछ जगह ताेड़-फाेड़ करे ताकि मिट्टी से पानी जाने का रास्ता बने.
हां, सरकार की जिम्मेवारी भी है. तीस-चालीस साल पहले झारखंड में बड़े-बड़े डैम बने थे. आबादी कम थी. अब आबादी बढ़ गयी है. नये डैम नहीं बने हैं. पुराने डैमाें की सफाई नहीं हाे रही है.
हालांकि अच्छी बात है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास डैमाें की सफाई का आदेश दे चुके हैं. हर हाल में वर्षा के पानी काे राेकना हाेगा. अपने घर के जितना करीब हाे, उतना बेहतर हाेगा. बेहतर समय है नदियाें में चेकडैम बनाने का. पंचायताें काे जागना हाेगा. बाेरा बांध भी कारगर साबित हाेगा. पत्थराें-बालू के बाेराें से बर्षा के पानी काे राेका जा सकता है.
पानी का जैसा गंभीर संकट आ चुका है, उसमें एक-एक दिन काटना मुश्किल है. इस संकट से भी उबरा जा सकता है अगर लाेग साथ दें, एक-एक बूंद पानी बचायें. अभी ऐसा नहीं हाे रहा है. हर हाल में पानी की बरबादी राेकें. कार धाेना अभी बंद करें. घर के बाहर पाइप से पानी फेंक कर सफाई पर अंकुश लगायें. लापरवाही बंद करें. अभी भी ऐसे आधे दिमाग के लाेग हैं, जाे अपार्टमेंट में नल खुला छाेड़ कर ताला बंद कर चल देते हैं. पानी बहते रहता है.
यह अापराधिक कृत्य है. अगर किसी के घर में आरआे लगा है, ताे सिंक में जिस पानी काे बहा दिया जाता है, उसका इस्तेमाल कपड़ा साफ करने में, पाैधाें काे पानी देने में करें. हां, जानवराें, पक्षियाें का ख्याल रखें. अगर जगह हाे ताे किसी पत्र में पानी घराें के बाहर रखें, बरामदे में रखें, ताकि पक्षी आपके पानी से अपना जीवन बचा सकें. आपकी संवेदनशीलता दूसराें के साथ आपका जीवन भी बचायेगी. अभी पानी बचायें आैर भविष्य की तैयारी करें. हाेता यह है कि गरमी में हाय-ताैबा मचती है, लेकिन माॅनसून आते ही इस पीड़ा काे लाेग भूल जाते हैं.
संकल्प लीजिए कि इस मानसून में पानी जमा करने, राेकने का हर संभव आप प्रयास करेंगे. अगर ऐसा नहीं कर पायें ताे लातूर से भी बुरी स्थिति का सामना यहां करना पड़ेगा. सरकार अपना दायित्व निभाते रहे लेकिन असली दायित्व ताे आम जनता (हम सभी काे) काे निभाना हाेगा, पानी बचाना हाेगा. याद रखिए, आपके द्वारा बचाया गया पानी का एक-एक बूंद िकसी का जीवन बचा सकता है.
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