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हॉबी बना इनकम सोर्स : दादी से सीखी कला से खड़ा किया अपना रोजगार

बचपन में सीखी गयी कला कभी रोजगार का जरिया बन जायेगी, यह सोचा भी नहीं था. जयनगर, मधुबनी की नाजदा खातून बचपन में दादी से सिक्की बुनाई सीखा करती थीं. उनकी ख्वाहिश थी कि उनके हुनर को लोग दूर-दूर तक जानें और लोग भी इस पारंपरिक कला से जुड़ें. लेकिन तब ऐसा नहीं हो सका. […]

बचपन में सीखी गयी कला कभी रोजगार का जरिया बन जायेगी, यह सोचा भी नहीं था. जयनगर, मधुबनी की नाजदा खातून बचपन में दादी से सिक्की बुनाई सीखा करती थीं. उनकी ख्वाहिश थी कि उनके हुनर को लोग दूर-दूर तक जानें और लोग भी इस पारंपरिक कला से जुड़ें. लेकिन तब ऐसा नहीं हो सका. ग्रामीण परिवेश की नाजदा की शादी कम उम्र में हो गयी और यह अरमान मन के किसी कोने में दबा रह गया. मगर लंबे अंतराल बाद नाजदा ने उस कला न केवल फिर से जिंदा किया, बल्कि सैकड़ों महिलाओं को इससे जोड़ने का काम भी किया है.

फिर यह सिलसिला चल पड़ा

शादी के बाद नाजदा परिवार में व्यस्त हो गयी. गरीबी के कारण आर्थिक संकट सताने लगी. तब इसका सामना करने के लिए उसने अपना सिक्की बुनाई का काम शुरू किया. मधुबनी से पटना उसे बेचने के लिए आतीं, लेकिन पटना में खरीदार नहीं मिले. कई कोशिशों के बाद भी सफलता नहीं मिल रही थी. इसी बीच सचिवालय से उन्हें सिक्की के 35 पर्स बनाने का ऑर्डर मिला. ऑर्डर को पूरा करने के बाद यह सिलसिला चल पड़ा. नाजदा का 35 रुपये से शुरू किया गया रोजगार आज उन्हें 10 से 15 हजार रुपये की आमदनी दे रहा है. वे इससे बेहद खुश हैं.

सैकड़ों महिलाएं हुईं शामिल

उसराही गांव की सारी महिलाएं जानती हैं सिक्की बुनाई में नाजदा खातून का कोई जवाब नहीं. उन्होंने अकेले अपना सफर शुरू किया था. लेकिन आज उनके कारवां में गांव की सैकड़ों महिलाएं शामिल हो चुकी हैं. नाजदा बताती हैं कि शुरुआत में मेरे गांव में केवल मुझे ही यह काम आता था. लेकिन, बाद में मैने और भी महिलाओं को भी यह हुनर सिखाया, जो उन्हें आज रोजगार दे रहा है.

हुनर ने दिलाया स्टेट अवाॅर्ड

नाजदा खातून के मुताबिक सिक्की आर्ट के प्रचार-प्रसार के कारण उन्हें स्टेट अवाॅर्ड भी मिल चुका है. अभी तक जयपुर, चेन्नई, पुणे, दिल्ली हाट में भी वे जा चुकी हैं. हर जगह पर उनकी कला को सराया गया और मांग रही. घर की सजावट संबंधित चीजें भी अब इससे बनायी जाने लगी हैं. देश के कई हिस्सों से उन्हें ऑर्डर आते हैं.

तालाब किनारे मिलती है सिक्की

गांव में तालाब किनारे जहां नमी होती है, वहां पर सिक्की मिलती है. सिक्की को मिट्टी से काटा जाता है. इसके बाद उसे पानी से घोकर धूप में सुखाया जाता है. नाजदा ने बताया कि तालाब से लाकर उसे खूद पूरा तैयार करना होता है. धूप में सुखाने के बाद उसे अलग-अलग रंगों से रंगते हैं. फिर सामान के डिजाइन के अनुरूप उसे आकार देते हैं. कई बार तालाब किनारे सिक्की नहीं मिलने से खरीदना पड़ता है. अब तो 300 रुपये किलो सिक्की बिकने लगी है. सिक्की से हाथी, हिरण, केसरोल, डोली, घोंसला आदि ढेरों साजो-सामान बनाये जाते हैं.

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