आपातकाल में अपनी ही पार्टी की निरंकुशता के खिलाफ खड़े होने का साहस चंद्रशेखर जी जैसे लोग ही दिखा सकते हैं. छात्र राजनीति से लेकर प्रधानमंत्री पद तक का उनका सफर बहुत संघर्षपूर्ण रहा, जो बहुत प्रेरणादायी है. आज उनकी कमी बहुत खलती है.
कुमार वरुण
आज (17 अप्रैल) चंद्रशेखर जी का जन्म दिवस है. मैं उनके साथ 1983 में कन्याकुमारी से दिल्ली तक की 6000 किलोमीटर की पदयात्रा में विजासन से जुड़ा था, जो महाराष्ट्र का एक छोर है. वहां से दिल्ली तक कई माह तक घंटों देश, समाज, धर्म, भारतीय परंपरा व समाजवादी विचारधारा पर उनसे अपना ज्ञानवर्द्धन करता रहा. आज आपलोगों से उसे साझा करने का मन कर रहा है, क्योंकि आज के माहौल में राजनैतिक गिरावट पीड़ा दे रही है. चंद्रशेखर के विचारों व संवेदना में आम आदमी ही सर्वोपरि था. फौरी लाभ के लिए उन्होंने कभी भी कोई काम नहीं किया. भारत काे एक मजबूत एवं समृद्ध राष्ट्र बनाने के लिए उनकी दृष्टि थी- कि सबों को मिल कर काम करना होगा.
वे स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सत्ता एवं विपक्ष को साथ में मिल कर काम करने के बड़े समर्थक थे़ दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक या समाज के निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति की समस्या का व उनकी भावनाअों का बहुत ही संवेदनापूर्वक ख्याल रखते थे. भारत एक गांवों का देश है और उसकी आत्मा गांव में बसती है, ऐसा उनका दृढ़ विश्वास था. उनका मानना था कि गांव को मजबूत बना कर ही रोजगार के अवसर पैदा किये जा सकते हैं.
विदेशों में घूम-घूम कर गिड़गिड़ा कर विदेशी निवेश से देश की समस्या हल नहीं हो सकती. 1991 में तत्कालीन सरकार ने आर्थिक सुधार की नीतियों को लागू करने का फैसला किया, तो उन्होंने इसके खिलाफ देश को बताया था कि कोई भी विदेशी कंपनी पैसा लगा कर देश का कल्याण नहीं करेगी, बल्कि भारत से पैसा कमा कर अपना हित देखेगी़ इससे देश की गरीबी दूर नहीं होगी. आज सचमुच आर्थिक असमानता अपनी सारी हदें पार कर गयी है़ महंगाई बेकाबू है़ गांव-गरीब व आदिवासी मजदूर की स्थिति अति दयनीय है. चंद्रशेखर जी आर्थिक तरक्की के लिए कृषि क्षेत्र को मजबूत करना चाहते थे, आज सबसे खराब स्थिति कृषि क्षेत्र की है़ किसान आत्महत्या कर रहे हैं.
वे सांप्रदायिक राजनीतिक के खिलाफ थे़ सच कितना भी कड़वा हो, उसे भी बोलने से नहीं हिचकते थे़ दूरदृष्टि इतनी कि बाबरी मसजिद जैसे विवादित मुद्दों को लगभग सुलझा लिया था. स्वर्ण मंदिर व सिखों के पक्ष में उनके बेवाक बयानों से उनकी उस समय बहुत आलोचना हुई थी.
देश की मौजूद स्थिति में आज उनकी बहुत याद आ रही है़ कश्मीर में अलगाववादी शक्तियां और देश में सांप्रदायिक शक्तियां मजबूत हो रही हैं. उनका कहना था कि देश के विकास में सांप्रदायिक राजनीति सबसे बड़ी बाधक है. संवैधानिक संस्थाओं की मजबूती के हमेशा समर्थक रहे.
आज देश के लोगों की भावना की समझ नेताअों में नहीं है.चंद्रशेखर जी ने देश की वास्तविक समस्याअों की जानकारी के लिए भारत पदयात्रा की. विचारधारा अलग होने के बावजूद दूसरे दलों के नेताअों का और राजनीति में मत भिन्नता का वे बहुत आदर करते थे.