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बस्तर: सामाजिक एकता मंच भंग किया गया

आलोक प्रकाश पुतुल रायपुर से बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित बस्तर में सामाजिक एकता मंच नाम की संस्था को भंग कर दिया गया है. सामाजिक और मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि यह मंच पुलिस संरक्षण में चल रहा था और यह उन लोगों के खिलाफ सक्रिय था, जो बस्तर में […]

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छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित बस्तर में सामाजिक एकता मंच नाम की संस्था को भंग कर दिया गया है.

सामाजिक और मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि यह मंच पुलिस संरक्षण में चल रहा था और यह उन लोगों के खिलाफ सक्रिय था, जो बस्तर में पुलिस की हिंसक गतिविधियों और फर्जी मुठभेड़ों को उजागर कर रहे थे.

सामाजिक एकता मंच को ऐसे समय में भंग किया गया है, जब एक दिन बाद शनिवार को ही केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह रायपुर में माओवाद प्रभावित राज्यों के शीर्ष पुलिस अधिकारियों के साथ विशेष बैठक करना जा रहे हैं.

हालांकि सामाजिक एकता मंच की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि नक्सल मोर्चे पर केंद्र सरकार, राज्य सरकार, जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन को सहयोग करने की मंशा के साथ बस्तरवासियों ने सामाजिक एकता मंच का गठन किया था.

बयान में कहा गया है कि “ऐसा अनुभव हो रहा है कि सामाजिक एकता मंच के बहाने कुछ लोग सरकार, प्रशासन एवं पुलिस को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं. इन परिस्थितियों में सामाजिक एकता मंच के सदस्यों ने सर्वसम्मति से फ़ैसला लेकर आज सामाजिक एकता मंच को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया है.”

इधर मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की छत्तीसगढ़ इकाई के अध्यक्ष डॉक्टर लाखन सिंह ने कहा कि सामाजिक एकता मंच को पुलिस संरक्षण में शुरु किया गया था और जिस तरीके से यह संगठन काम कर रहा था, उससे बस्तर में लोगों में दहशत थी.

लाखन सिंह ने कहा- “हालांकि यह संगठन अभी भंग किया गया है लेकिन बस्तर में पुलिस जिस तरीके से काम कर रही है, उसमें इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि पुलिस फिर किसी नये नाम से इस तरह का कोई संगठन शुरु कर दे.”

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मानवाधिकार संगठनों द्वारा सामाजिक एकता मंच को 2005 में शुरु किये गये सलवा जुड़ूम का दूसरा हिस्सा बताया जा रहा था, जिसमें पुलिस ने बस्तर के आदिवासियों को हथियार दे दिये थे. इन हथियारबंद लोगों ने पुलिस संरक्षण में बड़ी संख्या में हत्या, बलात्कार और आगजनी जैसी घटनाओं को अंजाम दिया था.

सलवा जुड़ूम में शामिल लोगों पर आरोप है कि उन्होंने कम से कम 644 गांवों को माओवादियों के नाम पर खाली करवाया, जिसके बाद 50 हज़ार से अधिक आदिवासियों को सरकारी राहत शिविरों में रहने के लिये बाध्य होना पड़ा. आज 10 साल बाद भी हज़ारों आदिवासी इन्हीं राहत शिविरों में हैं. 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुड़ूम को असंवैधानिक बताते हुये राज्य सरकार को तत्काल प्रभाव से सलवा जुड़ूम को बंद करने का आदेश दिया था.

इसके बाद पिछले साल बस्तर में सामाजिक एकता मंच नामक संगठन बनाये जाने की घोषणा की गई. जिसमें कई राजनीतिक दलों के लोग शामिल थे.

इस साल जनवरी में सामाजिक एकता मंच पहली बार तब चर्चा में आया, जब पुलिस संरक्षण में इस संस्था ने एक आत्मसमर्पित माओवादी जोड़े की धूमधाम से शादी कराई थी.

इसी दौरान बस्तर में आदिवासियों को कानूनी सहायता मुहैया करवाने वाली संस्था जगदलपुर लीगल एड ग्रुप नामक संस्था की महिला वकीलों के खिलाफ सामाजिक एकता मंच ने कई अवसरों पर धरना प्रदर्शन किया. स्वतंत्र पत्रकार मालिनी सुब्रह्मण्यम के खिलाफ आंदोलन करने और कथित रुप से उनके घर पर पत्थरबाजी के आरोप भी इस संगठन पर लगे.

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आरोप है कि पुलिस द्वारा कोई मदद नहीं मिलने और सामाजिक एकता मंच के विरोध के कारण जगदलपुर लीगल एड ग्रुप नामक संस्था की महिला वकीलों और मालिनी सुब्रह्मण्यम को बस्तर छोड़ने के लिये बाध्य होना पड़ा.

इसके बाद भारत सरकार की योजना आयोग द्वारा माओवादियों की समस्या की पड़ताल के लिये बनाई गई विशेष कमेटी की सदस्य बेला भाटिया को भी सामाजिक एकता मंच के लोगों ने माओवादी बता कर उन्हें निशाने पर लिया.

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