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लिथुआनिया का श्रावण कुमार

।। वाराणसी से शरद दीक्षित ।। अस्पताल में अपने पिता की सेवा में अकेले जुटा है 10 साल का बच्‍चा यह किसी पौराणिक ग्रंथ से ली गयी कहानी नहीं, बल्कि वाराणसी के एक अस्पताल में सेवारत पुत्र की सच्ची दास्तान है. दस वर्ष का राम चाहता है कि उसे 12 हजार रुपये मिले और अपने […]

।। वाराणसी से शरद दीक्षित ।।

अस्पताल में अपने पिता की सेवा में अकेले जुटा है 10 साल का बच्‍चा

यह किसी पौराणिक ग्रंथ से ली गयी कहानी नहीं, बल्कि वाराणसी के एक अस्पताल में सेवारत पुत्र की सच्ची दास्तान है. दस वर्ष का राम चाहता है कि उसे 12 हजार रुपये मिले और अपने पिता का इलाज करा सके. श्रवण कुमार को देखना हो, तो बनारस के मंडलीय अस्पताल पहुंचिए. वार्ड नंबर पांच के बेड नंबर दस पर एक विदेशी बच्चा पौराणिक कथा के श्रवण कुमार की ही तरह अपने पिता की सेवा कर रहा है. व्यवस्थागत उपेक्षा ने पिता को बिस्तर पर कराहने के लिए डाल दिया है, लेकिन पराये देश के पराये शहर में मुसीबतों से जूझता दस साल का बेटा श्रवण कुमार की तरह पिता की सेवा में दिन-रात एक किये है.

जेफिम उत्तरी यूरोप के देश लिथुआनिया के निवासी हैं. तकरीबन बीस दिन पहले अपने दस साल के बेटे राम के साथ काशी भ्रमण पर आये थे. दुर्घटना हुई और पैर टूट गया. बनारस के रामकृष्ण मिशन आश्रम के अस्पताल गये.

वहां नौ हजार का खर्च बताया गया. माली हालत ठीक नहीं थी, तो वहां से मंडलीय अस्पताल में आकर भरती हो गये. हिंदू धर्म अपना चुके जेफिम बीस दिन से अस्पताल में भरती हैं. इस शहर में उनका कोई नहीं है. ईश्वर पर प्रगाढ़ आस्था है. बेड को मंदिर बना दिया है.

चारों तरफ देवी-देवताओं के कैलेंडर लगा रखे हैं. जहां दवाएं रखी जाती हैं, वहां ठाकुर जी को स्थापित कर दिया है. वार्ड में और मरीजों के लिए कौतूहल का विषय बने हैं, जेफिम और उनका बेटा राम. रामकृष्ण आश्रम के अस्पताल से इसलिए मंडलीय अस्पताल आये थे कि उनके पास नौ हजार रुपये नहीं थे.

मंडलीय अस्पताल में तो और मुसीबत हो गयी. सरकारी अस्पताल में डॉक्टर ऑपरेशन के लिए बारह हजार रुपये मांग रहे हैं. अब इसे ईश्वर की कृपा कहें या फिर कुछ और, इस मुसीबत की घड़ी में जेफिम का बेटा राम श्रवण कुमार बना हुआ है. दस साल के बालक में गजब का आत्मविश्वास है.

लिथुआनियाई भाषा के साथ धाराप्रवाह हिंदी बोलता है. भगवद्गीता के श्लोक कंठस्थ हैं. मासूम राम अपने पिता के साथ भारत का भ्रमण भी कर चुका है. हर बात का जवाब शुद्ध हिंदी में देता है. राम अपने पिता के लिए मां और बेटा दोनों बना है. जेफिम बिस्तर पर पड़े रहते है. राम उनकी तीमारदारी करते हुए डॉक्टरों के चक्कर लगाता है. पिता के इलाज की गुहार करता है. डॉक्टर हैं कि पसीजते नहीं और राम है कि हार नहीं मानने की कसम-सी खा रखी है.

वही इस पराये गैर मुल्क में अपने पिता के लिए दुभाषिया है. बीस दिन गुजर चुके हैं. पिता अपनी तकलीफों से नहीं बल्कि बेटे की बेबसी से टूटे हैं. जब भी राम उनके पास होता है तो वो उसे प्यार से सहलाया करते हैं. तीमारदारी करते-करते राम को भी बुखार हो गया है. पिता के साथ ही बेड पर लेटा रहता है. पूछने पर राम कहता है कि पिता के पैर के ऑपरेशन के लिए डॉक्टर बारह हजार रुपये मांग रहे हैं, जो हमारे पास नहीं है. हम समझ नहीं पा रहे कि क्या करें.

उससे जब पूछा जाता कि मां कहां है, तो पिता से लिथुआनियाई भाषा में इस सवाल को दोहराता है. पिता का जवाब मिलने पर बताता है कि मां ने दूसरी शादी कर ली. आगे कहता है कि मैं ही अपने पिता के लिए सब कुछ हूं.संवाददाता पूछता है कि राम इस वक्त उसे किस तरह की मदद की जरूरत है, तो रुंधे गले से जवाब देता है कि 12 हजार रुपये दे दो, ताकि पिता के पैर का ऑपरेशन हो जाये और वो यहां से जा सके.

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