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अनुशासित भीड़

।। अनुज कुमार सिन्हा ।। 29 दिसंबर को रांची में नरेंद्र मोदी की विजय संकल्प रैली हुई. मीडिया में जो खबरें आयीं, उस पर भरोसा करें, तो दो लाख से ज्यादा लोगों ने रांची में मोदी को सुना. इतनी बड़ी भीड़ अनुशासित रही, यह झारखंड के लिए शुभ संकेत है. झारखंड में ऐसी धारणा है […]

।। अनुज कुमार सिन्हा ।।

29 दिसंबर को रांची में नरेंद्र मोदी की विजय संकल्प रैली हुई. मीडिया में जो खबरें आयीं, उस पर भरोसा करें, तो दो लाख से ज्यादा लोगों ने रांची में मोदी को सुना. इतनी बड़ी भीड़ अनुशासित रही, यह झारखंड के लिए शुभ संकेत है.

झारखंड में ऐसी धारणा है कि बड़ी रैली होगी तो तोड़-फोड़ होगी ही. डंडा लेकर आतंक मचाया जायेगा. यह सब मोदी की रैली में नहीं दिखा. बिल्कुल अनुशासित भीड़. चाहे वे भाजपा कार्यकर्ता हों या सामान्य जनता, सभी मोदी को सुनने के लिए बेचैन थे. चुस्त प्रशासन, चप्पे-चप्पे पर पुलिस. रैली में न तो भाजपा कार्यकर्ताओं ने कहीं उत्पात मचाया और न ही पुलिस ने कहीं डंडा चलाया. धैर्य दिखाया.

बड़ी विनम्रता से पुलिस रैली में आये लोगों की सहायता करते दिखी. किसी को भी पुलिस ने अनुशासन तोड़ने की अनुमति नहीं दी. पुलिस और राजनीतिक दलों की यही छवि जनता हमेशा देखना चाहती है. यह सब ऐसे ही नहीं हो गया, इसके लिए पुलिस प्रशासन के शीर्ष अधिकारी (डीजीपी) से लेकर एक-एक सिपाही तक लगे रहे.

ट्राफिक की यह व्यवस्था रही कि रांची शहर के लोगों को कोई बड़ी परेशानी (अपवाद छोड़ कर) नहीं हुई. ट्राफिक की बेहतर व्यवस्था यह बता रही है कि अगर पुलिस चाहे तो सिर्फ रैली के दिन ही क्यों,आम दिनों में भी रांची की ट्राफिक बेहतर हो सकती है.

मोदी को लोगों ने ध्यान से सुना. इसके लिए रैली तक भाजपा के सभी गुट एक दिखे. हो सकता है कि पार्टी की ओर से इस बारे में कड़ा निर्देश हो. हाल तक जिस भाजपा में एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी हो रही थी, वह थमी है. यह उसी निर्देश का फल हो सकता है. भाजपा का संगठन लगभग डेड हो गया था.

अचानक उसमें जान आ गयी. मोदी के नाम पर कार्यकर्ताओं में उत्साह आ गया. मोदी ने जो हवा बनायी है, उसका फायदा भाजपा को तभी मिलेगा जब संगठन इसी सक्रियता को बनाये रखे. भाजपा में अब मार होगी टिकट पाने के लिए. लोकसभा चुनाव ज्यादा दूर नहीं है. एक-एक सीट पर कई दावेदार पहले से हैं. अभी नये-नये दावेदार और पैदा होंगे. हो सकता है कि दूसरे दलों के भी कुछ नेता (सांसद/पूर्व सांसद) भाजपा में आयें. टिकट के लिए उनका दबाव भी रहेगा.

ऐसे में भाजपा नेताओं के समक्ष चुनौती बढ़ेगी. रैली के बाद अब चुनावी रणनीति तैयार करनी होगी. चुनाव में समय कम है. अभी तक झारखंड में चुनाव समिति का गठन नहीं हुआ है. कई अन्य राज्यों में बड़े नेताओं के नाम भी लगभग तय हो गये हैं. झारखंड में भी धुंध को साफ करना होगा. अगर भाजपा अभी ही प्रत्याशियों की घोषणा कर देती है या संकेत भी दे देती है तो प्रत्याशियों को रणनीति बनाने में काफी वक्त मिलेगा.

इसके लिए अब प्रदेश भाजपा को तेजी से, युद्ध स्तर पर काम करना होगा. रोज चर्चा होती है कि टिकट नहीं मिलने पर अमुक व्यक्ति पार्टी से चले जायेंगे. बड़े नेताओं के नाम पक्का होने से यह चर्चा बंद हो जायेगी.

अगर लोकसभा चुनाव में भाजपा एक होकर उतरेगी तभी रिजल्ट दे सकती है. भाजपा के लिए यह बड़ी चुनौती है. सिर्फ मोदी लहर के बल पर सभी सीटों को जीतना आसान नहीं होगा. ऐसे भाजपा का झारखंड में जनाधार रहा है. 1999 के चुनाव में भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया था. पार्टी उससे भी बेहतर प्रदर्शन करना चाहेगी. इसके लिए बेहतर प्रत्याशियों का चयन करना होगा.

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