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फिल्‍म में इमोशनली इंटिमेट सींस हैं माधुरी दीक्षित

बॉलीवुड की ‘धक-धक गर्ल’ माधुरी दीक्षित नेने सात साल के लंबे अंतराल के बाद सिल्वर स्क्रीन पर वापसी करने जा रही हैं. यशराज की फिल्म आजा नचले में पिछली बार नजर आयीं माधुरी अब विशाल भारद्वाज की 10 जनवरी को प्रदर्शित हो रही फिल्म डेढ़ इश्किया में दिखेंगी. वे इस फिल्म में अपने किरदार और […]

बॉलीवुड की ‘धक-धक गर्ल’ माधुरी दीक्षित नेने सात साल के लंबे अंतराल के बाद सिल्वर स्क्रीन पर वापसी करने जा रही हैं. यशराज की फिल्म आजा नचले में पिछली बार नजर आयीं माधुरी अब विशाल भारद्वाज की 10 जनवरी को प्रदर्शित हो रही फिल्म डेढ़ इश्किया में दिखेंगी. वे इस फिल्म में अपने किरदार और फिल्म से जुड़े निर्माता-निर्देशक विशाल एवं अभिषेक चौबे की जुगलबंदी को खास मानती हैं. उर्मिला से हुई बातचीत में फिल्म और कैरियर पर माधुरी का नजरिया.

क्या वजह रही जो आपने इस फिल्म को अपनी वापसी के लिए चुना?
मैं कहीं गयी ही नहीं थी, बस ब्रेक लिया था इसलिए मुझें वापसी शब्द से ऐतराज है. जहां तक डेढ़ इश्किया को चुनने की बात है तो मेरा कैरेक्टर और कहानी मुझें बहुत पसंद है. मैं बेगम पारा के रोल में हूं, जो काफी रहस्यमयी महिला है. उसके कई रंग हैं. उसके दिमाग में एक साथ कई चीजें चलती रहती हैं. मेरे लिए यह काफी कॉम्प्लिकेटेड कैरेक्टर साबित हुआ है. सच कहूं तो सिर्फ मेरा ही नहीं, इस फिल्म में हर कैरेक्टर एक दूसरे पर भारी है. दूसरी वजह है कि मुझें इश्किया पसंद आयी थी, इसलिए इस टीम को मैंने ‘हां’ कह दिया.

माधुरी अभिनय और डांस के संगम का नाम है, क्या इस फिल्म में आपका डांस नंबर है?
हां, मेरा डांस है. वह ठुमरी बेस्ड है. इस फिल्म में दो ठुमरी रखी गयी है, जिनमें से एक ‘जगावे सारी रैना’ पंडित जी के कथक पर आधारित है और दूसरा ‘हमरी अटरिया पे’ रेमो ने कोरियोग्राफ किया है. मैं रेमो द्वारा डायरेक्ट किये गये इस गाने को लेकर बेहद रोमांचित हूं. रेमो ने अपनी शैली से हट कर इस गाने पर काम किया है.

इस फिल्म में अपने को-स्टार नसीर साहब के बारे में आप क्या कहेंगी?
नसीर साहब की मैं हमेशा से फैन रही हूं. मैंने उनकी पहली फिल्म ‘मासूम’ देखी थी और फिर उनके अभिनय से प्रभावित हो कर और भी कई फिल्में देखीं. हालांकि इससे पहले हमनें कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म राजकुमार भी की है. उस फिल्म में वह विलेन थे और इस फिल्म में हम साथ हैं.

इस फिल्म में आपके और नसीर साहब के बीच इंटिमेट सींस की काफी चर्चा हो रही है, क्या कहेंगी?
(बीच में रोकते हुए) हमारे बीच इंटिमेट सीन की बजाये इमोशनली इंटिमेट सीन हैं, जो महज आंखों ही आंखों में हुए हैं. सभी के बीच एक संबंध है, जो इन कैरेक्टर्स को खास बनाते हैं. हालांकि मुझें पता नहीं कि इस तरह की खबरें मीडिया में कैसे फैली हैं.

क्या कभी ऐसा ख्याल भी आया कि इस फिल्म के निर्देशक अभिषेक के बजाये विशाल भारद्वाज फिल्म को निर्देशित करते तो ज्यादा बेहतर होता?

अभिषेक ने बतौर निर्देशक खुद को ‘इश्किया’ में ही साबित कर दिया था. रही बात विशाल जी की, तो मुझें उनकी ‘ओमकारा’ बहुत पसंद आयी थी. जब मुझें इस फिल्म का ऑफर आया तो मैंने इन्हीं दो नामों के कॉम्बिनेशन पर विश्वास करते हुए हामी भर दी. मौका मिला तो विशाल के निर्देशन में भी काम करना चाहूंगी.

इस फिल्म की शूटिंग रियल लोकेशन पर हुई है. किस तरह की मुश्किलें पेश आयीं?
शूटिंग स्पॉट तक पहुंचना ही मुश्किल भरा अनुभव होता था. इस फिल्म की शूटिंग यूपी के मेहमूदाबाद में हुई है. मेहमूदाबाद एक छोटा-सा कस्बा है और हमारी पूरी यूनिट 200 लोगों की थी, सो हमें लखनऊ में रु कना पड़ा. वह जगह लखनऊ से 60 किलोमीटर दूर था. हर रोज वहां पहुंचने के लिए हमें दो घंटे लगते और वापस आने के लिए दो घंटे. हर रोज 12 घंटे काम करना, हर दिन आना-जाना सबसे मुश्किल था. वहां पहुंचने के लिए रास्ते के कुछ भाग काफी उबड़-खाबड़ थे. लेकिन इतना कुछ होने के बावजूद कभी किसी ने शिकायत नहीं की. सारी मुश्किलों को भूल कर हम अपना बेस्ट देने में जुट जाते थे.

विद्या बालन ‘इश्किया’ का हिस्सा थीं. आप इस सीक्वल फिल्म की तुलना के लिए तैयार हैं?विद्या से मेरी तुलना गलत है. मैं कृष्णा के किरदार में नहीं हूं, मैं बेगम पारा के रोल में हूं, जो बिल्कुल अलग है. कहानी और पृष्ठभूमि सब कुछ अलग है. ऐसे में तुलना करना सही नहीं है.

पिछले कुछ वर्षो में सीक्वल और रीमेक का दौर बॉलीवुड पर हावी हो गया है. आप क्या मानती हैं?
मैं समझती हूं जब भी सीक्वल बने, वह सिर्फ बनाने के लिए न बने, बल्कि अच्छी स्टोरीलाइन के साथ अधिक दिलचस्प भी हो. अब खालू जान और बब्बन मियां को ही लीजिए. इश्किया में उनकी कहानी शुरू हुई मगर फिल्म के अंत में कृष्णा (विद्या बालन) की कहानी पूरी हो गयी, लेकिन इनकी अधूरी रह गयी. अब यह लखनऊ आये हैं, जहां बेगम पारा के साथ इनकी कहानी आगे बढ़ती है.

आप इंडस्ट्री की लंबे अरसे से हिस्सा रही हैं. अब और तब में कितना बदलाव पाती हैं?

कई सारे बदलाव इंडस्ट्री में देखने को मिल रहे हैं. मुझें याद है एक बार हम सेट पर शूटिंग करने आये और डायलॉग ही तैयार नहीं था. राइटर कोने में बैठकर डायलॉग लिखने में लगा था, लेकिन अब ऐसा बिल्कुल नहीं है. अब कॉस्ट्यूम से लेकर लुक, डायलॉग, लोकेशन और शूटिंग शेड्यूल सब कुछ पहले से तय रहता है. हमें सिर्फजाकर अपना काम करना होता है. इंडस्ट्री में ज्यादातर अच्छे बदलाव आये हैं.

आप इंडस्ट्री की आखिरी डांसिंग डिवा मानी जाती हैं जबकि आज की एक्ट्रेसेस डांस को तवज्जो नहीं देती?
हां, यह बात मुझें भी खलती है. मैंने और सरोज जी ने एक मुंहजबानी कॉट्रेक्ट साइन किया था कि हम अपने डांस स्टेप्स दूसरे किसी गीत में रिपीट नहीं करेंगे. कभी-कभी सरोज जी मुझें रिपीट डांस स्टेप दे भी देतीं, तो मैं उन्हें फौरन बता देती कि यह तो आपने उस गीत में मुझसे करवाया था. कुछ इस तरह का हमारा डेडिकेशन था.

इन दिनों गीतों में वल्गर मूव्स ही नहीं, वल्गर शब्दों का भी खूब प्रयोग हो रहा है. इसे कितना सही मानती हैं?
जिन गीतों की आप बात कर रही हैं, मैं उनके बारे में नहीं जानती, लेकिन हां ,मुझें याद है जब मेरी फिल्म खलनायक का गीत ‘चोली के पीछे’ आया, तो बवाल मच गया था. जब फिल्म रिलीज हुई और लोगों ने गाना देखा, तो सभी उस गाने पर डांस करने लगे. मुझें लगता है अब गीतकारों के पास लिखने को शब्द नहीं रहे, इसलिए वह इस तरफ आ रहे हैं. मैं समझती हूं गीत के शब्दों के साथ उसका पिक्चराइजेशन भी मायने रखता है. आइ होप कि गानों के साथ लोग डांस के बारे में भी सोचें और उस पर मेहनत करें तो बेहतर होगा.

आपके बच्चे अब बड़े हो गये हैं. आपको स्क्रीन पर देख कर उनकी क्या प्रतिक्रिया होती है?
डेढ़ इश्किया के लुक में मेरे बेटे अरिन और रयान मुझें पहचान ही नहीं पाये. जब मैंने उन्हें बताया तो भी उनकी प्रतिक्रिया यह थी कि सच्ची मॉम यह आप ही हो. (हंसते हुए) आमतौर पर जब वह मुझें टीवी पर देखते है तो दौड़ते हुए आते हैं और कहते हैं कि मॉम आप टीवी पर दिख रहे हो.

आपकी आनेवाली फिल्म?
गुलाब गैंग.

माधुरी के बिना नहीं बन पाती डेढ़ इश्किया
अगर कोई दूसरी फिल्म होती, तो मैं शायद ‘ना’ कह देता, लेकिन इस फिल्म के बारे में मैं बिल्कुल यह कह सकता हूं कि अगर माधुरी जी इस फिल्म से इनकार कर देतीं, तो मैं यह फिल्म नहीं बनाता. अगर बनाता भी, तो कहानी कुछ और होती. बेगम पारा एक ऐसा किरदार है जिस पर उम्र की धूल नहीं जमी है. उसे कथक के साथ अपनी रॉयल पर्सनैलिटी को हैंडल करना आता है. हालांकि जब इसकी कहानी लिखी गयी तो मेरे साथ विशाल जी की अल्टीमेट चॉइस भी सिर्फ और सिर्फमाधुरी दीक्षित ही थीं. हमें नहीं लगता कि उनकी तरह इस किरदार के साथ कोई न्याय कर सकता था. यह मेरा सौभाग्य रहा कि उन्होंने कहानी सुन कर हामी भर दी.

अभिषेक चौबे , निर्देशक

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