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तख्ती से लैपटॉप तक पहुंची शिक्षा सामाजिक ज्ञान की लौ ”मद्धिम”
चिंताजनक. छात्रों की विभिन्न वेबसाइटों पर बढ़ रही निर्भरता उपकरणों ने सुंदर लिखावट के प्रचलन को न केवल समाप्त कर दिया है, बल्कि सामाजिकता को भी नुकसान पहुंचाया है. ठाकुर संग्राम सिंह छपरा : कंप्यूटर, टैबलेट, लैपटॉप, स्मार्ट फोन के दौर से नयी पीढ़ी आज सोशल मीडिया पर जितनी तेजी के साथ सक्रिय हो रही […]
चिंताजनक. छात्रों की विभिन्न वेबसाइटों पर बढ़ रही निर्भरता
उपकरणों ने सुंदर लिखावट के प्रचलन को न केवल समाप्त कर दिया है, बल्कि सामाजिकता को भी नुकसान पहुंचाया है.
ठाकुर संग्राम सिंह
छपरा : कंप्यूटर, टैबलेट, लैपटॉप, स्मार्ट फोन के दौर से नयी पीढ़ी आज सोशल मीडिया पर जितनी तेजी के साथ सक्रिय हो रही है, उतनी ही ज्यादा सामाजिकता से दूर भी हो रही है. आधुनिक उपकरणों ने सुंदर लिखावट के प्रचलन को न केवल समाप्त कर दिया है, बल्कि सामाजिकता को भी नुकसान पहुंचाया है. जिले में गुलिस्ता सोसाइटी द्वारा कराये गये एक सर्वे के बाद यह खुलासा हुआ कि छात्रों की वर्तमान पीढ़ी को यह जानकर आश्चर्य होता है कि पहले-लिखने और पढ़ने की पद्धति स्लेट, कंडा की कलम व पेंसिल थी और लिखने के साथ-साथ कंठस्थ करने की प्रधानता थी. इन बातों को जानकर अधिकतर छात्र आश्चर्यचकित हो जाते थे.
आज फेसबुक, वाट्सएप जैसे इंटरनेट आधारित सोशल मीडिया के माध्यमों के कारण छात्र बौद्धिक संपदा से दूर होते जा रहे हैं और इंटरनेट पर आधारित विभिन्न वेबसाइटों पर उनकी निर्भरता बढ़ रही है. छोटी-सी उम्र में ही खुद के वजन से ज्यादा बोझ वाला बस्ता लेकर स्कूल जाने वाले बच्चों को आधुनिक उपकरणों के माध्यम से स्मार्ट क्लासेज में पढ़ाया तो जा रहा है, लेकिन 80 व 90 के दशक के पहले की स्लेट व तख्ती पर दी जाने वाली शिक्षा के साथ सामाजिकता व संस्कार की कड़ी गायब होती जा रही है. सोशल मीडिया पर आज-कल सक्रिय छात्रों में अपसंस्कृति बढ़ रही है. सामाजिकता खो रहे छात्रों में ज्ञान-विज्ञान की प्रगति के साथ ही आधुनिकता बढ़ी है.
आधुनिकता के विकास ने अनेक मायनों में बचपन को सामाजिकता की ऊसर होती जा रही धरती पर अच्छी फसल का सब्जबाग दिखाया, लेकिन यह धीरे-धीरे छात्रों को उद्दंडता,निरंकुशता व संस्कार हीनता की ओर बढ़ाने वाला साबित हो रहा है. सर्वे के अनुसार ऐसा नहीं कि स्लेट के जमाने वाले छात्र-छात्राओं ने कामयाबी का परचम न लहराया हो. मौजूदा समय सेवानिवृत्ति की सीमा पर पहुंचे या सेवानिवृत्त हो चुके विभिन्न क्षेत्र के अग्रणी लोग उसी युग के रहे हैं. उस जमाने के छात्र भी आइएएस,आइपीएस, पीसीएस, आचार्य, वैज्ञानिक होते थे. कई क्षेत्रों में उसी दौर के पढ़े लोगों ने विश्व स्तर पर अपनी कीर्ति का परचम लहराया.
भाषा के जानकारों की हो रही है कमी : कैथी लिपि, उर्दू, अरबी, फारसी, संस्कृत, हिंदी में विद्वता के साथ ही दक्षता तो प्रायः स्नातक तथा स्नातकोत्तर कक्षा तक हो जाया करती थी. लेकिन मौजूदा समय बहुतायत स्नातक और स्नातकोत्तर छात्र भी अपनी बात को क्रमवार लिपिबद्ध नहीं कर पा रहे हैं. वर्तमान समय में उर्दू, कैथी लिपि, अरबी, फारसी के जानकारों का अकाल होता जा रहा है. कचहरी व अन्य कार्यालयों के पुरानी पत्रावलियों व अभिलेखों को पढ़ने वाले ढूढ़े नहीं मिल रहे हैं. संस्कृत के जानकारों का भी यही हाल है. कैथी लिपि के जानकारों का घोर अभाव हो गया है. यही हाल रहा तो, आने वाले एक दशक बाद पत्रावलियों व अभिलेखों को पढ़ कर समझने वालों का टोटा हो जायेगा. ऐसा केवल इसलिए हो रहा है क्योंकि लोग अपने अतीत की ओर झांकना नहीं चाहते. अतीत की कड़ियों से वास्ता नहीं रखना चाहते.
बच्चों की जिज्ञासा के बदल गये विषय : बच्चों में जिज्ञासा उपजने के विषय बदल गये हैं. जिस विषय-वस्तु के बारे में जिज्ञासा नहीं उपजेगी, उसे कोई जानेगा कैसे. आधुनिकता की होड़ में दिनों-दिन बदल रही शिक्षा प्रणाली के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है. पढ़ाई के तरीके और काॅॅन्वेंट स्कूलों में कॉपी किताब के बढ़ते बोझ ने बचपन को संकीर्ण दायरे में समेट दिया है. इस वजह से बच्चों में न केवल उम्र बढ़ने के साथ ही बीमारी बढ़ रही है, बल्कि वे मानसिक विकृतियों के जाल में उलझ रहे हैं.
सोशल मीडिया के माध्यमों के कारण छात्र बौद्धिक संपदा से हो रहे दूर
80-90 के दशक तक स्लेट तख्ती का था प्रचलन
80-90 के दशक तक स्लेट, घूटी (खड़िया) और तख्ती का प्रचलन ग्रामीण इलाकों के विद्यालयों में रहा. लकड़ी की तख्ती को दवात के पेदें से बच्चे इतना घिसते थे कि तख्ती चमकने लगती थी. फिर दवात में मोटे तागे वाली डोरी से तख्ती पर आवश्यकतानुसार खड़ी या बेड़ी लाइन बनाते थे. इसे सत्तर पारना कहा जाता था. उसके बाद कंडा, सांठा, नरकट की कलम से भीगी खड़िया वाली दवात में डुबो कर तख्ती पर लिखा जाता था. कालांतर में तख्ती की जगह स्लेट का चलन बढ़ा , उस पर चाक से लिखा जाने लगा.
जूनियर स्तर पास करने के बाद कॉपी पर लिखने का मौका मिलता था. लिखने के लिए होल्डर और नीब होती थी. नीब भी दो तरह की होती थी. हिंदी के लिए अलग तथा अंगरेजी के लिए अलग नीब होती थी. शीर्षक के लिए क्लिक कलम आती थी. बड़ी कक्षाओं में पहुंचने पर फाउंटेन पेन से लिखा जाता था. पेन में स्याही भरी जाती थी. 90 के दशक तक पढ़ाई के तरीकों में याद करने तथा लिखने पर अधिक जोर दिया जाता था. कक्षा के अलावा इतना होमवर्क मिलता था कि चार- छह पन्ने लिखने ही पड़ते थे. इससे दिमागी ग्राह्य शक्ति के साथ ही लिखावट में क्रमशः सुंदरता भी आती थी.
मशरक थाना क्षेत्र के भीखमपुर गांव के एक छात्र ने गांव की ही एक छात्रा के साथ अवैध संबंध बनाया और उसका अश्लील वीडियो मोबाइल से बना कर लंबे समय तक यौनशोषण करता रहा. किशोरी जब गर्भवती हो गयी, तो इसका खुलासा हुआ. यह मामला थाने तक पहुंचा और पुलिस इसकी जांच में जुटी हुई है.
तरैया थाना क्षेत्र के एक गांव में एक महिला को पड़ोसी युवक ने बहला-फुसलाकर उसके अश्लील वीडियो मोबाइल से बना लिया और महिला के पति के दूसरे राज्य के बड़े शहर में रहने के कारण उसका यौनशोषण शुरू कर दिया. पड़ोसी के शोषण से तंग महिला ने इसकी जानकारी अपने परिजनों को दी. तब यह मामला थाने में पहुंचा. तरैया थाने में इस आशय की प्राथमिकी दर्ज है. पुलिस इसकी जांच कर रही है.
जिले के कोपा थाना क्षेत्र के समहौता गांव की एक महिला को पड़ोसी छात्र ने पहले बहला-फुसला कर अवैध संबंध बनाया और उसका अश्लील वीडियो बनाया. फिर महिला का लंबे समय तक शारीरिक व आर्थिक शोषण करते रहा. इस आशय की प्राथमिकी महिला थाने में दर्ज है. पुलिस इसकी जांच कर रही है.
छपरा शहर के सीबीएसइ से संबद्ध एक विद्यालय में पिछले दिनों छात्रों के दो गुटों में जम कर मारपीट हुई. इस दौरान विद्यालय प्रशासन पूरी तरह असहाय दिखा. मारपीट का कारण मोबाइल से स्कूल में ही पढ़ने वाली छात्राओं का वीडियो बना कर उसे वायरल किया जाना बताया जाता है. शहर के अन्य स्कूलों में भी इस तरह की घटनाएं घट चुकी हैं.
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