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‘प्रोफ़ेसर साहब, कबसे कर रहे हैं होमो सेक्स’?

विनीत खरे बीबीसी संवाददाता, अलीगढ़ जिन तीन ‘पत्रकारों’ ने 2010 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय प्रोफ़सर सीरास के बेडरूम में जबरन घुसकर वीडियो फ़िल्म बनाई, उनमें से आशु रिज़वी आज पत्रकारिता छोड़कर रिएल इस्टेट के बिज़नेस में है. आशु ने 2010 में एक केबल चैनल की फ्रैंचाइज़ी ली हुई थी. हमें बताया गया कि बेडरूम में […]

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जिन तीन ‘पत्रकारों’ ने 2010 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय प्रोफ़सर सीरास के बेडरूम में जबरन घुसकर वीडियो फ़िल्म बनाई, उनमें से आशु रिज़वी आज पत्रकारिता छोड़कर रिएल इस्टेट के बिज़नेस में है. आशु ने 2010 में एक केबल चैनल की फ्रैंचाइज़ी ली हुई थी.

हमें बताया गया कि बेडरूम में आशु के साथ घुसने वाले सिराज आज मीट फ़ैक्ट्री में काम कर रहे हैं जबकि आदिल मुर्तज़ा लख़नऊ में एक उर्दू अख़बार से जुड़़े हैं.

”आप इस सेक्शुअल अवस्था में पाए गए हैं. कब से कर रहे हैं आप?”

आठ फ़रवरी की रात प्रोफ़ेसर सीरास के कमरे में घुसे आदिल मुर्तज़ा, आशु रिज़वी और सिराज के हाथों में कैमरा था और घुसते ही उन्होंने प्रोफ़ेसर रामचंद्र सीरास पर सवालों की झड़ी लगा दी थी.

पार्ट 1- प्रोफ़ेसर सीरास का पार्टनर रिक्शावाला आज कहां है?

इससे पहले प्रोफ़ेसर सीरास कुछ समझ पाते, ‘स्टिंग ऑपरेशन’ करने आए ‘पत्रकारों’ ने दो चैनलों के माइक निकालकर उनके मुँह के सामने रख दिए.

उन्होंने पूछा, ‘आपका शौक कितना पुराना है. कबसे कर रहे हैं. सच बोलिए. हमारे पास सारी जानकारी है. प्रोफ़ेसर साहब सच बोलिए…”

प्रोफ़ेसर सीरास ने आदिल, आशु और सिराज से विनती की. कहा, उनकी तबियत ठीक नहीं है लेकिन तीनों ‘पत्रकार’ नरमी के मूड में नहीं थे.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) द्वारा बीबीसी को दी गई घटना की सीडी में प्रोफ़ेसर सीरास परेशानी में बार-बार अपना सिर पकड़े नज़र आते हैं.

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आख़िरकार प्रोफ़ेसर सीरास कहते हैं, ”आपको जो कुछ छापना है आप छापिए. मुझे कोई परवाह नहीं है.”

प्रोफ़ेसर सीरास मिन्नतें करते हैं कि उनकी तबियत ठीक नहीं है, उन्हें मिर्गी की बीमारी है और ऐसी हालत में वह यह ज़्यादा बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे.

समाचार चैनल एनडीटीवी से बातचीत में प्रोफ़ेसर सीरास ने बताया था कि जो लोग उनके घर में घुसे उन्होंने ‘बहुत बुरे तरीके’ से उनके बात की और वह घटना से बेहद शर्मसार हुए थे.

26 फ़रवरी को हंसल मेहता की फ़िल्म ‘अलीगढ़’ की रिलीज़ से पहले आदिल, आशु और सिराज बेहद संभलकर बात कर रहे हैं.

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कई कोशिश के बावजूद वो मिलने को तैयार नहीं हुए लेकिन आशु और आदिल ने बीबीसी से फ़ोन पर बात की.

आशु इन आरोपों से इनकार करते हैं कि उन्होंने इस कहानी के लिए कहीं से पैसा लिया था. वह कहते हैं कि उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं है. उनके पिता इंजीनियर हैं.

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आशु बताते हैं कि ये रिक्शाचालक अब्दुल (बदला हुआ नाम) ही थे, जो प्रोफ़ेसर सीरास के बारे में शिकायत लेकर आए थे. उनके पास इसके सुबूत हैं.

मीडिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में इस पर चर्चा होती रही है कि इन पत्रकारों को प्रोफ़ेसर सीरास के बारे में कैसे पता चला?

क्या प्रोफ़ेसर सीरास के किसी पड़ोसी ने उन्हें इस बारे में बताया? क्या ये किसी रिक्शेवाले या प्रोफ़ेसर का काम था?

वह कहते हैं, ”जब ये न्यूज़ हो गई, तो हमने (अब्दुल से) कहा कि तुम हमें लिखित में दो कि हमारे साथ ऐसा हो रहा है. उसने लिखित में दिया था. उसका अंगूठा लगा हुआ है.”

हालांकि अब्दुल इससे इनकार करते हैं कि वह कभी भी किसी पत्रकार के पास प्रोफ़ेसर सीरास की शिकायत लेकर गए थे. लेकिन किसी के बेडरूम में घुसकर कैमरा तान देना, यह कैसी पत्रकारिता है?

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आशु कहते हैं, ”हमें अगर कोई बता रहा है कि यहां पॉश इलाके में रिक्शेवाले का उत्पीड़न हो रहा है, तो हमारे लिए वह समाचार था. हमें टार्गेट बना दिया. इसमें ऐसा कुछ भी नहीं था जिसमें आदमी जेल जाए.”

उन्होंने बताया कि तीनों ने दो-दो दिन जेल में बिताए थे.

आशु का दावा है विश्वविद्यालय ने प्रोफ़ेसर सीरास को परेशान किया और बिना जांच के उनका बिजली-पानी का कनेक्शन काट दिया.

आदिल और आशु दोनों को इससे परेशानी है कि फ़िल्म बनाने से पहले उनसे किसी ने बात नहीं की.

आदिल कहते हैं, ”अगर मुझसे कंसल्ट करते तो फिल्म और रोचक हो सकती थी. मैं गुमनामी की ज़िंदगी जीता रहा. पिक्चर रिलीज़ करने से पहले मेरी सहमति लें, मुझे फिल्म दिखाई जाए.”

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विश्वविद्यालय के पीआरओ राहत अबरार को प्रोफ़ेसर सीरास की मौत का अफ़सोस है लेकिन उनकी बातों से साफ़ है कि प्रशासन में उन्हें लेकर क्या सोच है.

राहत अबरार के मुताबिक़ यह पेड सेक्स का मामला था.

वह कहते हैं, ”उनकी (प्रोफ़ेसर सीरास की) बीवी इतनी दुखी थीं कि वह उनसे अलग हो गई थीं. उन्होंने (सीरास ने) महाराष्ट्र में भी अपराध किया था.”

प्रोफ़ेसर सीरास आज इन आरोपों का जवाब देने के लिए दुनिया में नहीं हैं.

रिक्शाचालक अब्दुल ने बीबीसी से कहा था कि न उन्होंने कभी प्रोफ़ेसर सीरास से पैसे मांगे और न उन्होंने कभी उन्हें पैसे दिए.

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