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क्या मोदी सरकार ने बर्र के छत्ते में हाथ डाला?

प्रमोद जोशी वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से जादवपुर विश्वविद्यालय तक छात्र आंदोलन और जींद से झज्जर तक जाट आंदोलन ने केंद्र सरकार को बड़े नाजुक मौके पर साँसत में डाल दिया है. संसद का बजट सत्र शुरू हो रहा है और चार राज्यों में चुनाव के नगाड़े बज […]

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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से जादवपुर विश्वविद्यालय तक छात्र आंदोलन और जींद से झज्जर तक जाट आंदोलन ने केंद्र सरकार को बड़े नाजुक मौके पर साँसत में डाल दिया है.

संसद का बजट सत्र शुरू हो रहा है और चार राज्यों में चुनाव के नगाड़े बज रहे हैं.

जेएनयू के आंदोलन को देखकर लगता है कि मोदी सरकार ने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है.

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‘रष्ट्रद्रोह’ बनाम ‘राष्ट्रभक्ति’ का मुद्दा उठा सकती है भाजपा

राष्ट्रवाद और देश-द्रोह की बहस में मोदी सरकार अपने फ़ायदे का सौदा देख रही है, पर पार्टी के भीतर की एकता सुनिश्चित नहीं है.

जब भी नरेंद्र मोदी-अमित शाह नेतृत्व बैकफुट पर आया है, पार्टी के ‘दिलजलों’ ने खुशियाँ मनाई हैं.

साल 2002 के बाद से ही नरेंद्र मोदी अपने विरोधियों के निशाने पर हैं. पर पहले उन्हें अपने राज्य और राष्ट्रीय नेताओं का समर्थन मिलता था.

उनकी आज की रणनीति यही है कि ‘कोर वोटर’ उनकी ढाल बने. पर मामला पूरे देश का है, एक प्रदेश का नहीं.

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रोहित वेमुला के समर्थन में रैली

बहरहाल मोदी ने ‘विरोधियों की साजिश’ की ओर इशारा किया है.

कन्हैया के मुक़ाबले रोहित वेमुला की आत्महत्या से पार्टी ज्यादा घबराई हुई है. उसे उत्तर प्रदेश के दलित वोटरों की फ़िक्र है. दलित वैसे उसके पारंपरिक वोटर नहीं हैं, पर उनके एक हिस्से को वह अपनी ओर खींचना चाहती है.

उधर जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के साथ बिगड़ती बात एक बार फिर ढर्रे पर आ रही है.

यह सत्र कांग्रेस को आख़िरी मौका देगा. उसके पास ज्यादा समय नहीं है.

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इस साल जून के बाद राज्यसभा की 76 सीटों पर चुनाव होंगे. समझा जाता है कि कांग्रेस की स्थिति पहले के मुक़ाबले कमज़ोर होगी. यह आने वाले वर्षों में और क़मजोर हो सकती है.

भाजपा को फ़ायदा हुआ भी तो इस बजट सत्र में तो नहीं होगा.

मोदी सरकार युवा उम्मीदों की जिस लहर पर सवार थी, वह लहर अब उतार पर है.

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शेयर बाजार नाराज़ है, रुपए का गिरना जारी है. ‘मेक इन इंडिया’ के जश्न के बीच वोडाफ़ोन को पुराने टैक्स की भरपाई के नोटिस से विदेशी निवेशकों का माथा ठनका है. क्या कांग्रेस इसका फ़ायदा उठा पाएगी?

रेल बजट, आर्थिक समीक्षा और आम बजट से मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की दशा और दिशा साफ़ होगी. पर उसकी सामाजिक राजनीति भँवरों में लिपटी है.

संघ परिवार, पार्टी-संगठन और सरकार सबकी दिशा एक नहीं है. संघ और सरकार के एजेंडा में एकरूपता नहीं है.

साल 2014 के नशे में पार्टी ने अपनी ताक़त को ग़लत आँका. उसके विरोधियों ने सबक सीखा. उन्होंने उसे संसद में घेरा.

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सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव के लिए अध्यादेश का सहारा लिया, पर वह अब तक इससे जुड़ा विधेयक पास कराने में कामयाब नहीं हो पाई है.

यही स्थिति जीएसटी विधेयक की है. इसके अलावा व्हिसिलब्लोअर संरक्षण, औद्योगिक (विकास और नियमन) और हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट के जजों के वेतन से जुड़े विधेयक भी राज्यसभा में रुके पड़े हैं.

भ्रष्टाचार रोकथाम, दिवालिया घोषित करने से जुड़ा कोड, रियल एस्टेट रेग्युलेशन, फैक्ट्री संशोधन और आरबीआई एक्ट जैसे विधेयकों का अर्थव्यवस्था से सीधा रिश्ता है.

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक़, कामकाज के लिहाज से पिछले साल का बजट सत्र पिछले 15 साल में सबसे अच्छा था.

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राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी

लेकिन उसके बाद के दोनों सत्र नाकाम रहे. राज्यसभा का हाल ज़्यादा बुरा रहा. पिछले सत्र के अंतिम दिन सभापति हामिद अंसारी ने सांसदों को उन बातों से बचने की सलाह दी, जिनसे राज्यसभा की गरिमा कम होती है.

बजट सत्र ठीक से चले, इसके लिए कोशिशें हो रहीं हैं. राज्यसभा के सभापति, लोकसभा अध्यक्ष और संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू ने अलग-अलग सर्वदलीय बैठकें बुलाईं.

राज्यसभा के सभापति की ओर से बुलाई गई बैठक में विपक्ष ने भरोसा दिलाया है कि कामकाज ठीक होगा. उन्होंने विधेयक पारित करने में सहयोग करने के लिए अपनी शर्तें भी गिनाईं.

बहरहाल, यह तय है कि 16 मार्च को ख़त्म होने वाले सत्र के पहले भाग में जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण विधेयकों पर बहस नहीं होगी.

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पिछला रेल बजट सुरेश प्रभु ने पेश किया था.

बजट, रेल बजट और आर्थिक समीक्षा के अलावा बाकी समय राजनीतिक सवालों पर चर्चा होगी.

बजट सत्र के पहले दिन 23 फ़रवरी को राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद 24 को जेएनयू का मामला उठ सकता है. भाजपा को लगता है कि जेएनयू पर चर्चा राष्ट्रवाद के मुद्दे पर होगी, जो उसके लिए अच्छा है.

जेएनयू के अलावा कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति, पत्रकारों पर हमले, रोहित वेमुला, अरुणाचल का घटनाक्रम और किसानों की दशा पर भी बहस होगी.

यह देखना दिलचस्प होगा कि अगले दो हफ़्तों की राजनीतिक चर्चा में बाज़ी कौन मारता है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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