बालू खनन के जरिये पंचायतों को रायल्टी देने का प्रावधान पहले भी था. खनिज विभाग की नियमावली के तहत बालू घाटों का प्रबंधन पंचायतों के जरिये करवाने की व्यवस्था थी. मगर व्यावहारिक तौर पर इस प्रावधान का इस्तेमाल कम ही हो पाता था. उसी दौर में धनबाद के दस पंचायतों में ऐसा ही एक प्रयोग हुआ जिसमें पंचायतों के जरिये बालू घाटों का प्रबंधन किया गया और इस काम की वजह से पंचायतों को जो रॉयल्टी मिली उससे पंचायतों ने अपने इलाके में कई मनोनुकूल काम कराये. इस प्रयोग में धनबाद के जिला प्रशासन और खास तौर पर तत्कालीन जिला पंचायतराज पदाधिकारी एनके लाल की महती भूमिका रही. यह इलाके में नजीर के रूप में देखा जाता है.
फिलहाल मधुपुर में पदस्थापित एनके लाल कहते हैं कि हमने इसमें कुछ विशेष नहीं किया है. बस जो सरकारी प्रावधान हैं उसी का ठीक से पालन किया है. वे बताते हैं कि उन्हें इस प्रक्रिया में पंचायतों से लेकर जिला प्रशासन के अधिकारियों का भरपूर सर्मथन मिला और इसी वजह से यह काम मुमकिन हो पाया.
क्या थी प्रक्रिया
इस बंदोबस्त की प्रक्रिया के बारे में बताते हुए एनके लाल कहते हैं कि उन्होंने सबसे पहले सभी पंचायतों से एनओसी लिया कि वे अपने क्षेत्र में स्थित बालू घाटों से बालू निकलवाने के पक्ष में हैं. उन्हें इस बारे में कोई आपत्ति नहीं है. इसके बाद संबंधित घाटों पर बालू निकलवाने के लिए जिला स्तर पर नीलामी करवायी. यह निविदा तत्कालीन उपायुक्त सुनील कुमार बर्णवाल के नेतृत्व में निकाली गयी और जिला खनन पदाधिकारी ने इसका समन्वय किया. नीलामी में जो ठेकेदार सफल हुए उनके नाम से घाटों की बंदोबस्ती की गयी.
राशि पंचायतों को आवंटित
वे कहते हैं, लीज से मिली राशि के 80 फीसदी हिस्से का आवंटन नियमानुसार पंचायतों को किया जाना था. इसके लिए पहले राशि जिला पंचायती राज पदाधिकारी के यानी मेरे पास भेजी गयी. मैंने विभित्र पंचायतों को उसके हिस्से की राशि स्थानांतरित कर दी. यह राशि उनके हिस्से की थी और उन्हें इसे अपने पंचायतों के विकास में खर्च करना था. मगर हमने उन्हें इसके लिए अकेला नहीं छोड.ा.
खर्च के संबंध में निर्देश
हमने पंचायतों को इस संबंध में निर्देश दिये कि इस राशि का उपयोग मनरेगा के इतर ऐसी योजनाओं में करें जिसमें मनरेगा का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. जैसे स्कूल, स्कूल की बाउंड्री, रोड इत्यादि. वे कहते हैं, हमने न सिर्फ पंचायतों को इस संबंध में गाइडलाइन दी बल्कि जरूरत पड.ने पर पंचायतों के साथ मिलकर इस राशि को समुचित तरीके से व्यय करने में मदद की. वे बताते हैं कि उन्होंने इस परियोजना के तहत टुंडी पूर्वी और टुंडी में इसे बेहतरीन तरीके से लागू करने की जिम्मेदारी उनकी थी जहां इस परियोजना का बड़ा हिस्सा लागू हुआ.
बहरहाल इस परियोजना की वजह से संबंधित पंचायतों में विकास की कई परियोजनाएं लागू की गयीं. टुंडी प्रखंड के तीन पंचायतों एवं पूर्वी टुंडी के चार पंचायतों बालू डाक के सेस की राशि मिली थी. जिसमें विकास के निम्न कार्य हुए .पूर्वी टुंडी
चुरूरिया : पंचायत के मुखिया राजेंद्र सिन्हा ने बताया उन्हें बालू मद से 27,54,000 रुपये की राशि मिली थी जिसमें सभी राशि विकास कार्य में खर्च कर दिये गये. उनके पंचायत में कुल 29 योजनाएं ली गयी जिसमें पीसीसी, नाली निर्माण एवं चबूतरा प्रमुख हैं. 25 योजनाएं पूर्ण है.
उकमा : पंचायक के मुखिया अविराम ने बताया उन्हें बालू मद से 37,15,000 की राशि प्राप्त हुई थी. जिससे 30 योजनाएं ली गयी. 17 पीसीसी कार्य पूर्ण है. जबकि चार का कार्य चल रहा है. तीन नये पीसीसी का प्रस्ताव लिया गया है जबकि तीन नाली और गार्डवाल का कार्य प्रगति में है. कुल प्राप्त मद से लगभग आठ लाख की राशि बची हुई है जो चल रहे कार्य के पूर्ण होते ही समाप्त हो जायेगी.
मैरानवाटांड. : मुखिया विपिन बिहारी दा ने बताया उन्हें इस मद में 4,50,000 राशि मिली थी जिससे चार पीसीसी एवं एक कूप मरम्मत कराया गया. कार्य पूर्ण और राशि भी शेष है.
मोहलीडीह : पंचायत की मुखिया शांति बाला मिंज ने बताया उन्हें इस मद में 17,84,000 राशि प्राप्त हुई, जिससे 17 योजनाएं ली गयी. 13 पीसीसी, एक नाली व तीन नये चापानल गड.वाये गये. राशि लगभग पूर्ण है.
टुंडी
टुंडी प्रखंड के तीन पंचायत क्रमश: रतनपुर, कोलहर एवं लुकैया में बालू मद से राशि मिली थी.
रतनपुर : मुखिया भारती देवी ने बताया उन्हें बालू मद से आठ लाख राशि मिली थी. जिससे पीसीसी सात, एक कलवर्ट बनवाया गया है. इसके अलावा एक शेड बनाया गया है जबकि पंचायत भवन का चाहर दिवारी प्रस्तावित है.
कोलहर : मुखिया किशोर रजवार ने बताया उन्हें इस मद में 9.34 हजार की राशि मिली है. जिससे दो कलवर्ट एवं सात पीसीसी बनवाये गये है राशि समाप्त है.
लुकैया : मुखिया मनोज मुर्मू ने बताया उन्हें इस मद में 6.48 हजार राशि प्राप्त हुई थी जिससे योजनाएं ली गयी है जिसमें से पांच पीसीसी, एक नाली व पंचायत भवन मरम्मत कार्य है.चंद्रशेखर सिंह
बालू खनन के जरिये पंचायतों को रायल्टी देने का प्रावधान पहले भी था. खनिज विभाग की नियमावली के तहत बालू घाटों का प्रबंधन पंचायतों के जरिये करवाने की व्यवस्था थी. मगर व्यावहारिक तौर पर इस प्रावधान का इस्तेमाल कम ही हो पाता था. उसी दौर में धनबाद के दस पंचायतों में ऐसा ही एक प्रयोग हुआ जिसमें पंचायतों के जरिये बालू घाटों का प्रबंधन किया गया और इस काम की वजह से पंचायतों को जो रॉयल्टी मिली उससे पंचायतों ने अपने इलाके में कई मनोनुकूल काम कराये. इस प्रयोग में धनबाद के जिला प्रशासन और खास तौर पर तत्कालीन जिला पंचायतराज पदाधिकारी एनके लाल की महती भूमिका रही. यह इलाके में नजीर के रूप में देखा जाता है.
फिलहाल मधुपुर में पदस्थापित एनके लाल कहते हैं कि हमने इसमें कुछ विशेष नहीं किया है. बस जो सरकारी प्रावधान हैं उसी का ठीक से पालन किया है. वे बताते हैं कि उन्हें इस प्रक्रिया में पंचायतों से लेकर जिला प्रशासन के अधिकारियों का भरपूर सर्मथन मिला और इसी वजह से यह काम मुमकिन हो पाया.
क्या थी प्रक्रिया
इस बंदोबस्त की प्रक्रिया के बारे में बताते हुए एनके लाल कहते हैं कि उन्होंने सबसे पहले सभी पंचायतों से एनओसी लिया कि वे अपने क्षेत्र में स्थित बालू घाटों से बालू निकलवाने के पक्ष में हैं. उन्हें इस बारे में कोई आपत्ति नहीं है. इसके बाद संबंधित घाटों पर बालू निकलवाने के लिए जिला स्तर पर नीलामी करवायी. यह निविदा तत्कालीन उपायुक्त सुनील कुमार बर्णवाल के नेतृत्व में निकाली गयी और जिला खनन पदाधिकारी ने इसका समन्वय किया. नीलामी में जो ठेकेदार सफल हुए उनके नाम से घाटों की बंदोबस्ती की गयी.
राशि पंचायतों को आवंटित
वे कहते हैं, लीज से मिली राशि के 80 फीसदी हिस्से का आवंटन नियमानुसार पंचायतों को किया जाना था. इसके लिए पहले राशि जिला पंचायती राज पदाधिकारी के यानी मेरे पास भेजी गयी. मैंने विभित्र पंचायतों को उसके हिस्से की राशि स्थानांतरित कर दी. यह राशि उनके हिस्से की थी और उन्हें इसे अपने पंचायतों के विकास में खर्च करना था. मगर हमने उन्हें इसके लिए अकेला नहीं छोड.ा.
खर्च के संबंध में निर्देश
हमने पंचायतों को इस संबंध में निर्देश दिये कि इस राशि का उपयोग मनरेगा के इतर ऐसी योजनाओं में करें जिसमें मनरेगा का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. जैसे स्कूल, स्कूल की बाउंड्री, रोड इत्यादि. वे कहते हैं, हमने न सिर्फ पंचायतों को इस संबंध में गाइडलाइन दी बल्कि जरूरत पड.ने पर पंचायतों के साथ मिलकर इस राशि को समुचित तरीके से व्यय करने में मदद की. वे बताते हैं कि उन्होंने इस परियोजना के तहत टुंडी पूर्वी और टुंडी में इसे बेहतरीन तरीके से लागू करने की जिम्मेदारी उनकी थी जहां इस परियोजना का बड.ा हिस्सा लागू हुआ.
बहरहाल इस परियोजना की वजह से संबंधित पंचायतों में विकास की कई परियोजनाएं लागू की गयीं. टुंडी प्रखंड के तीन पंचायतों एवं पूर्वी टुंडी के चार पंचायतों बालू डाक के सेस की राशि मिली थी. जिसमें विकास के निम्न कार्य हुए .