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अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण सदस्य हैं हमारे बुजुर्ग
शिक्षा, सूचना एवं स्वास्थ्य में सुधार और इस कारण जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के कारण 60 वर्ष से अधिक उम्र के भारतीयों की संख्या 1971-81 के बीच 5.3 फीसदी से बढ़ कर 5.7 फीसदी तथा 1991-2011 के बीच छह फीसदी से बढ़ कर आठ फीसदी हो गयी. लेकिन, देश में वरिष्ठ नागरिकों के लिए समुचित […]
शिक्षा, सूचना एवं स्वास्थ्य में सुधार और इस कारण जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के कारण 60 वर्ष से अधिक उम्र के भारतीयों की संख्या 1971-81 के बीच 5.3 फीसदी से बढ़ कर 5.7 फीसदी तथा 1991-2011 के बीच छह फीसदी से बढ़ कर आठ फीसदी हो गयी. लेकिन, देश में वरिष्ठ नागरिकों के लिए समुचित नीतियां नहीं हैं. अर्थव्यवस्था और समाज में उनकी भूमिका को सम्मान देने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है. दुनिया के कई देशों की तरह भारत में भी, अर्थव्यवस्था में बुजुर्गों के योगदान का सटीक आकलन किया जाना चाहिए.
– ए रविंद्र एवं काला एस श्रीधर
भारत के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) के आंकड़ों के अनुसार, देश में शून्य से 14 वर्ष आयु सीमा की आबादी में लगातार कमी आ रही है. वर्ष 1971-81 के बीच इस आयु वर्ग का हिस्सा 41.2 फीसदी से घट कर 38.1 फीसदी तथा 1991-2011 के बीच 36.3 फीसदी से घट कर 29.5 फीसदी हो गया.
इसके उलट, आर्थिक रूप से सक्रिय आबादी (15-59 वर्ष) का हिस्सा 1971-81 के बीच 53.4 फीसदी से बढ़ कर 56.3 फीसदी और 1991-2011 के बीच 57.7 फीसदी से बढ़ कर 62.5 फीसदी हो गया. शिक्षा, सूचना एवं स्वास्थ्य में सुधार और इस कारण जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के कारण 60 वर्ष से अधिक उम्र के भारतीयों की संख्या 1971-81 के बीच 5.3 फीसदी से बढ़ कर 5.7 फीसदी तथा 1991-2011 के बीच छह फीसदी से बढ़ कर आठ फीसदी हो गयी. जाहिर है, देश में उत्पादक आयु वर्ग में आबादी बढ़ने के साथ ही बुजुर्गों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है.
देश की आयु संरचना में इस बदलाव का क्या अर्थ है? सेवानिवृत्त और शून्य से 14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चे आम तौर पर वैसे उपभोक्ताओं के रूप में देखे जाते हैं, जो बचत, निवेश और सकल घरेलू उत्पादन में योगदान नहीं करते हैं.
हालांकि, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि निर्भर बच्चे इस तरह से अस्थायी तौर पर ही होते हैं और वे भावी मानव पूंजी का प्रतिनिधित्व करते हैं. इस कारण, इनकी शिक्षा और स्वास्थ्य को बेहतर करने और उनमें सहयोग देने की नीतियों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरण के रूप में देखा जाना चाहिए.
इसी तरह वरिष्ठ नागरिकों के मामले को देखें, तो वे भी अर्थव्यवस्था में मुख्य रूप से उपभोक्ता के बतौर भी होते हैं. अनेक सेवानिवृत्त लोग आर्थिक रूप से सक्रिय भी हैं. हालांकि भारत सरकार के कानून के अनुसार हाल में सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद निजी क्षेत्र में कुछ नौकरियां ज्वाइन नहीं कर सकते हैं, पर वे विभिन्न मानद क्षमताओं में अपना योगदान देते हैं.
जो बुजुर्ग घर पर रहते हैं और पारिवारिक कार्यों में मदद करते हैं, वे भी अपने उपभोग द्वारा, जिसका प्रभाव कई गुणा पड़ता है, तथा बचत से आम अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं. इसके अलावा वे आर्थिक तौर पर सक्रिय आबादी के बच्चों की देखभाल में हाथ बंटाते हैं, जो आमतौर पर उनके पोते-पोती होते हैं. लेकिन इन गतिविधियों को राष्ट्रीय आय के लेखा-जोखा में सामान्यतः जोड़ा नहीं जाता है.
ओल्ड इज गोल्ड
बहुत-से देश बुजुर्गों के महत्व और योगदान को रेखांकित करते हैं. वरिष्ठ नागरिकों के लिए न्यूजीलैंड के सामाजिक विकास मंत्रालय में एक विशेष कार्यालय है. रिपोर्टों के मुताबिक, 1990 के दशक के आखिरी वर्षों से न्यूजीलैंड में 65 वर्ष और इससे अधिक आयु के रोजगार में संलग्न लोगों की संख्या करीब तीन गुनी बढ़ कर 1998 के छह फीसदी से 2010 में 17 फीसदी हो गयी है.
उधर, एक आकलन के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था में वरिष्ठ नागरिक सालाना 64 बिलियन डॉलर का योगदान करते हैं. ब्रिटेन के बारे में कुछ अनुमान बताते हैं कि एक साल में बुजुर्ग लोग 1.30 करोड़ से अधिक घंटे काम करते हैं, जिसका मूल्य- जो कि चुकाया नहीं जाता- 3.1 बिलियन डॉलर लगाया गया है.
भारत में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय है, जिसके अंतर्गत सामाजिक रक्षा विभाग है, जो बुजुर्गों से संबंधित है. वरिष्ठ नागरिकों के लिए विभिन्न कार्यक्रम हैं, जिनमें एक समेकित कार्यक्रम भी शामिल है.
इसका मुख्य उद्देश्य आवास, भोजन, स्वास्थ्य सेवा एवं मनोरंजन के अवसर प्रदान कर, तथा उत्पादक एवं सक्रिय बुढ़ापे को विभिन्न संस्थाओं, स्थानीय निकायों और समुदाय की क्षमता-परिवर्द्धन के जरिये प्रोत्साहित कर बुजुर्गों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाना है. इसके अलावा, वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक राष्ट्रीय सम्मान भी है, जिसके तहत बुजुर्गों के लिए कार्यरत व्यक्तियों और संस्थाओं को पुरस्कृत किया जाता है.
हालांकि, जैसा कि हेल्प एज इंडिया के ‘स्टेट ऑफ इंडियाज एल्डरली : 2014’ रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है, भारत बुजुर्गों पर अपने सकल घरेलू उत्पादन का महज 0.032 फीसदी ही खर्च करता है. बुजुर्गों के स्वास्थ्य से संबंधित एक चालू राष्ट्रीय कार्यक्रम देश के करीब 600 जिलों में से सिर्फ 13 में ही लागू है. और, पेंशन का लाभ उन्हीं को मिलता है जो सरकारी सेवाओं में रहे थे.
यद्यपि निजी क्षेत्र के बड़े उद्योग अच्छी सेवानिवृत्ति लाभ देते हैं, लेकिन छोटी इकाइयां, खासकर अनौपचारिक क्षेत्र में, अपने कर्मचारियों को उनकी किस्मत के भरोसे छोड़ देती हैं. यह स्थिति अंतरराष्ट्रीय स्थिति के विपरीत है. अमेरिका जैसे मुख्य रूप से बाजारोन्मुखी देशों में भी कुछ शर्तों के साथ सभी सेवानिवृत्त लोगों को कुछ सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाती है.
– (ए रविंद्र सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवेलपमेंट, स्मार्ट सिटीज ऑफ इंडिया के अध्यक्ष हैं, और काला एस श्रीधर इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज में प्रोफेसर हैं.) (द इकोनॉमिक टाइम्स डॉट कॉम के ब्लॉग से साभार)
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