हमारे देश की आत्मा गांवों में बसती है, जो पढ़े-लिखे नहीं भी होते हैं, वे भी अपने घर को समझदारी से चलाते हैं. अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं. यह जीवन का ज्ञान है. गांव न हों, तो शहरों का अस्तित्व ही नहीं होगा. गांवों में खेती होती है, तभी हमें अन्न खाने को मिलता है. एक सभ्य नागरिक बनो, जिससे हमारे समाज का विकास हो. उसका स्तर ऊपर उठे. यह बात मैं केवल वैभव से नहीं, बल्कि तुम सभी बच्चों से कह रही हूं, क्योंकि तुम हमारे देश के भविष्य हो.
दीनानाथ जी का गांव बहुत एडवांस तो नहीं था, लेकिन पिछड़े में भी नहीं आता था. वैसे भी अब पहले जैसे गांव कम ही हैं. गांव भी विकसित हो रहे हैं और विकास की बयार, तो गांवों में भी बहनी चाहिए. जब उनके बच्चे पढ़ते थे, तो लड़कों व लड़कियों के लिए सरकारी इंटर कॉलेज हुआ करता था, मगर अब गांव में डिग्री कॉलेज व दो इंगलिश मीडियम स्कूल खुल गये थे. दीनानाथ जी ने कहा वैभव मैं तो ज्यादा नहीं पढ़ा. बस इंटर पास हूं, लेकिन हिंदी, उर्दू व अंगरेजी तीनों भाषाओं का ज्ञान है. तुमसे ज्यादा हिंदी व इंगलिश लिटरेचर पढ़ा है. पढ़ने का इतना शौक था कि स्कूल की लाइब्रेरी की तकरीबन सभी किताबें पढ़ डाली थीं और अभी तक पढ़ने का सिलसिला जारी है.
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए जितनी तैयारी तुम जनरल नॉलेज के लिए करते हो, उतना तुम मुझसे अभी पूछ लो. देश-दुनिया में क्या हो रहा है, तुम लोगों को पता ही नहीं. अभी तक तुम्हें अखबार पढ़ने की आदत नहीं है. मुझसे पूछो सब बताऊंगा. तुम्हारी तरह जनरल नॉलेज की किताब नहीं पढ़ता. बस! अपनी आंखें और कान खुले रखता हूं. अखबार न मिले, तो सुबह ही नहीं होती बरखुरदार और तुम अखबार पढ़ो ऐसी सुबह तो तुम्हारी कभी होती ही नहीं. बाबा मानता हूं कि मुङो अखबार पढ़ने की आदत नहीं, लेकिन गांववालों को इतनी नॉलेज नहीं होती, जितनी शहर में पढ़नेवालों को होती है. गांवों में तो अभी गंवार ज्यादा मिलेंगे.
इस बात पर संजेश ने उसे टोकते हुए कहा नहीं वैभव, यहां तुम और ऐसी सोच रखनेवाले गलत हैं, जितने संसाधन उन्हें उपलब्ध हैं उसमें भी वो बेहतर करते हैं. शहर में रहनेवालों के पास सारी सुख-सुविधाएं हैं, लेकिन गांव में इतनी सुख-सुविधाएं नहीं हैं फिर भी उनके पास जो है, उसमें वो अपना सौ फीसदी देते हैं. इन्हीं संसाधनों की कमी के चलते उन्हें शहर आना पड़ता है. गांव के लोग अपने बच्चों को पढ़ने शहर भेजते हैं. वो वास्तव में जीवन की समस्याओं से दो-चार होते हैं, जमीनी हकीकत से जुड़े होते हैं. हम चारों भाइयों और तुम्हारी दोनों बुआओं की स्कूलिंग गांव में हुई और आज देखो हम कहां-से-कहां पहुंच गये. हमारी नींव मजबूत थी. इसलिए हमने मेहनत से उस पर सुंदर भविष्य बनाया.
बीच में ही बोलते हुए शारदा देवी ने कहा कि इसलिए गांववालों को कभी गंवार मत समझना. हमारे देश की आत्मा गांवों में बसती है और जो पढ़े-लिखे नहीं भी होते हैं, वे भी अपने घर को समझदारी से चलाते हैं और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं. यह जीवन का ज्ञान है. गांव ना हों, तो शहरों का अस्तित्व ही नहीं होगा. गांवों में खेती होती है, तभी हमें अन्न खाने को मिलता है. तुम्हारे बाबा जरूर पढ़े-लिखे हैं, पर मैंने तो स्कूल का मुंह भी नहीं देखा. बाबूजी ने ही घर में अक्षर ज्ञान करा दिया था. बस! लिखना-पढ़ना जानती हूं. फिर भी तुम्हारे पापा, चाचा और बुआ को क्या लिखाया-पढ़ाया नहीं? मुङो गर्व है अपने बच्चों पर कि वे एक सफल कर्मयोगी होने के साथ-साथ अच्छे इनसान भी हैं. बेटा, एक बात हमेशा याद रखना, विद्यार्थी में पढ़ने-सीखने की लगन होनी चाहिए. अच्छे नामी स्कूलों व इंगलिश मीडियम में पढ़नेवाले बच्चे ही जीवन में सफल नहीं होते. हिंदी मीडियम से पढ़े बच्चे भी टॉपर होते हैं. रिक्शा चलानेवाले और मजदूरों के बच्चे भी बड़ी-बड़ी प्रतियोगिताओं में सफल होते हैं. काबुल में सब घोड़े नहीं होते.
शहर, स्कूल चाहे कोई भी हो, परीक्षाओं में सफलता बच्चे की काबिलियत, उसके परिवार, स्कूल, संस्कारों और उसकी संगत पर निर्भर करती है. सबसे बड़ी बात यह है कि वह किस तरह और कितनी ईमानदारी से परीक्षाओं की तैयारी करते हैं. हम भी गांववाले ही हैं, क्योंकि हम गांव में ही पले-बढ़े हैं, तो क्या हम गंवार है? कुछ भी बनने से पहले वैभव पहले एक अच्छे इनसान बनो. एक सभ्य नागरिक बनो, जिससे हमारे समाज का विकास हो. उसका स्तर ऊपर उठे और यह बात मैं केवल वैभव से नहीं, बल्कि तुम सभी बच्चों से कह रही हूं, क्योंकि तुम हमारे देश का भविष्य हो. तुम लोगों के सही रास्ते पर चलने से ही हमारे देश की उन्नति होगी. ये बात हमेशा याद रखना.