बीजेपी के ‘बाग़ी’ सांसद कीर्ति आज़ाद ने पार्टी नेता अरुण जेटली पर डीडीसीए में वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाए हैं.
आज़ाद को पार्टी ने अनुशासनहीनता के आरोप में निलंबित कर दिया है. इसे वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह एक ज़रूरी क़दम बताते हैं. पढ़ें उनकी राय.
कीर्ति आज़ाद बीजेपी के लिए गले की हड्डी बन गए थे. किसी भी पार्टी या संगठन में एक न्यूनतम अनुशासन की ज़रूरत तो होती ही है, जिसे कीर्ति आज़ाद बहुत पहले तोड़ चुके थे.
अनुशासन तोड़ने वाले ऐसे और भी लोग है. अगर पार्टी से कोई असंतुष्ट है और आपको लगता है कि आपकी पार्टी के अंदर नहीं सुनी जा रही है, तो आप स्वतंत्र हैं पार्टी छोड़ने के लिए.
आरोप लगाने वाले पर भी आरोप साबित करने की ज़िम्मेवारी होती है. अगर किसी के पास प्रमाण है तो उसके लिए अदालत है, लेकिन जो लोग सड़कों पर इसका फ़ायदा उठाना चाहते हैं, उनकी बात पर संदेह होता है.
सड़क पर तो राजनीतिक लड़ाई ही लड़ी जाती है. पार्टी में रहते हुए पार्टी के ख़िलाफ़ काम करना, ये दोनों चीज़ें एक साथ नहीं चल सकतीं.
बहुत पहले एक संपादक ने लिखा था कि व्यवस्था की बुराइयों से समझौता करके ही आप सत्ता की कुर्सी पर बैठ सकते हैं.
इसलिए चुनाव के पहले और चुनाव के बाद पार्टियों के लिए स्थिति अलग-अलग होती है.
बीजेपी ने सत्ता के लोभ में आकर वह नहीं किया, जिसे उसे पहले ही कर लेना था.
आम आदमी पार्टी ने जब बीजेपी पर हमला किया तो शत्रुघ्न सिन्हा, अरविंद केजरीवाल से मिले फिर बिहार में नीतीश कुमार से मिले.
सारी सीमाएं तो वे लांघ रहे हैं, लेकिन पता नहीं क्यों बीजेपी बर्दाश्त कर रही है.
कूटनीति ज़रूरी होती है लेकिन कूटनीति के लिए अनुशासन को गिरवी नहीं रखा जा सकता.
कीर्ति आज़ाद ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ मिलकर वित्त मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली के ख़िलाफ़ दिल्ली और ज़िला क्रिकेट संघ में कथित घोटालों का इल्ज़ाम लगाया था.
(वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह से रोहित जोशी की बातचीत पर आधारित)
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