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शादी के बाद गुस्सा कम आता है : सैफ

‘एंजेट विनोद’, ‘कॉकटेल’ व ‘रेस 2’ के बाद अभिनेता सैफ अली खान ‘बुलेट राजा’ में माफिया के लुक में नजर आयेंगे. निर्देशक तिग्मांशु धूलिया की इस फिल्म में सैफ राजा मिश्र नाम के माफिया की भूमिका निभा रहे हैं. इस रोल को लेकर सैफ बेहद उत्साहित हैं. सैफ के साथ उर्मिला कोरी की खास बातचीत […]

‘एंजेट विनोद’, ‘कॉकटेल’ व ‘रेस 2’ के बाद अभिनेता सैफ अली खान ‘बुलेट राजा’ में माफिया के लुक में नजर आयेंगे. निर्देशक तिग्मांशु धूलिया की इस फिल्म में सैफ राजा मिश्र नाम के माफिया की भूमिका निभा रहे हैं. इस रोल को लेकर सैफ बेहद उत्साहित हैं. सैफ के साथ उर्मिला कोरी की खास बातचीत के मुख्य अंश.

‘बुलेट राजा’ में ऐसा क्या खास है, जो आप अभिनेता के साथ निर्माता के तौर पर भी इससे जुड़े?
कई सारे वजहें हैं. बचपन से ही मुङो चोरपुलिस खेलने में मजा आता है. हमेशा से एक्शन फिल्में मेरी कमजोरी रही हैं. बुलेट राजा एक एक्शन फिल्म है, इसलिए हां कह दी. पान सिंह तोमरजैसी फिल्म बना चुके तिग्मांशु इसके निर्देशक हैं, तो मैं निर्माता भी बन गया.

यह फिल्म बहुत हद तक ओंकारा की याद दिला रही है?
पता नहीं, क्यों लोग इसकी तुलना ओंकारा से कर रहे हैं? शायद फिल्म उत्तर भारत की पृष्ठभूमि पर है, इसलिए. लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है. यह तिंग्माशु की तरह की फिल्म है. जिस तरह की फिल्में वह करते आये हैं. यह एक गैंगस्टर राजा मिश्र की जिंदगी की कहानी है. वह काफी इंटेलिजेंट है, लेकिन थोड़ा गुस्सैल भी है. उसे अच्छी जॉब नहीं मिल पाती और वह करप्ट सिस्टम के खिलाफ अपने अंदाज में आवाज उठाता है. इस फिल्म की कहानी के साथसाथ बेहतरीन एक्शन इसकी यूएसपी है. एकदम देहाती एक्शन. इसे करते हुए हम सभी को बहुत चोटें भी आयी थीं. मेरी चोट को देखकर निर्देशक साजिद खान ने कहा भी कि बस लवस्टोरी और रोमांटिक फिल्में करो. अब एक्शन मत करना. वरना एक उम्र के बाद शरीर में दर्द ही दर्द रहेगा.

क्या आप भी राजा मिश्र की तरह गुस्सैल है?
हां, थोड़ा बहुत हूं या कह सकते हैं था. मैं हमेशा से चाहता था कि काश! मेरे पिता की तरह मेरा टेम्पारेमेट होता. हालांकि अब मेरी जिंदगी में करीना के आ जाने से ठहराव सा आ गया है. अब गुस्सा भी कम ही आता है. छोटीछोटी चीजें खुशी देती है. पेड़ और हरियाली देखना, ढलता सूरज निहारना, किताबें पढ़ना. यह सब अच्छा लगता है.

आप वेस्टर्न किरदार में ज्यादा फिट नजर आते हैं. ऐसे में माफिया राजा मिश्र बनने में कितनी मेहनत करनी पड़ी?
मैंने भी भारत देखा है. अगर आपने दुनिया देखी है, तो आपको पता होता है कि कहां के लोग कैसा बोलते हैं? कैसे रहते हैं? हां यह जरूर कहूंगा कि बॉडी लैंग्वेज,चाल और संवाद अदायगी पर ध्यान देना पड़ा. शूटिंग करते हुए तिग्मांशु के साथसाथ मॉनिटर भी मेरी खूब मदद करता था. बारबार मॉनिटर देखता था कि कि किरदार में परफेक्ट नजर आ रहा हूं या नहीं.

जब तिग्मांशु की इस फिल्म से आप जुड़े थे, तभी यह चर्चा शुरू हो गयी थी कि आप दोनों बिल्कुल अलग अंदाज के हैं. शूटिंग के दौरान आपने उन्हें कितना अलग पाया?
सच कहूं, तो हम इतने भी अलग नहीं हैं. इन्हें उर्दू और हिंदी भाषा में भले ही महारत हासिल हो लेकिन कहीं न कहीं हम दोनों एक जैसे ही हैं. खासकर संगीत को लेकर हमारी सोच एक ही है. रॉक बैंड डीप पर्पल हमदोनों का पसंदीदा बैंड है. सिर्फ यही नहीं उनका एक गिटारिस्ट हैं रिची, जो उस बैंड में मुङो बहुत पसंद है. कमाल की बात यह है कि वही गिटारिस्ट तिग्मांशु को भी पसंद है.

अक्सर यह बाते सामने आती है कि जब कोई स्टार किसी दो-तीन फिल्म पुराने निर्देशक के साथ काम करता है, तो वह फिल्म मेकिंग पर हावी हो जाता है.

तिग्मांशु बहुत स्ट्रांग हैं. उन्हें पता है कि उन्होंने क्या लिखा है और वे अपने एक्टर से क्या चाहते हैं. कुछ अच्छा आइडिया हो, तो वे सुन जरूर लेते हैं लेकिन करते अपनी हैं. जहां तक मेरी बात है, तो मुङो फिल्ममेकिंग की इतनी समझ नहीं है कि मैं तिग्मांशु को समझाऊं कि यह सीन ऐसे करें या न करें.

एक एक्टर के तौर पर बॉक्स ऑफिस का प्रेशर महसूस करते हैं?
एक उम्मीद होती है, हर फिल्म से. बुलेट राजामें बेहतरीन गाने हैं, कॉमेडी है और भी मसाले हैं. सबकुछ है, तो चाहेंगे कि चलनी चाहिए यार. फिल्म चलती है, तो अच्छा लगता है. खुदा ना खास्ता नहीं चलती, तो बुरा लगता ही है.

इंडस्ट्री में ‘खान ब्रिगेड’ की बात होने पर अकसर आमिर, सलमान और शाहरुख का ही जिक्र होता है?
मैंने जितना भी एचीव किया है, वह बुरा नहीं है. मैं भी अच्छी फिल्में कर रहा हूं. अपनी पहली फिल्म से लेकर अब तक बतौर परफॉर्मर मैं अपने इंप्रूवमेंट से खुश हूं. कुछ एक साल पर नजर डालें तो मैं अलगअलग तरह की फिल्मों से जुड़ा हूं. कुल मिलाकर मैं खुश हूं. वैसे आमिर, सलमान और शाहरुख ने बहुत कुछ किया है. मैं उनके साथ अपनी तुलना नहीं चाहता. इसका मुङो मलाल भी नहीं है.

एक निर्माता के तौर पर किस तरह की फिल्में आपकी प्राथमिकता होती हैं? ‘बुलेट राजा’ जैसी रियालिस्टिक फिल्में या ‘गो गोवा गॉन’जैसी फन फिल्में.रियल शब्द बहुत खतरनाक है. निर्माता के तौर पर मेरा मजेदार चीजों से लेनादेना है. जो दर्शकों का मनोरंजन कर सके, फिर चाहे वह रियालिस्टिक की पैकेजिंग में आये या फन की. वैसे अभी फिल्मों का अच्छा दौर चल रहा है. फिल्मों की क्वालिटी बहुत ही अच्छी हो गयी है. जल्द ही बतौर निर्माता मेरी फिल्म हैप्पी एंडिंगआ रही है. इसमें गोविंदा और प्रीति जिंटा हैं.

करीना के साथ फिर कब स्क्रीन शेयर करेंगे?
अच्छी कहानी की तलाश में हैं. कहानी मिल जायेगी, तो दोनों साथ काम कर लेंगे. मुङो समझ नहीं आता कि लोग हमें क्यों साथ देखना चाहते हैं. अरे भाई अपनी बीवी से स्क्रीन पर भी रोमांस करूं क्या? थोड़ा तो दूसरी हीरोइनों के साथ भी मौका मिलना चाहिए. भले ही ऑन स्क्रीन ही सही. मैं और करीना कितना टाइम साथ गुजारेंगे. घर पर साथ होते ही है, अब सेट पर भी हो जायें. इतना भी साथ न हो कि पागल हो जाएं (हंसते हुए). थोड़ा मिस करने दो.

आप दोनों ही अपने-अपने कैरियर को लेकर बिजी हैं. ऐसे में साथ में समय गुजारने का कितना मौका मिल पाता है?
वक्त तो मिलता है. हां, कोशिश करनी पड़ती है. शूटिंग के वक्त पर्सनल लाइफ को भी पूरा समय मिलता है. हां, प्रोमोशन के वक्त कम समयमिलता है.

सैफ कितने नवाबी हैं?
नवाबी वाली बात मेरी समझ में नहीं आती है. मैं बताना चाहूंगा कि बचपन से ही हम बहुत अनुशासन में पले हैं. हमें न तो ज्यादा पैसे मिलते थे और न मनमानी करने की छूट. सभी से तमीज से बात करनी होती थी. मेरे कई दोस्त बिजनेसमैन फैमिली से थे. उन्हें जितने पैसे और छूट मिलती थी, उतना तो हम सपने में भी नहीं सोच सकते थे. नवाबी वाली इमेज लोगों के दिमाग में गलत है. मैं ही नहीं, मेरे पिता भी बिल्कुल नवाबी नहीं थे. दादापरदादा भी नहीं थे. पटौदी परिवार में कोई बिगड़ैल या अय्याश नहीं था. दादापरदादा तो शराब को हाथ तक नहीं लगाते थे.

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