डुडूम नाम से बस्तर में जानी पहचानी मछली को जानकार लोग बड़े चाव से खाते हैं. इसकी एक बड़ी वजह इस मछली में अधिक ऊर्जा का होना माना जाता है. शाकाहारी भले ही इसे खराब माने पर डुडूम के शौकीनों के लिए इसे उड़ीसा से लाया और बेचा जाता है. डुडूम मछली संजीवनी बूटी से कम नहीं है. इसके सेवन मात्र से शरीर को अतिरिक्त ताकत मिलती है.
भीषण गर्मी में तालाबों या अन्य जल स्त्रोतों में पानी का स्तर कम होने के बाद डुडूम का शिकार आसान हो जाता है. बस्तर में छोटे-छोटे तालाबों की संख्या हजारों में है. हर गांव में औसतन पांच-छह तालाब होते ही हैं.
डुडूम की कई विशेषताएं हैं. यह जानकार बहुतों को आश्चर्य होगा कि यह पानी के बिना भी आराम से दो तीन दिन तक गुजार सकती है. देखने में हूबहू सर्प जैसी यह मछली सर्प से सिर्फ इस मायने में भिन्न है कि इसके सिर के नीचे दो गलफड़े होते हैं. जब यह रेंग कर सर्प की तरह जमीन पर चलती है तो धोखा हो जाता है कि यह मछली है या सर्प. जीव विज्ञान के जानकार इसे मछली और सर्प के बीच की प्रजाति मानते हैं.
इस मछली को बहुत ही पौष्टिक माना जाता है. ग्रामीण इसके सिर को अलग करके उसके खून को पुराने कच्चे चावलों में मिला कर सुखा देते हैं. फिर उसे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कमजोर बच्चों व स्त्रियों को सेवन कराया जाता है. इससे उनमें जीवन शक्ति का संचार होता है. माना जाता है कि इस मछली का खून इंसानी खून से मिलता जुलता है.
इसके वृहद बाजार व पौष्टिकता के गुण के चलते अब इसकी संकर नस्लें भी तैयार की गई हैं. जिसका उत्पादन तो भरपूर है पर इसका सेवन करने वाले बताते हैं कि फार्मी डुडूम न तो स्वादिष्ट है और न ही पॉवरफुल है. हालांकि कीमत में राहत मिल जाती है. फार्मी डूडूम देसी की तुलना में काफी सस्ती होती है पर देशी डुडूम की बात ही कुछ और है.