दक्षा वैदकर
एक-सी परिस्थिति में दो व्यक्तियों में से एक कहीं पहुंच जाता है और दूसरा वहीं का वहीं पड़ा रहता है. ऐसा क्यों होता है? इसका कारण एक यह भी है कि सभी लोग अपनी आत्मा की आवाज नहीं सुनते हैं. हर व्यक्ति के शरीर में आत्मा का वास है. आत्मा ही परमात्मा का अंश है. प्रत्येक आत्मा ईश्वरीय गुणों से ओत-प्रोत है. यह निरंतर प्रेरित होती है. ईश्वर से उसे निरंतर अंदर से सत्कार्य की प्रेरणा मिलती है. उस आत्मप्रेरणा को सभी ग्रहण करते हैं.
अधिकतर लोग आत्मप्रेरणा की अवहेलना करते हैं. आत्मा की आवाज को अनसुना कर देते हैं. आत्मा से बार-बार आवाज गूंजती है. अच्छे-अच्छे कार्य करो… आगे बढ़ो… निरंतर ऊंचाईयों पर चढ़ते रहो… ईश्वर के निकट पहुंचने का प्रयास करते रहो. इस आवाज को कौन सुनता है, कुछ मुट्ठी भर लोग. जो लोग इस आत्मप्रेरणा को सुन लेने में सक्षम हैं, वे ही आगे बढ़ते जाते हैं. वे ही निरंतर ऊंचाईयों पर चढ़ते चले जाते हैं. वे ही संसार को कुछ दे जाते हैं.
आत्मा की आवाज सुननेवालों ने ही संसार में नये-नये अविष्कार कर के संसार को सुख, सुविधाएं और वैभव दिया है. आत्म प्रेरित लोगों ने संसार को अपने ज्ञान और विज्ञान से चमत्कृत किया है. यह आत्मप्रेरणा ही तो हैं, जिसने हमें आकार में उड़ने में समर्थ बनाया है. वैसे बहुत से लोग योग्य होते हैं, परंतु वे जीवनभर बहुत कम काम कर पाते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि वे निराशावादी प्रेरणाओं के शिकार होते हैं. वे जब भी किसी काम में हाथ डालते, उन्हें असफलता दिखने लगती है.
इससे उनके मन में लाचारी पैदा होने लगती है. वे स्वयं को लाचार, विवश व कमजोर महसूस करते हैं. उनके मन में हीन भावनाएं घर कर लेती हैं. इससे उनकी कार्यशक्ति नष्ट हो जाती है. ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि भाग्य और कुछ नहीं है, आपके कर्म ही हैं, जिन्हें आप करते हैं. कर्मों से ही भाग्य बनता और बिगड़ता है. आप अपने भाग्य के निर्माता स्वयं ही हैं. विचार ही आपको आपके लक्ष्य तक पहुंचाते हैं. इसलिए व्यर्थ के विचारों को मन में जन्म ही न लेने दीजिए.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
बात पते की..
उस मनुष्य को कभी सफलता नहीं मिल सकती, जो सदा स्वयं को अभागा, कमजोर और बेबस मानता रहता है. आज जैसा सोचेंगे, वैसा फल पायेंगे.
आप खुद को कभी दीन-हीन न समझें. क्योंकि, जिस परमात्मा ने आपको बनाया है, उसकी दिव्य शक्ति आपके अंदर विराजमान है.
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