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इस उपलब्धि का श्रेय चुनाव आयोग को
नयी तकनीक के समावेश से शांतिपूर्ण रहा बिहार विधानसभा चुनाव बिहार में शांतिपूर्ण मतदान के पीछे चुनाव आयोग की कोशिशें जोरदार रहीं. इस बार के चुनाव के लिए आयोग ने खुद को नयी तकनीकों से लैस कर रखा था. जहां आयोग ने पोल पैनल के लिए तीन नये सॉफ्टवेयर्स- ‘सुविधा’, ‘समाधान’ और ‘सुगम’ की रणनीति […]
नयी तकनीक के समावेश से शांतिपूर्ण रहा बिहार विधानसभा चुनाव
बिहार में शांतिपूर्ण मतदान के पीछे चुनाव आयोग की कोशिशें जोरदार रहीं. इस बार के चुनाव के लिए आयोग ने खुद को नयी तकनीकों से लैस कर रखा था. जहां आयोग ने पोल पैनल के लिए तीन नये सॉफ्टवेयर्स- ‘सुविधा’, ‘समाधान’ और ‘सुगम’ की रणनीति अपनायी, जिनकी मदद से नेताओं के प्रचार अभियान, लोगों की शिकायतों के निबटारे और चुनाव कार्यों में इस्तेमाल वाहनों का कुशल प्रबंधन मुमकिन हो पाया, वहीं चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से कई अन्य मौजूदा तकनीकों को भी उन्नत कर रखा था.
इस बारे में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में छपी एक खबर में अतिरिक्त मुख्य चुनाव पदाधिकारी आर लक्ष्मणन ने कहा है, चुनाव लड़नेवाली पार्टियों और उनके उम्मीदवारों की सबसे बड़ी परेशानी यह होती है कि नामांकन दाखिल करने से लेकर चुनाव प्रचार और रोड शो करने के लिए प्रशासनिक स्वीकृति लेने के प्रयास में उन्हें सरकारी दफ्तरों की खाक छाननी पड़ जाती है.
लक्ष्मणन आगे कहते हैं, चूंकि इन प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए उनके पास मात्र 14 दिनों का ही समय मिलता है, ऐसे में हमने ‘सुविधा’ के नाम से एक ऐसे सिंगल विंडो सिस्टम की शुरुआत की, जिसके तहत चुनाव से जुड़ी सारी प्राधिकृतियां एक ही जगह से मिलने लगीं. लक्ष्मणन कहते हैं, ‘सुविधा’ सॉफ्टवेयर के तहत 47,800 आवेदन आये, जिनमें से 99 प्रतिशत का निबटारा 24 घंटों के भीतर कर दिया गया. इनमें सर्वाधिक 56.6 प्रतिशत स्वीकृतियां चुनाव में वाहनों के इस्तेमाल से जुड़ी थीं, वहीं 21 प्रतिशत आवेदन सभास्थलों और लाउडस्पीकरों के लिए स्वीकृतियों के लिए आये थे.
बात करें ‘समाधान’ सॉफ्टवेयर की, तो इसके तहत चुनाव आयोग ने बाकायदा एक जन शिकायत समाधान सिस्टम बना रखा था.
इसके अंतर्गत चुनाव से जुड़ी सारी शिकायतों, चाहे वे व्यक्तिगत रूप से दर्ज की गयी हों अथवा ऑनलाइन, मोबाइल ऐप या हेल्पलाइन के जरिये आयी हों, इन सबको ‘समाधान’ के तहत दर्ज किया गया और तुरंत इसकी कंप्लेंट आइडी शिकायतकर्ता के मोबाइल फोन पर एसएमएस की गयी़ इससे वह जब चाहे, अपनी शिकायत पर होनेवाली कार्यवाही को खुद ट्रैक कर सकता है़ लक्ष्मणन बताते हैं, इस दौरान हमें 7,452 शिकायतें मिलीं, जिनमें पांच नवंबर तक हमने 7,316 का निबटारा कर दिया था.
प्राय: चुनावों में ऐसा देखा जाता है कि चुनाव कार्य के लिए वाहनों की धर-पकड़ के लिए प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ती है़ लेकिन मुख्य चुनाव पदाधिकारी अजय वी नायक कहते हैं कि इस बार इस काम के लिए चुनाव आयोग ने ‘सुगम’ सॉफ्टवेयर तैयार कर रखा था.
यह एक ‘एंड-टू-एंड व्हीकल मैनेजमेंट’ सॉफ्टवेयर है, जिसकी मदद से लगभग 15 प्रतिशत वाहन हमें ट्रांसपोर्टरों ने स्वैच्छिक तौर पर दे दिया. इस सॉफ्टवेयर की मदद से वे अपने वाहनों को किसी भी समय ट्रैक कर सकते थे, कि उनका वाहन किस समय कहां पर है. नायक आगे बताते हैं कि इस सॉफ्टवेयर की मदद से वाहन मालिकों को उनके वाहन के इस्तेमाल के लिए किराया भी जोड़ लिया जाता है, और वाहन छोड़ने के समय वह राशि उसके मालिक को तुरंत दे दी जाती है. पहले दो चरणों के दौरान इस्तेमाल में लाये गये लगभग 98 प्रतिशत वाहनों का किराया, उनके मालिकों को सुपुर्द किया जा चुका है और बाकी लोगों को उनका भुगतान आनेवाले 15 दिनों में कर दिया जायेगा.
बहरहाल, ‘सुविधा’, ‘समाधान’ और ‘सुगम’ के अलावा, बुनियादी चुनाव प्रबंधन के कार्यों के लिए ‘एलिकॉन’ सॉफ्टवेयर और मतदाता सूची में नाम जोड़ने, सुधारने या हटाने जैसे कामों के लिए ‘इलेक्टोरल रॉल मैनेजमेंट’ सॉफ्टवेयर को इस्तेमाल में लाया गया. इसके अलावा, चुनाव आयोग ने टेलीकॉम कंपनियों के सहयोग से चुनाव से जुड़ी जागरूकता लोगों के बीच फैलाने के लिए 25 करोड़ से ज्यादा मैसेजेज लोगों के मोबाइल फोनों में प्रेषित किये. यही नहीं, जिन मतदाताओं के मोबाइल नंबर चुनाव आयोग के साथ पंजीकृत थे, उन 1.8 करोड़ लोगों को ई-वोटर स्लिप भी जारी किये गये.
बात करें एप्लीकेशंस की, तो एंड्रॉयड ऐप ‘मतदाता’ के जरिये मतदाताओं को उनका बूथ और क्रम संख्या जानने में चुनाव आयोग ने मदद की. एक अन्य एंड्रॉयड ऐप ‘मतदान’ की मदद से मतदान की मॉनीटरिंग की गयी. इसके तहत हर विधानसभा सीट के अंर्तगत 10 मतदान केंद्रों में डिजिटल कैमरे इंस्टॉल किये गये थे. लक्ष्मणन बताते हैं कि उपरोक्त लगभग सभी तकनीकी कार्य नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर और राज्य स्तरीय एक टेक्नोलॉजी एजेंसी के सहयोग से किये गये़
बहरहाल, अब बारी आती है वोटों की गिनती की, तो चुनाव आयोग ने इसके लिए ‘ई-काउंटिंग’ सॉफ्टवेयर तैनात किया है, जो ‘रियल टाइम’ में, यानी वोटों की गिनती के साथ ही साथ चुनाव चरणवार डेटा तैयार करता जायेगा. गौरतलब है कि चुनाव आयोग इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी कर चुका है़ इसके अलावा, चुनाव आयोग ने चुनाव कार्य की लाइव निगरानी के लिए 3,236 मतदान केंद्रों में वेबकास्टिंग की भी व्यवस्था कर रखी थी़
लक्ष्मणन बताते हैं कि इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि चुनाव वाले दिन हमें मिली 1,500 असामान्य शिकायतों में से उन मतदान केंद्रों से एक भी नहीं थी, जहां लाइव वेबकास्ट किया जा रहा था़ इसका मतलब यह हुआ कि लाइव वेबकास्ट, मतदान केंद्रों पर होनेवाली अप्रिय स्थिति को रोकने में कामयाब हुआ है़ कुल मिलाकर कहें, तो इन नयी तकनीकों को अपनाकर चुनाव आयोग बिहार में चुनावी फिजा बदलने में कामयाब रहा है़
अाज बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम आ रहे हैं. तमाम तरह के दावों के बीच हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक दशक पहले तक जहां बिहार में चुनाव हिंसा का पर्याय माना जाता था, वहीं इस बार यह लगभग शांतिपूर्ण रहा़ इसके लिए श्रेय देना होगा चुनाव आयोग को, जिसने उम्मीदवारों के नामांकन दाखिल करने से लेकर वोटों की िगनती तक की पूरी प्रक्रिया में नयी तकनीकों का समावेश कर बदलाव की नयी इबारत लिखी है़
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