दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का आज शिलान्यास
सरदार पटेल अचानक चर्चा के केंद्र में आ गये हैं. पिछले पांच दिनों से देश की दो प्रमुख पार्टियां– कांग्रेस और भाजपा सरदार को लेकर एक–दूसरे पर हमला करने में लग गयी हैं. सरदार की विरासत को किसने भुलाया और किसने संभाला, इसे लेकर भी विवाद बढ़ रहा है. इन्हीं विवादों के बीच गुरुवार को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य के आदिवासी बहुल नर्मदा जिले में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का शिलान्यास करने जा रहे हैं.
ये स्टैच्यू ऑफ यूनिटी होगी, सरदार पटेल की. योजना के मुताबिक, नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध से करीब सवा तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित साधुबेट में सरदार की ये प्रतिमा लगेगी.
इसकी ऊंचाई होगी 182 मीटर और इस तरह ये दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा बन जायेगी. हालांकि, शिलान्यास के पहले ही टीवी चैनलों पर मोदी के संदेश के साथ स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के विज्ञापन चलने शुरू हो गये हैं.
इसके जरिये सरदार पटेल की किसान पृष्ठभूमि का जिक्र भी किया जा रहा है और देश भर के किसानों से लोहा दान करने की अपील भी, ताकि सरदार की ये रिकॉर्ड तोड़ प्रतिमा बनाने में उसका इस्तेमाल किया जा सके. ये बात सही है कि सरदार की किसान पृष्ठभूमि रही है. खेड़ा जिले के एक किसान परिवार से ही थे, सरदार पटेल. यहां तक कि वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ का जो उपनाम मिला, वो बारडोली के मशहूर सत्याग्रह के दौरान किसानों की तरफ से ही मिला.
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मील का पत्थर बनने वाले इस सत्याग्रह की अगुआई करीब 53 साल की उम्र में सरदार पटेल ने की थी और इसके जरिये उनकी शोहरत देश भर में फैली. आखिरकार महात्मा गांधी के अनुयायी के तौर पर वो कांग्रेस पार्टी के सबसे शक्तिशाली नेता के तौर पर उभरे. देश आजाद हुआ.
महात्मा गांधी की इच्छा के मुताबिक जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने और सरदार पटेल गृह और सूचना प्रसारण मंत्रलय के प्रभार के साथ उप प्रधानमंत्री.नेहरू और पटेल के बीच टकराव की कहानियां राजनीतिक इतिहास का हिस्सा हैं. उनके बीच सहमति और असहमति के बिंदु कितने थे, इस पर पिछले छह दशक में भी बहस पूरी नहीं हुई है.
ये बात जरूर है कि सरदार जब तक जीवित रहे, कांग्रेस संगठन पर उनकी पकड़ इतनी मजबूत रही कि नेहरू चाह कर भी कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी नहीं कर पाये और सरदार के आगे उन्हें झुकना पड़ा.
मसला चाहे देश के पहले राष्ट्रपति के तौर पर राजेंद्र प्रसाद के चयन का हो या फिर कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर पुरु षोत्तम दास टंडन की जीत का हो. ये किसी से छुपा नहीं है कि पहले राष्ट्रपति के तौर पर नेहरू की पसंद चक्र वर्ती राजगोपालाचारी थे, जबकि टंडन के सामने नेहरू आचार्य कृपलानी को जिताना चाह रहे थे.
असहमतियों और तकरार के ऐसे बड़े नमूने समकालीन इतिहास में ढेरो मिल जायेंगे, लेकिन सत्य ये भी है कि सरदार ने नेहरू को कई महत्वपूर्ण मसलों पर जम कर सहारा भी दिया. कई बार अपनी बात नहीं माने जाने पर नेहरू ने इस्तीफे की धमकी भी दी, लेकिन सरदार ने उन्हें ऐसा करने से रोका.
हालांकि सत्य ये भी है कि इन दोनों नेताओं के बीच संवादहीनता धीरे–धीरे बढ़ती गयी थी और इसी वजह से कई मुद्दों पर गैरसमझ भी पैदा हुई थी. इसका इशारा सरदार की बेटी मणिबेन पटेल ने कई जगह किया है.
1950 में सरदार की मौत के बाद उन्हें भुला देने की कोशिश की गयी, इसका आरोप भाजपा जैसी पार्टियां कांग्रेस पर लगाती रही हैं. इस आरोप के पक्ष में तर्क यह आगे किया जाता है कि आखिर नेहरू, इंदिरा या फिर राजीव गांधी के मुकाबले कितनी तरजीह दी गयी सरदार को.
कितनी योजनाएं सरदार के नाम पर शुरू हुईं, कितनी मूर्तियां लगीं, कितने भवन के नामकरण हुए सरदार के नाम पर, नेहरू–गांधी परिवार के सदस्यों की तुलना में. आरोप तो यहां तक लगते रहे हैं कि सरदार पटेल को भारत रत्न देने की सुधि उनकी मौत के पूरे चार दशक बाद 1991 में तब आयी, जब 1991 में ही लिट्टे आतंकियों के हमले में मारे गये राजीव गांधी को उसी साल भारत रत्न दिया गया.
सरदार की जन्मभूमि गुजरात में उनके नाम पर सियासत हाल के वर्षो में काफी तेज हुई है. खास तौर पर जबसे नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बनें हैं, तब से सरदार की उपेक्षा के बहाने वो नेहरू–गांधी परिवार पर हमले करते रहे हैं. यही नहीं, 2014 लोकसभा चुनावों के पहले सरदार पटेल की रिकॉर्ड तोड़ ऊंचाई वाली प्रतिमा की योजना स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के नाम से उन्होंने ही पेश की और सरदार की जयंती पर ही उसके लिए भूमि पूजन भी करने जा रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, तो सरदार की प्रतिमा के बहाने मोदी पूरे देश में व्यापक जनसंपर्कका नया तरीका इजाद कर चुके हैं. किसानों से लोहा इकट्ठा करने के नाम पर गांव–गांव में अपने को पहुंचाने की योजना है मोदी की. उनकी यही रणनीति अब कांग्रेस के लिए बेचैनी का सबब है.
इसी बेचैनी में अब कांग्रेस ने पलटवार किया है. कांग्रेस ये तर्कआगे कर रही है कि सरदार ताउम्र कांग्रेसी रहे, तो फिर भला भाजपा उनकी विरासत को हथियाने की कोशिश क्यों कर रही है.
इसी बात का संकेत मंगलवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भाषण में भी दिखा, जो उन्होंने अहमदाबाद में सरदार पटेल राष्ट्रीय स्मारक के संग्रहालय के उदघाटन के दौरान दिया. उसी मंच पर मौजूद थे मोदी भी, जो मनमोहन से पहले दिये गये अपने भाषण में ये बात कह चुके थे कि अगर सरदार देश के पहले प्रधानमंत्री बने होते, तो देश की तसवीर और तकदीर दोनों अलग होती.
मोदी का हमला सीधा नेहरू–गांधी परिवार पर था. लेकिन इसी के बाद अपने भाषण में मनमोहन सिंह मोदी को याद दिलाते नजर आये कि सरदार कांग्रेस के नेता और उप प्रधानमंत्री थे और नेहरू से कुछ मसलों पर मतभेद के बावजूद ज्यादातर मुद्दों पर उनके बीच सहमति थी. चार साल पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी यही तर्क रखती नजर आयी थीं.
2009 में सरदार पटेल स्मारक के एक कार्यक्र म के लिए सोनिया ने जो संदेश भेजा था, उसमें ये कहा था कि जो लोग ये दावा करते हैं कि सरदार पटेल और नेहरू के बीच न पाटी जा सकने वाली असहमति थी, वो इतिहास को तोड़–मरोड़ कर पेश करते हैं. सोनिया के उस बयान के बाद पहली बार ये संदेश गया था कि कांग्रेस सरदार और उनकी विरासत पर अपना दावा नये सिरे से ठोकने के मूड में है, खास तौर पर तब जब मोदी और उनकी पार्टी भाजपा सरदार को राष्ट्रीय एकता के सबसे बड़े प्रतीक के तौर पर अपने हक में भुनाने की कोशिश कर रही है.
सोनिया और मनमोहन सिंह तो ठीक, कांग्रेस के बाकी नेता भी सरदार पटेल के मुद्दे पर जिस तरह से भाजपा और मोदी पर हमला बोलने में लगे हैं, उससे ये तो साफ है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में सरदार प्रमुख मुद्दा बनने जा रहे हैं. दोनों ही पार्टियां राष्ट्रशिल्पी सरदार को लेकर लगातार धींगामुश्ती करती रहेंगी, इसका मजबूत इशारा तो मिल ही चुका है हफ्ते भर के घटनाक्रम से.

।। ब्रजेशकुमारसिंह ।।
संपादक–गुजरात,एबीपीन्यूज