धान कटने के बाद इन खेतों में बिना जुताई और अतिरिक्त मेहनत से मसूर व तिसी का उत्पादन बेहतर लिया जा सकता है. इसमें खेतों की जुताई खर्च भी बच जाता है. पैरा खेती में सभी रबी फसलों का उत्पादन नहीं किया जा सकता है. जिससे खेत से धान कटते-कटते नमी का पूरी तरह समाप्त हो जाने का खतरा रहता है.
सुखाड़ और बाढ़ के बाद तूफान ने खेती को काफी नुकसान पहुंचाया है. प्रकृति की मार से पहले से ही परेशान किसानों को तीसरी मार तेज आंधी और पानी ने और परेशानी में डाल दिया. इस वर्ष समय पर बारिश नहीं होने से काफी देर से धान की रोपनी हो सकी. पानी के बिना काफी खेत परती भी रह गये. खेतों में किसानों की पूंजी डूबने के साथ ही मवेशियों के लिए चारा आदि की भी समस्या हो गयी. धान का उत्पादन कम होना तय है. खेती पर निर्भर किसान समझ नहीं पा रहे हैं कि अब वे क्या करें. किसानों की इस समस्या को लेकर कृषि विभाग के कृषि विशेषज्ञ अनिल झा से पंकज कुमार सिंह ने खास बातचीत की. प्रस्तुत है बातचीत का मुख्य अंश :
बिहार के किसान सुखाड़ से परेशान हैं.क्या करना चाहिए?
देखिए, यह सही बात है कि बिहार के किसान सुखाड़ से परेशान हैं, लेकिन परेशान होने की जररूरत क्या है. सुखाड़ चुनौती है, तो अवसर भी लेकर आता है. सुखाड़ तो बड़ी चुनौती है. इससे निबटने के लिए विभिन्न स्तरों पर रणनीति बनाने की जरूरत होती है. किसानों को सुखाड़ की समस्या से निबटने के लिए फसल क्षति का मुआवजा मिलना ही चाहिए. अवसर भी इसे कहा जा सकता है. रोपनी समय से नहीं होने की स्थिति में कम अवधि बाजरा लगा कर 65 से 70 दिनों में फसल ले सकते हैं. बाजरा की खेती के लिए धान की तरह पानी की जरूरत नहीं होती है. अगात सब्जी की खेती की जा सकती है. तोरी व मक्का आदि का उत्पादन लिया जा सकता है. अगस्त में खेतों में बाजरा की तरह ही 60 से 80 दिनों वाले फसल किसान रोपें, तो अगात गेहूं की खेती हो सकती है.
समय पर बारिश नहीं होने से धान रोपनी में देर हुई. उत्पादन पर कितना असर होगा?
समय पर बारिश नहीं होने के कारण अधिकतर जिलों में काफी देर से रोपनी हो सकी. देर से रोपनी होने की स्थिति में उत्पादन निश्चित रूप से प्रभावित होता है. जुलाई के अंत तक रोपनी हो जाती, तो धान उत्पादन बेहतर होता. जुलाई के अंत तक 50 प्रतिशत भी रोपनी नहीं हो सकी थी. अधिकातर जिलों में अगस्त में रोपनी हो सकी. बिचड़ा अधिक दिनों का होने के कारण भी धान का फसल बेहतर नहीं हो सकेगा. हालांकि जहां अगस्त के प्रारंभ में रोपनी हो गयी और अधिक दिनों की वेराइटी वाला धान है, तो उत्पादन में बहुत अधिक नुकसान नहीं होगा, बशर्ते धान के पौधे को समय पर पानी मिल रहा हो.
सिंचाई के लिए सरकार की ओर से क्या व्यवस्था की गयी?
धान का बिचड़ा बचाने के लिए प्रारंभ में किसानों को दो सिंचाई और धान रोपनी के बाद फसल को बचाने के लिए तीन सिंचाई के लिए डीजल अनुदान की व्यवस्था की गयी है. प्रत्येक सिंचाई पर प्रति एकड़ 250 रुपये का प्रावधान किया गया है. मक्का की फसल बचाने के लिए सिंचाई का प्रावधान किया गया है.
सितंबर के अंत और अक्तूबर के शुरू में बारिश होने से क्या खेती पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा?
अक्तूबर की बारिश का काफी महत्व है. धान में इस समय गाभा निकलता है. ऐसे में खेतों में पर्याप्त पानी होने से गाभा बेहतर निकलेगा. खेतों में नमी रहने से रबी फसल की बुआई में आसानी होगी. पक चुके धान के खेतों में थोड़ी नमी की ही जरूरत होती है. ऐसे खेतों में पानी भर जाने से धान फसल पर प्रतिकूल असर होगा. हालांकि हल्की बारिश से क्षति नहीं है, बल्कि रबी फसल की बुआई बेहतर तरीके से हो जायेगा.
जहां धान की रोपनी नहीं हो सकी है, वहां किसान अपने खेतों का किस प्रकार उपयोग कर सकते हैं?
जहां धान की रोपनी नहीं हो सकी है. वहां किसान अपने खेतों में अगात मसूर, चना, मटर व खेसारी की खेती कर लाभ ले सकते हैं. सब्जी की खेती भी कर सकते हैं. समय अगात आलू से अधिक उत्पादन लिया जा सकता है. अन्य रबी फसलों को भी खेतों के अनुसार लगाया जा सकता है.
मक्का व गेहूं लगाने का उपयुक्त समय क्या है ?
इस मौसम में मक्का लगाने के लिए उपयुक्त समय 20 अक्तूबर के बाद है. इस समय मक्का लगा कर बेहतर उत्पादन किया जा सकता है. गेहूं लगाने के लिए 15 नवंबर के बाद का समय सही है. नवंबर के अंत और दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक गेहूं की बुआई होने की स्थिति में उत्पादन बेहतर होगा. जनवरी दिसंबर के अंत में या जनवरी में गेहूं नहीं लगाना चाहिए. जनवरी में गेहूं लगाने पर दाना सही से भर नहीं सकेंगे. इसका उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.
क्या पैरा खेती से बेहतर उत्पादन लिया जा सकता है?
धान पकने की अवस्था में आने पर इस खेत में तिसी व मसूर की बुआई की जा सकती है. इसे पैरा खेती कहा जाता है. धान कटने के बाद इन खेतों में बिना जुताई और अतिरिक्त मेहनत से मसूर व तिसी का उत्पादन बेहतर तरीके से किया जा सकता है. इससे खेतों की जुताई खर्च भी बच जाता है. पैरा खेती में सभी रबी फसलों का उत्पादन नहीं किया जा सकता है. जिस खेत से धान कटते-कटते नमी पूरी तरह समाप्त हो जाने का खतरा रहता है, ऐसे खेतों में तिसी व मसूर की बुआई धान लगे हुए रहने पर भी कर देना चाहिए. उत्तर बिहार के जिलों में पैरा खेती बेहतर विकल्प है.
वैकल्पिक खेती के लिए सरकार की ओर से क्या प्रावधान किया गया?
जहां रोपनी नहीं हो सकी, वहां वैकल्पिक खेती के लिए किसानों को मक्का, मड़ुआ, बाजरा, तोरी आदि के बीज वितरित कराने का प्रावधान किया गया है. कृषि विभाग ने रोपनी की स्थिति को लेकर पंचायतवार आकलन करा कर वैकल्पिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए रणनीति बनायी है.अधिकारियों के साथ ही कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने भी किसानों को वैकल्पिक खेती के लिए आवश्यक जानकारी दी है.
क्या सुखाड़ से हुई क्षति का किसानों को मुआवजा मिल सकेगा?
राज्य सरकार ने 33 जिलों को सुखाड़ प्रभावित जिला घोषित किया था. बाद में बांका सहित तीन और जिलों को भी इस श्रेणी में रखा. सुखाड़ की स्थिति का आकलन करने के लिए केंद्रीय टीम आने वाली है. लगभग आधा दर्जन अधिकारी विभिन्न जिलों में जाकर खेती में हुए नुकसान का आकलन करेंगे. तीन टीम अलग-अलग जिलों में जाकर किसानों से भी बात करेगी.
केंद्रीय टीम की अनुशंसा के आधार पर किसानों को आवश्यक सहायता मिल सकेगी. किसानों को ऋण चुकाने के लिए समय सीमा में छूट दी जायेगी. अगला फसल लगाने के लिए सहायता भी दी जा सकती है. गांवों में पेयजल की व्यवस्था से लेकर पशु चारा तक की व्यवस्था की जा सकेगी. पिछले दिनों बारिश व आंधी तूफान (फैलिन) ने किसानों को कितना नुकसान पहुंचाया लगातार दो दिनों तक बारिश और तेज हवा व आंधी से पक चुके धान को नुकसान हुआ है. खास कर जो धान अभी पूरी तरह भर नहीं सके हैं, वैसे धान में खखरी (चावल पुष्ट नहीं) अधिक होगा. केला के फसल को काफी अधिक नुकसान हुआ है. आंधी से केला के पौधे गिरने से पूरी तरह नष्ट हो गये. कम अवधि वाले केले के पौधे पानी में डूबे रहने खराब हो गये. मक्का और गन्ना की फसलों को भी काफी नुकसान हुआ है. लगातार बारिश के बाद धान की फसल में विभिन्न प्रकार की बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है.
क्या आंधी तूफान से हुए फसल नुकसान का आलकन हो रहा है.?
हां, आंधी-तूफान (फैलिन) से हुए नुकसान का कृषि विभाग आकलन करा रहा है. सभी जिला कृषि पदाधिकारियों को जिलों में हुए नुकसान का ब्योरा मांगा गया है. फैलिन प्रभावित किसानों को अगली फसल लगाने के लिए सहायता मिल सकती है.
रबी फसलों के लिए श्री विधि कितना उपयोगी है ?
श्री विधि तकनीक से धान का रिकार्ड उत्पादन लेने में सफलता मिली है. पिछले तीन वर्षो से राज्य में श्री विधि से धान की खेती अधिक होने लगी, तो उत्पादन भी काफी बढ़ा. पिछले वर्ष एक लाख हेक्टेयर में श्री विधि से गेहूं की खेती हुई थी. इस वर्ष साढ़े तीन लाख हेक्टेयर में श्री विधि से गेहूं की खेती का लक्ष्य रखा गया है. जीरो टिलेज से गेहूं की खेती आसानी से हो सकती है. जीरो टिलेज तकनीक में लाइन में गेहूं की बुआई होती है. इसमें गेहूं के एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी सामान्य रूप से बनी रहती है. सिंचाई में भी सुविधा होती है. जीरो टिलेज तकनीक से जुताई का खर्च भी बच जाता है. जीरो टिलेज तकनीक में निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कम खर्च में अधिक उत्पादन मिलता है.