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ज्यादा कारगर साबित नहीं हो पाया स्कूलों में तकनीक का बढ़ता इस्तेमाल

नयी सदी में डिजिटल तकनीक की बढ़ती लोकप्रियता के बीच दुनियाभर के स्कूलों में भी इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. हालांकि ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओइसीडी) का आकलन है कि शिक्षा के स्वरूप को सुधारने में यह ज्यादा कारगर साबित नहीं हुआ है. इसलिए ओइसीडी की रिपोर्ट में स्कूलों में तकनीक पर […]

नयी सदी में डिजिटल तकनीक की बढ़ती लोकप्रियता के बीच दुनियाभर के स्कूलों में भी इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. हालांकि ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओइसीडी) का आकलन है कि शिक्षा के स्वरूप को सुधारने में यह ज्यादा कारगर साबित नहीं हुआ है.

इसलिए ओइसीडी की रिपोर्ट में स्कूलों में तकनीक पर बढ़ती निर्भरता को अव्यावहारिक करार दिया गया है. हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कंप्यूटरों का सीमित उपयोग इनका बिल्कुल इस्तेमाल न करने से बेहतर है. क्या हैं इस रिपोर्ट की खास बातें और क्या हैं स्कूलों में तकनीक के इस्तेमाल के सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलू, बता रहा है आज का नॉलेज.

दिल्ली : सूचना और संचार तकनीक ने हमारे जीवन के हर पहलू प्रभावित किया है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारे जीवन को सुगम बनाने में तकनीक का बड़ा योगदान है, पर इसके अत्यधिक और असंतुलित उपयोग के नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं. विकसित देशों की संस्था ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओइसीडी) द्वारा पिछले दिनों जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा में तकनीक पर बहुत अधिक निर्भरता बच्चों की सीखने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न कर सकता है. संस्था के शिक्षा निदेशक एंड्रियास श्लेचर ने एक साक्षात्कार में कहा है, ‘अगर सामाजिक पृष्ठभूमि का ध्यान रखते हुए देखा जाये, तो स्कूल में इंटरनेट का खूब उपयोग करनेवाले छात्र उन छात्रों से बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं, जो इंटरनेट का कम इस्तेमाल करते हैं.’

इस रिपोर्ट के निष्कर्ष उन लोगों के लिए एक गंभीर चेतावनी है, जो स्कूलों में सूचना तकनीक के भरपूर उपयोग की वकालत करते रहते हैं. श्लेचर की यह बात ध्यान देने योग्य है कि 20वीं सदी के ढर्रे पर चल रही कक्षाओं में बिना सोचे-विचारे 21वीं सदी की तकनीक का उपयोग लाभप्रद नहीं हो सकता है. इस अध्ययन का विश्लेषण करने से पूर्व इसके विभिन्न निष्कर्षों पर नजर डालना जरूरी है.

रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया में एक छात्र स्कूल में औसतन 58 मिनट रोजाना इंटरनेट का उपयोग करता है. इसके बाद डेनमार्क (46.4), यूनान (41.6), स्वीडेन (38.9), स्पेन (34.5) और रूसी परिसंघ (34.2) का स्थान है. इस सूची में सबसे नीचे कोरिया (9.1), शंघाई-चीन (10), हांगकांग (11.2), जापान (12.5) जैसे देश हैं.

स्कूल में इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं करनेवाले सबसे अधिक बच्चे शंघाई-चीन में हैं. वहां 75 फीसदी बच्चे इंटरनेट का उपयोग स्कूल में नहीं करते हैं. इस श्रेणी में अन्य प्रमुख देश कोरिया (68), तुर्की (63), जापान (62) और इटली (57) हैं. इस मामले में सबसे नीचे डेनमार्क और ऑस्ट्रेलिया (7), नॉर्वे (15), स्वीडेन (16) और हालैंड (18) हैं, यानी इन देशों में स्कूलों में अधिक बच्चे इंटरनेट का उपयोग करते हैं.

छात्रों का मूल्यांकन करने के बाद इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बिना समुचित नियंत्रण के बच्चों को उपलब्ध करायी जा रही डिजिटल सुविधाएं सूचना के बोझ और नकल करने जैसी समस्याओं को बढ़ा सकती है. बहरहाल, शिक्षा क्षेत्र में तकनीक के उपयोग के हिमायती लोगों के लिए अच्छी खबर यह है कि रिपोर्ट यह भी रेखांकित करती है कि कंप्यूटरों का सीमित उपयोग इनका बिल्कुल इस्तेमाल न करने से बेहतर है.

अध्ययन में पाया गया है कि जो बच्चे सप्ताह में कम-से-कम एक बार कंप्यूटर पर अभ्यास करते हैं, वे ऐसा नहीं करनेवाले बच्चों से 20 फीसदी से अधिक प्रदर्शन करते हैं. कभी-कभार इंटरनेट से पढ़ाई में मदद लेना सही हो सकता है, पर नियमित रूप से या रोजाना इसका इस्तेमाल छात्रों को नुकसान पहुंचा सकता है.

श्लेचर का मानना है कि इस अध्ययन के निष्कर्ष बड़े निराशाजनक हैं, क्योंकि स्कूली कक्षा में तकनीक लाने से सकारात्मक कौशल विकास नहीं हो सका है. इस अध्ययन का आधार विभिन्न देशों में 15 वर्षीय छात्रों का लिया गया टेस्ट है.

रिपोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि शिक्षकों, स्कूल प्रबंधन और नीति-निर्धारकों को छात्रों, कंप्यूटरों और सीखने की प्रक्रिया के बीच सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश करनी होगी. आज जब भारत डिजिटल तकनीक और सूचना क्रांति के विस्तार के दौर में है, हमारे देश में नीतियां बनानेवाले और शिक्षा की बेहतरी के जिम्मेवार लोगों को इस रिपोर्ट का गहन अध्ययन कर इससे जरूरी और प्रासंगिक सीख लेनी चाहिए.

माहौल के अनुरूप तकनीक को प्रभावी बनाना जरूरी

हमारी संस्था का नया कार्यक्रम ‘प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट एसेसमेंट’ अपनी तरह का पहला प्रयास है, जिससे अंतरराष्ट्रीय आधार पर छात्रों के डिजिटल स्किल और सीखने के वातावरण की जांच की जा सकती है. हमारी रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि तकनीक की संभावना के सही उपयोग में स्कूल बहुत पीछे हैं.

वर्ष 2012 में, ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट के देशों के 15 वर्ष की उम्र के 96 फीसदी छात्रों ने बताया था कि उनके घर पर कंप्यूटर हैं और 72 फीसदी ने कहा था कि वे स्कूल में डेस्कटॉप, लैपटॉप या टैबलेट कंप्यूटर का उपयोग करते हैं. कुछ देशों में स्कूल में कंप्यूटर के इस्तेमाल का औसत 50 फीसदी से कम था.

परिणाम निराशाजनक

जहां कक्षाओं में कंप्यूटरों का प्रयोग होता है, वहां के परिणाम भी मिले-जुले हैं. जो छात्र कंप्यूटरों का इस्तेमाल सामान्य तौर पर करते हैं, उनका प्रदर्शन उन छात्रों से बेहतर पाया गया है, जो बहुत ही कम कंप्यूटरों का उपयोग करते हैं. लेकिन जो छात्र कंप्यूटरों का बहुत अधिक उपयोग करते हैं, उनका प्रदर्शन अधिक खराब पाया गया. ये निष्कर्ष छात्रों की सामाजिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए निकाले गये हैं. परिणामों में यह भी पाया गया है कि उन देशों में, जहां सूचना और संचार तकनीक में बहुत निवेश किया गया, वहां छात्रों के पढ़ने, गणित या विज्ञान में कोई खास बेहतरी नहीं हुई.

शायद सबसे अधिक निराशाजनक पहलू यह है कि तकनीक ने अच्छे और कमजोर छात्रों के बीच कौशल की दूरी को पाटने में कोई खास भूमिका नहीं निभायी. यह भी देखा गया है और इस निष्कर्ष से अधिकतर शिक्षक और अभिभावक आश्चर्यचकित नहीं होंगे कि जो छात्र सप्ताह के कार्यदिवसों में स्कूल से बाहर प्रतिदिन छह घंटे ऑनलाइन रहते हैं, वे स्कूल में अकेला अनुभव करते हैं और कक्षा में देर से आते हैं.

एक अर्थ यह निकाला जा सकता है कि छात्रों और शिक्षकों के बीच तथा तकनीक को लेकर बेहतर समझ और सोच बनाने की जरूरत है. कॉपी और पेस्ट- अध्ययन का एक मतलब यह है कि स्कूल छात्रों की प्रतिभा और तकनीक के बीच अंतर्संबंधों को लेकर जागरूक नहीं हैं. 21वीं सदी की तकनीक के इस्तेमाल के लिए स्कूलों की 20वीं सदी की रूप-रेखा में बदलाव की आवश्यकता है.

अगर छात्र पहले से तैयार उत्तरों को कॉपी और पेस्ट करने के लिए स्मार्ट फोन का उपयोग करेगा, तो इससे वह स्मार्ट नहीं बन सकेगा. इस संबंध में शिक्षकों को अधिक समझदार होने की जरूरत है. तकनीक अच्छी शिक्षा को बेहतर बना सकता है, लेकिन वह खराब शिक्षण का विकल्प नहीं हो सकता है.

निर्णयों और नीतियों को लागू करने में लापरवाही और रणनीतिक खामियों के कारण तकनीक के महत्व को वास्तविकता से कहीं अधिक समझ लिया गया है. लेकिन इन निष्कर्षों से स्कूलों को निराश होने की जरूरत नहीं है. जरूरत इस बात की है कि शिक्षा के माहौल के अनुरूप तकनीक के इस्तेमाल की कोशिश की जाये.

शिक्षक प्रशिक्षण

ज्ञान के त्वरित विस्तार का एकमात्र रास्ता तकनीक ही है. छात्रों को पुरानी किताबों तक सीमित रखना ठीक नहीं है. तकनीक नवीन और जरूरी चीजों तक छात्रों और शिक्षकों की पहुंच सुलभ करता है.

लेकिन तकनीक की इन संभावनाओं और क्षमताओं का समुचित लाभ उठाने के लिए देशों को शिक्षकों की क्षमता विस्तार के लिए भी प्रयास करना होगा तथा नीति-निर्धारकों को इस एजेंडे के लिए पूरा समर्थन भी देना होगा. लेकिन इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शिक्षकों को बदलाव के लिए तैयार रहना होगा और इसमें उन्हें सक्रिय भूमिका निभानी होगी.

(बीबीसी पर प्रकाशित लेख का संपादित अंश)

स्कूल में कंप्यूटर के इस्तेमाल का असर

अंतरराष्ट्रीय संस्था ओइसीडी ने अपने एक शोध में पाया है कि स्कूल के कंप्यूटरों और क्लासरूम तकनीक में भारी निवेश का बच्चों के प्रदर्शन पर खास असर नहीं पड़ता है. ऑर्गनाइजेशन फॉर इकनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलेपमेंट (ओआइसीडी) के शिक्षा निदेशक आंद्रियास श्लेकर ने कहा है कि स्कूल प्रौद्योगिकी से ‘ढेर सारी झूठी उम्मीदें’ पैदा हुई हैं. बच्चों के व्यवहार का अध्ययन करनेवाले विशेषज्ञ टॉम बेनेट का कहना है कि स्कूल कंप्यूटरों से शिक्षकों की आंखें जरूर चौंधिया जाती हैं.

अध्ययन के निष्कर्ष में खास बात यह कही गयी है कि शिक्षा में इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी के भारी इस्तेमाल के बावजूद छात्रों के प्रदर्शन में कोई खास सुधार नहीं देखा गया है. आंद्रियास श्लेकर का कहना है, ‘यदि आप पूर्वी एशिया की बेहतरीन शिक्षा प्रणालियों को देखें, तो वहां क्लासरूम में तकनीक के इस्तेमाल पर सावधानी बरती जाती है.

जो छात्र टैबलेट और कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं, उनमें से ज्यादातर का प्रदर्शन उन छात्रों के मुकाबले लचर पाया गया है, जो टैबलेट और कंप्यूटर का बहुत ज्यादा इस्तमाल नहीं करते.’ स्कूली शिक्षा में इन तकनीकों की कवायद के बीच यह तथ्य कुछ अलग चीजों को इंगित करता है. प्रौद्योगिकी विश्लेषक संस्था गार्टनर का अनुमान है कि हर साल स्कूल की शिक्षा तकनीक पर 17.5 अरब पाउंड खर्च किया जाता है. केवल ब्रिटेन में ही स्कूलों पर वार्षिक 90 करोड़ पाउंड खर्च किया जाता है.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जो बच्चे स्कूलों में बार-बार कंप्यूटर का प्रयोग करते हैं, उनके नतीजे खराब होते हैं.

जो बच्चे सप्ताह में एक या दो बार कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं, उनका प्रदर्शन उन बच्चों से बेहतर रहता है, जो कभी-कभार ही कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं. जिन देशों में पढ़ाई, गणित और विज्ञान में भारी सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया गया, वहां बच्चों के प्रदर्शन में कोई खास प्रगति नहीं देखी गयी.

दक्षिण कोरिया और चीन में शंघाई के बेहतरीन स्कूलों में निचले स्तर पर कंप्यूटरों का इस्तेमाल बहुत ज्यादा नहीं होता. सिंगापुर के स्कूलों में भी तकनीक का बहुत ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता. इस रिपोर्ट पर कई प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं.

माइक्रोसॉफ्ट के प्रवक्ता ह्यू मिलवार्ड ने कहा, इंटरनेट से छात्रों को जानकारियां हासिल होती हैं.

अकेले टेक्नोलॉजी नहीं है स्कूलों की बीमारी का इलाज

भारत में हम उन स्कूलों को प्रगतिशील मानते हैं, जहां शिक्षा में तकनीक का इस्तेमाल होता है. मसलन कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी का. ऊंची फीस वाले स्कूल उच्च तकनीकों के इस्तेमाल का दावा करते हैं.

इमेल, लैपटॉप और स्मार्टफोन से लैस छात्र प्रगतिशील माने जाते हैं. तकनीक और विकास के रिश्तों पर रिसर्च करते हुए मैंने तकनीक के महत्व को समझा है, लेकिन मेरा मानना है कि तकनीक ही साध्य नहीं है, यह केवल साधन है.

केंटारो टोयामा, कंप्यूटर वैज्ञानिक

तकनीक के इस्तेमाल से बदल रही है शिक्षा

सूचना तक पहुंच

कई साल पहले हम यह कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि घर से बाहर निकले बिना नयी सूचनाओं की जानकारी प्राप्त की जा सकती है. या फिर बिना पुस्तकालय गये भी नयी किताबों को प.ढा जा सकता है. महिलाओं को नये पकवानों का पता पुस्तकालय से ली गयी किताबों से होता था.

पिता व्यापार, अर्थव्यवस्था और समाज के बारे में ताजा सूचनाओं के लिए अखबार खरीदते थे. छात्र पुस्तकालयों में बैठ कर रिपोर्ट, प्रोजेक्ट या पेपर लिखते थे. आज इंटरनेट की वजह से अनेक प्रकार की सूचनाएं आसानी से मिल रही हैं. अब तो उन छात्रों के लिए ऑनलाइन पाठ्यक्रम भी उपलब्ध हैं, जो किन्हीं परेशानियों के कारण पारंपरिक कक्षाओं में नहीं जा सकते हैं. िशक्षा का यह तरीका बेहतर पाया गया है़

पर्यावरण संरक्षण में मदद

दुनिया में बड़ी संख्या में स्कूल दूर-दराज के गांवों में स्थित हैं. अब आप आसानी ने अंदाजा लगा सकते हैं कि नयी किताबें और नोटबुक के लिए कितनी भारी संख्या में कागज की जरूरत पड़ती है. तकनीक के इस्तेमाल से हमें इतनी सारी किताबें और नोटबुक नहीं खरीदना होगा. दरअसल, अध्ययन-अध्यापन में यदि समझदारी से कंप्यूटरों का प्रयोग हो, तो धन और समय की बचत की जा सकती है.

दूरस्थ शिक्षा की लोकप्रियता में वृद्धि

इंटरनेट जैसी तकनीकों के विकास से शिक्षा तकनीक की लोकप्रियता निरंतर बढ़ रही है. सीखने की प्रक्रिया में इसे बहुत पसंद किया जा रहा है. पारंपरिक पठन-पाठन के साथ वर्चुअल कक्षाओं का भी इस्तेमाल हो रहा है. इसका एक बड़ा लाभ यह है कि तकनीक के कारण छात्र सुविधानुसार अपनी समय-सारणी बना सकते हैं. इससे काम और पढ़ाई में संयोजन करना सुगम हो जाता है.

पढ़ाने में सुविधा

तकनीक के इस्तेमाल से अध्यापकों की क्षमता का संवर्धन भी किया जा सकता है. इसके जरिये वे छात्रों की प्रगति पर कई तरह से नजर रख सकते हैं. ऑडियो-विजुअल प्रेजेंटेशन, टेलीविजन सेट, प्रोजेक्टरों आदि का उपयोग कर सिखाने और समझाने की प्रक्रिया बेहतर की जा सकती है.

तकनीक शिक्षा को आनंददायक बनाता

हम सभी जानते हैं कि बच्चों को सीखने की ओर आकृष्ट करना कितनी कठिन प्रक्रिया है. लेकिन जब शिक्षक कक्षा को अधिक इंटरएक्टिव और दिलचस्प बनाने के लिए उजला बोर्ड या टच स्क्रीन तकनीक का इस्तेमाल करता है, तो बच्चों को अधिक रुचिकर लगता है. इस तरह से बच्चे का ध्यान आकर्षित करना आसान हो जाता है.

इस तरह तकनीक का प्रयोग शिक्षक और छात्र दोनों के लिए ही शिक्षा को अधिक मजेदार बना देता है. हमें शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक की संभावनाओं को कम कर नहीं आंकना चाहिए. आजकल पूरी दुनिया में वर्चुअल कक्षाओं को लोग पसंद कर रहे हैं. छात्र शिक्षा का इस तरीके का सही मायने में आनंद लेते हैं.

(एडटेक रिव्यू की वेबसाइट पर जारी लेख का संपादित अंश. साभार)

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