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निरक्षरता के दलदल से बाहर निकलें हम

शत्रुंजय शरण बेंगलुरु से कब क्रांति लहर चल पड़ती है, साम्राज्य उलटने लगते हैं. इतिहास पलटने लगते हैं. एक खंडकाव्य में गुलाब लाल खंडेलवाल द्वारा लिखित ये पंक्तियां अपने देश पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं हमारा देश लोकतांत्रिक देश है और यहां जनता का ही शासन चलता है. बिहार में जल्द ही विधान सभा चुनाव […]

शत्रुंजय शरण
बेंगलुरु से
कब क्रांति लहर चल पड़ती है, साम्राज्य उलटने लगते हैं. इतिहास पलटने लगते हैं. एक खंडकाव्य में गुलाब लाल खंडेलवाल द्वारा लिखित ये पंक्तियां अपने देश पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं
हमारा देश लोकतांत्रिक देश है और यहां जनता का ही शासन चलता है. बिहार में जल्द ही विधान सभा चुनाव की घोषणा हो सकती है. जाहिर-सी बात है कि इसके लिए सभी राजनीतिक दलों और उनके नेताओं ने कमर कस ली है और जोर-शोर से प्रचार-प्रसार में जुट चुके हैं.
हम भले ही बिहार से बाहर रह रहे हैं, लेकिन बिहार की हर राजनीतिक गतिविधि पर हमारी नजर है. आखिर हम जिस राज्य से नाता रखते हैं, उसके बारे में जानकारी रखना वहां के हर नागरिक का कर्तव्य है. इस बार के चुनाव में तसवीर एकदम अलग है.
ऐसे दो दल साथ मिल कर चुनाव लड़ रहे हैं, जिन्होंने पिछले चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा था. उसी तरह से दो दोस्त इस बार एक-दूसरे के सामने खड़े हो गये हैं. खैर चुनाव किसी के बीच भी क्यों न हो, मायने केवल विकास के मुद्दे रखते हैं.
बिहार की सबसे बड़ी समस्या वर्तमान में निरक्षरता है. निरक्षरता की ही वजह से आज भी बिहार विकास के पथ पर पूरी तरह से आगे नहीं बढ़ पा रहा है. इसके पीछे की वजह यह है कि राज्य में स्कूल और कॉलेज तो बहुत है, लेकिन जिस गुणात्मक और रोजगारपरक शिक्षा की यहां दरकार है, वैसी शिक्षा अब तक बच्चों को उपलब्ध नहीं है. होगी भी कैसे, आखिर संसाधनों का जो अभाव है. स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है. जहां शिक्षक उपलब्ध हैं, वहां जागरुकता के अभाव में बच्चे पढ़ने के लिए नहीं पहुंच रहे हैं.
उसी प्रकार से विद्यालयों में मध्याह्न् भोजन योजना की शुरुआत जरूर की गयी है कि बच्चे खाने के लालच में ही स्कूल आये, तो वह योजना भी ठीक तरीके से संचालित नहीं हो रही है. सरकारी स्कूलों की स्थिति ऐसी है कि एक ही भवन में कई स्कूल अलग-अलग शिफ्ट में चलाये जा रहे हैं और बच्चों को जमीन पर बैठ कर पढ़ाई करनी पड़ रही है.
अधिकतर स्कूलों के भवन अतिक्रमण की चपेट में हैं और इस वजह से वहां न तो शौचालय बन पा रहे हैं और न ही बच्चों के लिए पुस्तकालय और वाचनालय. कॉलेजों की भी स्थिति अलग नहीं है. रोजाना जब हम प्रभात खबर या कोई भी अखबार यहां इ-पेपर के रूप में पढ़ते हैं, तो यही पढ़ने को मिलता है विद्यार्थी और कर्मचारी हड़ताल पर हैं. परीक्षा में नकल की खबरें बार-बार आती हैं.
यदि ऐसी ही स्थिति रही, तो कहां से बच्चों का सर्वागीण विकास हो पायेगा? बेहतर शिक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेवारी सरकार की होती है. यदि सरकार की ओर से ही प्रयास नहीं होंगे, तो भला विकास के बड़े-बड़े दावों की असलियत आखिर कब तक छिपी रहेगी? चुनाव सिर पर हैं.
इसमें कोई संदेह नहीं कि सूबे में शिक्षा की स्थिति इस चुनाव में एक अहम मुद्दा बननेवाला है. बनना भी चाहिए. बिहार निरक्षरता के दलदल से बाहर निकलना चाहता है. पूरा देश भी यही चाहता है. हम सब यही चाहते हैं

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