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जो पहले आपकी खुशी चाहे, वही है प्यार

आप लोग एक बात सोचिए, मां-पापा आपसे प्यार करते हैं, इसीलिए कभी आपका बुरा नहीं सोचते. हमेशा आपकी खुशी देखते हैं. सभी पेरेंट्स यही सोचते हैं कि उनके बच्चों की आंखों में कभी आंसू न आये. खुद तकलीफ में रह कर आपकी खुशियां पूरी करते हैं. कोई भी जो आपको चाहता है, वह पहले आपकी […]

आप लोग एक बात सोचिए, मां-पापा आपसे प्यार करते हैं, इसीलिए कभी आपका बुरा नहीं सोचते. हमेशा आपकी खुशी देखते हैं. सभी पेरेंट्स यही सोचते हैं कि उनके बच्चों की आंखों में कभी आंसू न आये. खुद तकलीफ में रह कर आपकी खुशियां पूरी करते हैं. कोई भी जो आपको चाहता है, वह पहले आपकी खुशी चाहेगा. यही प्यार है. प्यार स्थायी होता है, आकर्षण नहीं.

कुछ बच्चों ने पूछा है- प्यार क्या है, आकर्षण क्या है. एक बच्चे ने दो लाइनों में केवल यह पूछा कि आपने जो लिखा है कि किशोरावस्था का आकर्षण प्यार नहीं, क्रश है, तो क्या कृष्ण-राधा का प्यार भी क्रश था?

बच्चों पहले आपको यह समझना होगा कि कृष्ण-राधा जिस युग में हुए, वह हजारों साल पहले का था. आज बाजारवाद, उपभोक्तावादी संस्कृति है. पिछले 30-40 वर्षो में ही संस्कार-संस्कृति में बहुत गिरावट आयी है. सोचिए, हजारों साल पहले संस्कार, संस्कृति और आदर्श क्या रहे होंगे. हम कल्पना भी नहीं कर सकते. कई बच्चे-युवा अक्सर मजाक में कहते हैं कि गोपियों के बीच कन्हैया.

उनको समझना होगा कि इस तरह की बात करके आप ईश्वर का मजाक बनाते हैं. श्रीकृष्ण के जीवन की बहुत सारी कथाएं हैं. उनमें में से एक है- अनेक ऋ षियों-मुनियों ने तपस्या करके ईश्वर से वरदान मांगा कि अगले जन्म में आपका सानिध्य मिले. तब उन्हें यह वरदान मिला था कि जब श्रीकृष्ण के रूप में अवतार होगा तो आपको उनका सानिध्य मिलेगा.

वही ऋ षि-मुनि गोपियां और सखा बनें. ब्रह्मवैवर्त पुराण, गर्ग संहिता के अनुसार राधा, कृष्ण की पत्नी थी, जिनका विवाह स्वयं ब्रह्माजी ने करवाया था. एक कथा यह भी है कि राधाजी को नारदजी के श्रप के कारण विरह सहना पड़ा और रु कमणी से श्रीकृष्ण की शादी हुई परंतु दोनों ही लक्ष्मी का अंश मानी जाती हैं.

कहानी के अनुसार नारदजी को अभिमान था कि उन्होंने काम पर विजय प्राप्त कर ली है. उनकी परीक्षा के लिए विष्णुजी ने माया से एक नगर निर्मित किया, जहां के राजा ने अपनी सुंदर पुत्री के लिए स्वयंवर आयोजित किया. स्वयंवर में नारद मुनि भी पहुंचे. राजकुमारी पर मोहित हो गये. उससे विवाह की इच्छा लेकर वे विष्णुजी के पास गये.

उनसे निवेदन किया कि आप मुङो अपने जैसा सुंदर रूप प्रदान करें. मुङो राजकुमारी से प्रेम हो गया है. मैं विवाह करना चाहता हूं. नारदजी की बात सुनके उन्होंने मुस्कुराकर कहा- तुम्हें विष्णु रूप देता हूं. जब नारदजी विष्णु रूप लेकर स्वयंवर में पहुंचे तब राजकुमारी ने विष्णुजी के गले में वरमाला डाल दी. नारदजी दुखी होकर लौटे. मार्ग में उन्हें एक जलाशय दिखा जिसमें चेहरा देखकर वो समझ गये कि विष्णुजी ने छलकर उन्हें वानर रूप दिया है.

वे क्रोध में विष्णुजी के पास पहुंचे और उन्हें श्रप दिया कि उन्हें पत्नी वियोग सहना होगा. उनके श्रप के कारण रामावतार में सीता का और कृष्णावतार में राधा का वियोग सहना पड़ा.

ये तो थीं हमारे धर्मग्रंथों की बातें. उस युग और इस समय की स्थितियों की तुलना मत करो. यह उदाहरण उनका है, जिनको हम अवतार मानते हैं. उनके साथ भी यह है कि उन्होंने जिससे प्रेम किया उससे विवाह नहीं हुआ लेकिन उस पवित्र प्रेम की खातिर ही आज कृष्ण के नाम से पहले राधा का नाम आता है.

अगर ईश्वर में आस्था है तो इन बातों को मानो और नहीं है, तो यह समझ लो कि वह युग सदाचार, मान्यताओं, मर्यादा और आदर्श का युग का था. आज तो संस्कार और मूल्य बचे ही नहीं हैं. आज अगर कोई लड़की किसी को प्यार करे और उसे किसी और से विवाह करना पड़े तो वह लड़की पूजी नहीं जायेगी, बल्किउसे चरित्रहीन, कुलच्छनी जाने क्या-क्या सुनना पड़ेगा.

आज बच्चों और युवाओं में इतना संयम भी नहीं है कि वे प्रेम की पवित्रतता को समङों. प्यार देने का नाम है. हम जिसे चाहते हैं, उसे खुश देखना चाहते हैं, पाना नहीं. आज आप जिसे प्रेम करते हैं, उसे आप छूना चाहते हैं. आप बच्चों में संयम नहीं है. जिस एहसास को आपको महसूस करके खुश होना चाहिए, वह आप महसूस नहीं करते, बल्किछूकर, पास जाकर शारीरिक सुख चाहते हैं. यह शारीरिक सुख जो विवाह के बाद होना चाहिए, वह आप पहले चाहते हैं.

विवाह से पहले ही अगर आप शारीरिक सुख लेते हैं, तो शादी के बाद आपको कोई नया अनुभव नहीं होगा. हर स्थिति का अलग महत्व होता है, जिसे आप याद रख सकें. इस आयु में इन बातों से आपके मानसिक और शारीरिक विकास बाधित होते हैं. इससे तमाम बीमारियों के साथ कमजोरी भी आती है. आपकी ग्रोथ रु क जाती है. यह समय संयम बरतकर शरीर, मन व बुद्धि विकिसत करने का है.

आप लोग एक बात सोचिए, मां-पापा आपसे प्यार करते हैं, इसीलिए कभी आपका बुरा नहीं सोचते. हमेशा आपकी खुशी देखते हैं. सभी पेरेंट्स यही सोचते हैं कि उनके बच्चों की आंखों में कभी आंसू न आये. खुद तकलीफ में रहकर आपकी खुशियां पूरी करते हैं. कोई भी जो आपको चाहता है वह पहले आपकी खुशी चाहेगा. यही प्यार है. प्यार स्थायी होता है, आकर्षण नहीं. आज कोई लड़की अच्छी लगी, उससे दोस्ती करी.

उसने भी हंसकर बातें की, तो उसे प्यार समझने लगे. कल कोई और लड़की आपकी तरफ आकर्षित होकर आपसे दोस्ती करे, तो आपको लगे, ‘‘नहीं मुङो तो इसी से प्यार है’’ या लड़की दूसरे लड़के की तरफ आकर्षित हो जाये तो लड़के को दुख होता है.

छोटी-छोटी बातों पर एक-दूसरे से नाराज होना और इसी नाराजगी में दूसरे लड़के-लड़की से दोस्ती हो जाती है और पहलेवाला प्यार एक्स हो जाता है. कभी लड़की-लड़का समझ लें कि वे अब तक गलत कर रहे थे और इसलिए मिलना सीमित कर दें, तो दूसरे को लगता है कि उसे धोखा मिला.

इसी तरह जब स्कूल के बाद कॉलेज या प्रोफेशनल कॉलेज जाते हैं, वहां एक ही प्रोफेशन से जुड़े साथी मिलते हैं तब लगता है कि स्कूलवाला प्यार तो बचपना था और वह प्यार वहीं खत्म हो जाता है, मगर दोनों में से एक भी गंभीर हुआ तो वह काफी समय तक दूसरे की याद में डूबा रहता है औरइस दुख का सीधा असर भविष्य पर पड़ता है.

(क्रमश:)

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