
प्रथमेश मिश्रा ने विधान सभा से आरटीआई के तहत जानकारी माँगी थी.
बिलासपुर के प्रथमेश मिश्रा इस बात से नाराज़ हैं कि छत्तीसगढ़ विधानसभा आरटीआई अावेदन को यह कहते हुए लौटा देती है कि इसका आवेदन शुल्क 500 रुपए है.
देश और राज्य के अधिकांश सरकारी दफ़्तरों में सूचना के अधिकार के लिए आवेदन शुल्क 10 रुपए है, लेकिन छत्तीसगढ़ विधानसभा आवेदन को यह कहते हुए लौटा देती है कि विधानसभा में आवेदन शुल्क 10 नहीं, 500 रुपए है.
यह विधानसभा का अपना नियम है.
2005 में जब सूचना का अधिकार क़ानून (आरटीआई) लागू किया गया था, तब यह भी तय हुआ था कि अधिकांश सरकारी कार्यालय अपनी सूचनाओं को जल्द से जल्द सार्वजनिक करेंगे, जिससे किसी को सूचना मांगने की ज़रूरत ही नहीं पड़े.
इस क़ानून के बनने के क़रीब 10 साल बाद भी हालत ये है कि सूचना मांगना टेढ़ी खीर बना हुआ है.
प्रथमेश कहते हैं, “जिस विधानसभा में राज्य भर की जनता के लिए सवाल पूछने का दावा किया जाता है, वहां आख़िर कोई सूचना लेना इतनी महंगा क्यों है?”
‘वैसा का वैसा’

प्रथमेश इसी सवाल का जवाब पाने के लिए विधानसभा में सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाने वाले हैं.
लेकिन छत्तीसगढ़ विधानसभा के प्रमुख सचिव देवेंद्र वर्मा का कहना है कि यह नियम सोच समझकर बनाया गया है.
वर्मा कहते हैं, “सूचना के अधिकार में यह प्रावधान था कि विधानसभाएं अपना पृथक नियम बना सकेंगी. हमने अलग-अलग विधानसभाओं के नियमों का अध्ययन किया. उत्तर प्रदेश विधानसभा और हाई कोर्ट में जो फीस रखी गई है, हमने उसे यहां भी वैसा का वैसा ही रखा है.”
‘हतोत्साहित करने वाला क़दम’

विधानसभा के प्रमुख सचिव से असहमत आरटीआई एक्टीविस्ट विनोद व्यास का कहना है कि सरकार का पूरा ध्यान सूचनाओं को बताने से कहीं अधिक इस बात पर है कि सूचनाओं को छिपाया कैसे जाए.
व्यास कहते हैं, “विधानसभा का यह नियम सूचना के अधिकार की भावना के ख़िलाफ़ है और यह सूचना मांगने वाले को हतोत्साहित करने वाला है.”
विनोद व्यास इस पूरे मामले को लेकर अदालत जाने की सोच रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा में सूचना के अधिकार के लिए ली जाने वाली भारी-भरकम रक़म पर रोक लगेगी.
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