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ऐसे आयी चीनी से मीठी सैकरीन

1878 से पूर्व चीनी को ही सबसे महत्वपूर्ण व मीठा पदार्थ माना जाता था. अमेरिकी रसायनवेत्ता ईरा रेमसेन और उनके शिष्य फालवर्ग ने भी किसी ऐसे पदार्थ के बारे में नहीं सोचा था, जो चीनी का विकल्प हो सकता हो. यह संयोग ही है कि 1878 में उनके द्वारा एक ऐसे यौगिक रसायन का आविष्कार […]

1878 से पूर्व चीनी को ही सबसे महत्वपूर्ण व मीठा पदार्थ माना जाता था. अमेरिकी रसायनवेत्ता ईरा रेमसेन और उनके शिष्य फालवर्ग ने भी किसी ऐसे पदार्थ के बारे में नहीं सोचा था, जो चीनी का विकल्प हो सकता हो. यह संयोग ही है कि 1878 में उनके द्वारा एक ऐसे यौगिक रसायन का आविष्कार हो गया, जो चीनी से 500 गुना अधिक मीठा होता है. इसे ही सैकरीन कहते हैं.

दरअसल, दोनों वैज्ञानिक जॉन्स हॉप्किंस यूनिवर्सिटी के एक प्रयोगशाला में ऑर्थोटोल्यूडन सल्फोनिक अम्ल से ऑर्थोसल्फोबेंजोइक अम्ल बनाना चाहते थे. लगातार प्रयोग करने पर भी वे सफल नहीं हो पा रहे थे. एक दिन प्रयोग करने के बाद वे दोनों चाय पी रहे थे, तो उन्होंने महसूस किया कि चाय कुछ अधिक मीठी है.

साथ ही मालूम हुआ कि उनकी उंगलियां भी बड़ी मीठी हैं, तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ. रेमसेन ने जब इसकी खोज शुरू की, तो मालूम हुआ कि इस मिठास का कारण ऑर्थोसल्फोबेंजोइमाइड नामक यौगिक का बनना है. इस तरह सैकरीन अस्तित्व में आया, जिसे चीनी के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है. हालांकि सैकरीन के पेटेंट को लेकर दोनों वैज्ञानिकों में मतभेद भी हो गया. इसका लाभ सिर्फ फालबर्ग को ही मिला.

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