संसदीय गतिरोध को तोड़ने के लिए सोमवार को हो रही कोशिशें सफल नहीं हुईं तो ‘मॉनसून सत्र’ के शेष दिन भी निःशेष मानिए.
संसदीय सत्र का इस तरह फना हो जाना किसके फायदे में जाएगा? फिलहाल कांग्रेस ने बीजेपी के किले में दरार लगा दी है. लेकिन बीजेपी को जवाब के लिए उकसाया भी है.
किसका फायदा?
कांग्रेस और भाजपा दोनों ने इसका जोड़-घटाना जरूर लगाया है. देखना यह भी होगा कि बाकी दल क्या रुख अपनाते हैं. वामपंथी दल इस गतिरोध में कांग्रेस का साथ दे रहे हैं, लेकिन बाकी दलों में खास उत्साह नज़र नहीं आता.
सवाल है कि संसद का नहीं चलना नकारात्मक है या सकारात्मक?
बीजेपी ने इसे दुधारी तलवार की तरह इस्तेमाल किया है. यूपीए-दौर में उसने इसका लाभ लिया था और अब वह कांग्रेस को ‘विघ्न संतोषी’ साबित करना चाहती है, उन्हीं तर्कों के साथ जो तब कांग्रेस के थे.
कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा है, "हम महत्वपूर्ण विधेयकों को पास करने के पक्ष में हैं, लेकिन सर्वदलीय बैठक का एजेंडा होना चाहिए कि सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी."
सरकार चाहती है कि इस सत्र में कम से कम जीएसटी से जुड़ा संविधान संशोधन पास हो जाए, लेकिन इसकी उम्मीद नहीं लगती.
आक्रामक रणनीति
कांग्रेस को लगता है कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक बने रहने के लिए उसे संसद में आक्रामक रुख रखना होगा. लेकिन देखना होगा कि क्या वह सड़क पर भी कुछ करेगी या नहीं. और यह भी कि उसका सामर्थ्य क्या है.
यूपीए के दौर में बीजेपी के आक्रामक रुख के बरक्स कांग्रेस बचाव की मुद्रा में थी. इससे वह कमजोर भी पड़ी. राहुल गांधी ने दागी राजनेताओं से जुड़े अध्यादेश को फाड़ा. अश्विनी कुमार, पवन बंसल और जयंती नटराजन को हटाया गया.
इसका उसे फायदा नहीं मिला, उल्टे चुनाव के ठीक पहले वह आत्मग्लानि से पीड़ित पार्टी नजर आने लगी थी. फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि बीजेपी अपनी विदेश मंत्री को हटाएगी. कांग्रेस को इस आधार पर ही भावी रणनीति बनानी होगी.
बीजेपी बजाय ‘रक्षात्मक’ होने के ‘आक्रामक’ हो रही है. कांग्रेस की गतिरोध की रणनीति के जवाब में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पर ‘हिन्दू आतंकवाद’ का जुमला गढ़ने की तोहमत लगाकर अचानक नया मोर्चा खोल दिया है.
गुरदासपुर और याकूब मेमन जैसे मसलों पर बीजेपी ने ‘भावनाओं का ध्रुवीकरण’ कर दिया है, जो उसका ब्रह्मास्त्र है.
रणनीति क्या है?
गतिरोध लंबा चला तो क्या होगा? पार्टी का युवा नेतृत्व चाहता है कि देश की निगाहों में रहने के लिए अपनी छवि उग्र बनानी होगी. लेकिन उसका प्लान बी क्या है?
सुषमा स्वराज ने इस्तीफा नहीं दिया तो पार्टी क्या करेगी? क्या इससे अगले सत्र में भी गतिरोध चलेगा?
क्या कांग्रेस सोमवार की बैठक में शामिल होगी? शामिल नहीं होगी तो उसके अलग-थलग पड़ने का अंदेशा भी है. शामिल हुई और सरकारी आश्वासन फिर भी नहीं मिला तो क्या होगा?
आनन्द शर्मा कह चुके हैं, ‘महज फोटो खिंचवाने और चाय-सैंडविच में हमारी दिलचस्पी नहीं है.’ कांग्रेस को फिलहाल साथियों की जरूरत है. देखना होगा कि विपक्ष के दूसरे दल उसका कितना साथ देते हैं.
यह सत्र 13 अगस्त तक के लिए है. अगले कुछ रोज और गतिरोध चला तो फिर उम्मीद नहीं बचेगी. इससे बेशक मीडिया में कांग्रेस की उपस्थिति दर्ज होगी. पर संसदीय काम को धक्का पहुंचाने का आरोप भी लगेगा, खासतौर से ऐसे मौके पर जब अर्थव्यवस्था गति पकड़ रही है.
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