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ट्रैफिफिंग के क्षेत्र की साहसी योद्धा

रांची: रांची में पली-बढ़ी सीमा बचपन से यहां की बेटियों की दयनीय स्थिति देख कर कुछ करना चाहती थीं. वह समाजशास्त्र की छात्र थीं, इसलिए समाज में बेटियों के प्रति हो रहे अन्याय व अत्याचार ने हमेशा उन्हें कुछ करने के लिए प्रेरित किया. तीन बेटियों की मां सीमा आज ट्रैफिकिंग की शिकार महिलाओं-युवतियों की […]

रांची: रांची में पली-बढ़ी सीमा बचपन से यहां की बेटियों की दयनीय स्थिति देख कर कुछ करना चाहती थीं. वह समाजशास्त्र की छात्र थीं, इसलिए समाज में बेटियों के प्रति हो रहे अन्याय व अत्याचार ने हमेशा उन्हें कुछ करने के लिए प्रेरित किया. तीन बेटियों की मां सीमा आज ट्रैफिकिंग की शिकार महिलाओं-युवतियों की मां हैं.

सीमा पहले स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ कर महिला स्वास्थ्य के लिए काम कर रही थीं. काम के दौरान उन्होंने पाया कि ट्रैफिकिंग की शिकार छोटी-छोटी बच्चियां एड्स जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो रही हैं. तब सीमा ने ऐसी बेटियों के लिए काम करने का सोचा.

उन्होंने 2012 में ट्रैफिकिंग पर काम कर रही संस्था भारतीय किसान संघ से जुड़ी. बिजुपाड़ा के किशोरी निकेतन जहां अल्प अवधि के लिए ट्रैफिकिंग की शिकार बच्चियों को रखा जाता है, वहां की इंचार्ज का पद संभाला. सीमा ने इन बच्चियों की काउंसिल कर उनके गांव, घर तक पहुंचाने का काम शुरू किया. सीमा इनकी परवरिश अपने बच्चों की तरह करती हैं. यही वजह है कि सभी इन्हें मां कह कर पुकारती हैं. सीमा ने बताया कि ऐसी बच्चियों को उनके घर तक पहुंचाना बड़ी चुनौती है, क्योंकि पीड़िता जल्दी मुंह नहीं खोलती.

लोक-लाज से ये अक्सर चुप और रोती रहती हैं. कई बार ट्रैफिकिंग की शिकार बच्चियों को उनके घर तक पहुंचाया भी गया, पर उनके घरवाले उन्हें स्वीकार्य नहीं करते. वहीं कई अभिभावक ऐसे भी मिले, जिन्होंने खुशी-खुशी आभार व्यक्त करते हुए गले लगा लिया. मां-बेटी का बिछुड़न या जुदाई और उसके बाद मिलन का अवसर, सचमुच अद्भुत होता है.

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