Advertisement
मन की बात मन में
– हरिवंश – जापान में आये सुनामी और भूकंप में प्रो शिब्बा का घर काफी क्षतिग्रस्त हुआ. उनकी 100 वर्ष की मां अस्पताल में है. पर, प्रो शिब्बा जापान से घर की कामचलाऊ व्यवस्था कर कोलकाता आइआइएम में पढ़ाने लौट आये हैं. उनसे पूछा गया कि ऐसी स्थिति में आप कैसे चले आये? उनका जवाब […]
– हरिवंश –
जापान में आये सुनामी और भूकंप में प्रो शिब्बा का घर काफी क्षतिग्रस्त हुआ. उनकी 100 वर्ष की मां अस्पताल में है. पर, प्रो शिब्बा जापान से घर की कामचलाऊ व्यवस्था कर कोलकाता आइआइएम में पढ़ाने लौट आये हैं. उनसे पूछा गया कि ऐसी स्थिति में आप कैसे चले आये? उनका जवाब था. मैंने यह प्रोजेक्ट-पाठयक्रम शुरू कराया है. यहां के छात्र, मेरे बच्चे हैं. जापानियों का मानना है कि हम जो वादा करते हैं, उसे पूरा करते हैं. जब तक मैं जिंदा हूं, मैं अपना वचन पालन करूंगा.
एक मित्र ने ई-मेल से जापान से सीखने का संदेश भेजा है. दस बातें हैं. पहली, ‘द काम'(धैर्य). लोगों ने एक भी तस्वीर चीखते, छाती पीटते, रोते-चिल्लाते नहीं देखी. इस बिंदु के साथ एक और पंक्ति लिखी है.
अंगरेजी में ही. ‘सारो इटसेल्फ हैज बिन एलिवेटेड’. इसका अनुवाद नहीं हो सकता. भाव समझा जा सकता है कि इस घोर दुख-विपत्ति में इस जापानी आचरण ने दुख अभिव्यक्ति को ही एक नयी गरिमा-ऊंचाई दे दी है. यह पढ़ते हुए अज्ञेय की कही बात याद आयी, दुख मांजता है. (2) ‘द डिगनिटी’ (मर्यादा-गरिमा). सामान खरीदने, पानी लेने या राहत पाने के लिए अनुशासित पंक्तिबद्ध कतार में ही रहना. अशोभनीय हरकत या क्रोध का हुंकार नहीं. (3) ‘द एबिलिटी’ (योग्यता, दक्षता). अविश्वसनीय आर्किटेक्टर. समुद्र की उफनती-ऊंची लहरों के बीच बिल्डिंगें साबूत खड़ी रहीं. धवस्त नहीं हुईं. (4) ‘द ग्रेस'(शालीनता, शिष्टता, भद्रता). लोगों ने तात्कालिक जरूरत की चीजें ही खरीदीं, होर्डिंग नहीं की. इससे सबको चीजें उपलब्ध हुईं. (5) ‘द आर्डर’ (व्यवस्था). खुली दुकानों-भंडारों के बावजूद लूटपाट नहीं. न सड़कों पर ओवरटेकिंग.
(6) ‘द सेक्रिफाइस'(बलिदान). आणविक संयंत्रों में समुद्री पानी डालने के लिए 50 लोग डट गये. यह जानते हुए कि मौत के घर हैं. क्या ऐसे लोगों के त्याग की कोई कीमत कभी आंकी जा सकती है? (7) ‘द टेंडरनेस’ (सौम्यता, संवेदनशीलता, सहृदयता, सदाशयता). रेस्त्रां या होटलों ने भाव घटा दिये. एटीएम खुले थे.
बगैर सुरक्षा के. मजबूत लोगों ने कमजोर लोगों का भार संभाला. देखरेख की. (8) ‘द ट्रेनिंग'(प्रशिक्षण). बूढ़े और बच्चे सभी जानते थे कि उन्हें क्या करना है? उन्होंने वही किया. (9) ‘मीडिया’. अद्भुत शालीनता और आत्मनियंत्रण. कोई ऊटपटांग रपट नहीं. धैर्य और शालीनता से रिपोर्टिंग (10) ‘द कांशियंस’ (ईमान, विवेक). जब बड़ी दुकानों (स्टोर) से अचानक बिजली गयी, तो लोगों ने उठाये समान जस के तस रख दिये और चुपचाप बाहर निकल गये.
यह संदेश सेना के अवकाशप्राप्त किसी कर्नल केवल सत्यवान ने तैयार किया है. इसे पढ़ कर हम भारतीय खुद इस आईने में अपनी तसवीर देख सकते हैं. जापान से ही जुड़ी एक और बात. इसका संबंध भारत से भी है. तीन दिनों पहले एक बड़े अंगरेजी समाचारपत्र में यह प्रसंग (या खबर) पढ़ा.
प्रो. सोत्री शिब्बा प्रबंधन के एक खास क्षेत्र टी क्यू एम (टोटल क्वालिटी मैनेजमेंट) के दुनिया के चुने विशेषज्ञों में से हैं. उम्र 78 वर्ष. वह एम आइ टी (मैसेच्सुटस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) में प्रोफेसर रहे हैं. दुनिया के श्रेष्ठ संस्थानों में अग्रणी. फिलहाल कोलकाता स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आइआइएम) में पढ़ाते हैं. विजनरी लीडरशिप इन मैनुफैक्चरिंग प्रोग्राम के प्रोफेसर. 2007 में आइआइटी चेन्नै, आइआइटी कानपुर और आइआइएम कोलकाता के साथ मिलकर उन्होंने यह कोर्स आरंभ कराया. भारत सरकार के मानव संसाधन विभाग और जापान इंटरनेशनल कारपोरेशन एजेंसी ने इस पाठयक्रम को बढ़ावा दिया है. इस तरह प्रो. शिब्बा आइआइएम कोलकाता में पढ़ाते हैं.
जापान में आये सुनामी और भूकंप में प्रो. शिब्बा का घर काफी क्षतिग्रस्त हुआ. उनकी 100 वर्ष की मां अस्पताल में है. पर प्रो शिब्बा जापान से घर की कामचलाऊ व्यवस्था कर कोलकाता आइआइएम में पढ़ाने लौट आये हैं. उनसे पूछा गया कि ऐसी स्थिति में आप कैसे चले आये? उनका जवाब था. मैंने यह प्रोजेक्ट-पाठयक्रम शुरू कराया है. यहां के छात्र, मेरे बच्चे हैं. जापानियों का मानना है कि हम जो वादा करते हैं, उसे पूरा करते हैं. जब तक मैं जिंदा हूं, मैं अपना वचन पालन करूंगा. प्रो.शिब्बा ने यह भी कहा कि भारतीय मैनुफैक्चरिंग उद्योग संकट के दौर में है, इसलिए भी मैं लौटा. अपनी पत्नी और परिवार को जापान छोड़ कर प्रो. शिब्बा कोलकाता लौटे हैं.
चार दिनों पहले लौटे प्रो. शिब्बा जब पहली बार आइआइएम क्लास में गये, तो अपने छात्रों से एक अनुरोध किया, कि उन्हें कक्षा में पढ़ाते हुए भी अपना मोबाइल रखने की इजाजत या अनुमति मिले. मेरी मां बीमार हैं और अस्पताल में हैं. डॉक्टर ने मुझे हमेशा मोबाइल साथ रखने को कहा है.
बताने की जरूरत नहीं, प्रो. शिब्बा कभी मोबाइल या सेलफोन लेकर कक्षा में नहीं जाते. आइआइएम कोलकाता के प्रोफेसर साथी, प्रो. शिब्बा के काम, आत्म अनुशासन एवं व्यवहार से आश्चर्य में हैं.
27 फरवरी से 9 मार्च तक आइआइएम के इस पाठयक्रम के 29 छात्र जापान गये थे. औद्योगिक टूर पर. तब भी प्रो. शिब्बा पूरे समय छात्रों के साथ रहे. भारतीय छात्र और उनके साथ गये कॉर्डिनेटर प्रोफेसर ने जब 11 मार्च को प्रो. शिब्बा के घर फोन किया, तो उनकी पत्नी ने कहा, ईश्वर को बहुत धन्यवाद कि आप भारतीय सकुशल लौट गये. हमारी चिंता न करें.
जिस दिन जापान पर यह कहर टूटा, प्रो. शिब्बा तोक्यो स्टेशन पर थे. उनका घर वहां से 36 किमी दूर था. 24 घंटे वह स्टेशन पर ही अटके रहे. उनके घर से समुद्र 20 किमी की दूरी पर है. पर उनके घर की छत, फर्नीचर और अंदर की सभी चीजें तबाह और ध्वस्त हाल में हैं.
प्रो. शिब्बा ने कहा कि हिरोशिमा-नागासाकी पर जब परमाणु बम गिरे, तो मेरी उम्र 12 वर्ष थी, सब कुछ जल गया. तबाह हो गया. तब भी बिजली नहीं थी और अब भी नहीं है. हमने शून्य से देश को बनाया.
खड़ा किया. पर इस बार थोड़ी अधिक मुसीबत होगी. जापान के जिन युवकों ने मुसीबतें नहीं देखीं या झेली हैं, उन्हें इस दौर से गुजरना होगा.
यह है, जापान के एक प्रोफेसर की भूमिका. इन दिनों, खासतौर से हिंंदी राज्यों में वेतन बढ़ाने के लिए अध्यापकों की मांग, रिटायरमेंट उम्रसीमा बढ़ाने के लिए अध्यापक संघों का दबाव, हम प्राय: पढ़ते-देखते हैं. विश्वविद्यालयों-कॉलेजों में अध्यापकों के कामकाज देखते हैं. मोबाइल फोन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता देखते हैं. कक्षा के प्रति अनुशासन देखते हैं. कैसे गिनाये जायें, अपने हालात? कितना कहा जाये?
जापानी मानस से सीखें, तो जापान के इस आईने में अपनी शक्ल खुद देखना है. सुनना है. जानना है. मन की बात मन में ही रखना है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement