।। ब्रजेश कुमार सिंह ।।
संपादक– गुजरात, एबीपी न्यूज
नरेंद्र मोदी आज मुंबई में, ब्रांड गढ़नेवालों को देंगे मंत्र
भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी सोमवार की शाम मुंबई में रहेंगे. यूं तो वह हाल के महीनों में कई बार मुंबई जा चुके हैं, लेकिन बार मकसद खास है. यह दौरा न तो राजनीतिक है और न ही सामाजिक.
वह मुखातिब हो रहे हैं, विज्ञापन, मार्केटिंग और कॉरपोरेट इंडिया की बड़ी हस्तियों के एक खास कार्यक्र म में. इसका आयोजन किया है इंटरनेशनल एडवरटाइजिंग एसोसिएशन (आइएए) के इंडियन चैप्टर ने. शाम सात से 8.30 बजे के बीच करीब डेढ़ घंटे तक मोदी ‘ब्रांड इंडिया’ के बारे में अपना नजरिया पेश करेंगे, साथ में उन लोगों से चर्चा करेंगे, जो या तो ब्रांड बनाते हैं या फिर बड़े ब्रांडों के मालिक हैं.
विज्ञापन की दुनिया की सबसे प्रमुख संस्था आइएए इस साल अपनी 75वीं सालगिरह यानी प्लेटिनम जुबली मना रही है और इसी सिलसिले में है यह कार्यक्र म. इस संस्था के कार्यक्र मों में आम तौर पर नेताओं को बुलाया नहीं जाता. ऐसे में मोदी को बुलाने का मकसद क्या? आयोजन से जुड़े सूत्रों की मानें, तो मोदी को ‘ब्रांड नमो’ के बारे में चर्चा करने के लिए न्योता दिया गया था. ‘ब्रांड नमो’ यानी नरेंद्र मोदी के नाम का संक्षिप्त रूप और इससे जानेवाला संदेश.
इस ‘ब्रांड नमो’ को बनाने वाले मोदी खुद हैं. ऐसे में विज्ञापन और मार्केटिंग के धुरंधरों की यह ख्वाहिश हो सकती है कि वे जानें कि किस तरह से एक नेता ने अपने को ब्रांड में बदला. लेकिन मोदी ने ‘ब्रांड नमो’ पर बोलने का आग्रह ठुकरा दिया और इसकी जगह ‘ब्रांड इंडिया’ पर बोलना कबूल किया.
मोदी की रु चि ‘ब्रांड इंडिया’ के बारे में चर्चा करने की रही, इसकी दो वजहें हो सकती हैं, पहली– मोदी ‘ब्रांड नमो’ की रणनीति सार्वजनिक करने को राजी नहीं हैं. दूसरी यह कि जिस मौके पर कॉरपोरेट, विज्ञापन और मार्केटिंग की बड़ी हस्तियां रहने वाली हैं, मोदी ‘ब्रांड इंडिया’ के बारे में अपने विचार रख कर पीएम उम्मीदवार के बतौर अपनी कैंपेनिंग भी कर सकते हैं.
वैसे भी वाइब्रेंट गुजरात इनवेस्टर समिट के जरिये ‘ब्रांड गुजरात’ के साथ ‘ब्रांड नमो’ को स्थापित करनेवाले मोदी कॉरपोरेट जगत के लिए नये नहीं हैं. मोदी को पीएम बनाने की सबसे पहले कैंपेनिंग आखिर इसी उद्योग जगत ने की थी, जिसमें सुनील भारती मित्तल से लेकर अनिल अंबानी तक शामिल थे. रतन टाटा और मुकेश अंबानी भी कई बार मोदी की नेतृत्व क्षमता को प्रमाणपत्र दे चुके हैं.
मोदी ने ‘ब्रांड नमो’ पर बोलना कबूल नहीं किया, लेकिन यह जानना दिलचस्प है कि ‘ब्रांड नमो’ के मायने क्या हैं. क्यों देश में एक बड़ा तबका यह मान कर चलता है कि गुजरात विकास का शीर्ष छू चुका है या गुजरात में जो भी खास और बड़ा हुआ है वह मोदी के कारण हुआ है? तमाम आलोचनाओं के बावजूद ऐसे लोगों की तादाद भी बड़ी है, जिन्हें मोदी में विश्वसनीय नेतृत्व नजर आता है.
यही नहीं, 2002 के गुजरात दंगों के कारण राजनीतिक अछूत बने मोदी ने किस तरह से विकास की राजनीति का एजेंडा आगे बढ़ाया और कट्टर हिंदू नेता की जगह विकास पुरु ष की छवि बनायी, यह घटनाक्र म भी दिलचस्प है.
आखिर ‘ब्रांड नमो’ विकसित कैसे हुआ? इसको समझने के लिए मार्केटिंग के कुछ जुमलों का सहारा लेना लाजिमी है. दरअसल कोई भी ब्रांड जब बनता है, तो उसके साथ कुछ वादे जुड़े होते हैं. मसलन ‘रिन’ का मतलब झक्कास सफेदी या ठंडा मतलब कोका कोला. मोदी ने भी सीएम के तौर पर अक्तूबर 2001 में जब अपना पहला कार्यकाल शुरू किया, तो जनता से कुछ वादे किये. शपथ ग्रहण के साथ ही उन्होंने कहा कि वह टेस्ट क्रि केट खेलने नहीं आये हैं, बल्कि50 ओवरों का एकदिनी मैच खेलने उतरे हैं.
इस वादे की वजह सियासी थी. उनसे पहले केशुभाई पटेल की सरकार गुजरात में थी. बीजेपी आलाकमान ने जब केशुभाई को हटाने का फैसला किया, तो उसका तात्कालिक कारण यह था कि 2001 के भूकंप के बाद राहत और पुनर्वास का काम न सिर्फढीला चल रहा था, बल्किइसमें भ्रष्टाचार की भी काफी शिकायतें थीं.
ऐसे में मुख्यमंत्री के तौर पर जब अपनी पहली पारी की शुरु आत मोदी ने की, तो भूकंप पीड़ितों के पुनर्वास को प्राथमिकता के तौर पर लिया. सभी वरिष्ठ नौकरशाहों को एक–एक भूंकप प्रभावित तालुके की जिम्मेदारी दी और फिर रविवार के दिन उनको संबंधित इलाकों में जाकर काम की प्रगति की समीक्षा करने का आदेश दिया. इससे लोगों को मोदी सरकार के इरादों में गंभीरता का एहसास हुआ.
‘ब्रांड नमो’ के लिए एक बड़ा टर्न आया फरवरी 2002 में. 27 फरवरी को गोधरा कांड हुआ और उसके बाद भड़के दंगे. इन दंगों के कारण मोदी की कट्टर हिंदुत्ववादी नेता की छवि बन गयी. इस छवि के बनने में खुद मोदी का अपना हाथ भी रहा.
2002 विधानसभा चुनावों के प्रचार के ठीक पहले गुजरात गौरव रथ पर चढ़े मोदी ने मियां मुशर्रफ को चेतावनी देने के बहाने उग्र हिंदुत्व वाले नेता की छवि बनायी. लेकिन चुनावों में जीत हासिल करने के तुरंत बाद मोदी ने अपनी छवि बदलने की कोशिश शुरू कर दी.
उन्हें यह समझ में आ गया कि सिर्फ कट्टर छवि के साथ भारतीय राजनीति में एक सीमा से आगे नहीं बढ़ा जा सकता. इस बदलाव की कोशिश के तहत मोदी ने 2003 में ‘वाइब्रेंट गुजरात’ नाम से निवेश सम्मेलन शुरू किया. कॉरपोरेट जगत की बड़ी हस्तियों और निवेशकों को इसमें आमंत्रित किया. उद्योग जगत के लिए सकारात्मक रु ख दिखाने के साथ ही मोदी ने अपने को सीएम की जगह गुजरात के सीइओ के बतौर पेश किया. ऐसा सीइओ जो विकास के रास्ते पर राज्य को तेज रफ्तार से ले जाना चाहता है.
हर दो साल के अंतर पर इन सम्मेलनों का आयोजन किया गया. इनकी तैयारियों के तहत देश–विदेश में रोड शो हुए. खुद मोदी कभी चीन गये, तो कभी जापान, तो कभी सिंगापुर. इन जगहों पर मोदी ने उद्योग और व्यापार जगत के बड़े लोगों के साथ मुलाकात की, उन्हें गुजरात आने का आमंत्रण दिया. इसी बीच ममता बनर्जी के विरोध के कारण जब टाटा समूह को नैनो कार प्लांट सिंगूर से हटाने को मजबूर होना पड़ा, तो मोदी ने महज दो हफ्तों के अंदर रतन टाटा को पटा कर अपने यहां बुला लिया और साणंद में फैक्ट्री के लिए जमीन दे दी.
इससे यह संदेश गया कि निर्णय लेने और उसे लागू करने में मोदी या फिर उनकी सरकार का कोई जोर नहीं है. खुद रतन टाटा ने बयान दिया कि अगर आप मोदी के गुजरात में निवेश नहीं कर रहे हैं तो मूर्ख हैं.
एक तरफ उद्योग जगत को रिझाने पर जोर, तो दूसरी तरफ गांवों में 24 घंटे बिजली मुहैया कराने के लिए ज्योतिग्राम योजना की शुरु आत. इससे मोदी की शोहरत गुजरात के बाहर भी फैली. मोदी ने 2003 में कन्या शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विशेष अभियान भी शुरू किया और उसके बाद हर साल इसे चलाते रहे.
इसी बीच जब पार्टी के अंदर से ही मोदी का विरोध बढ़ा, तो उन्होंने इसको अवसर की तरह इस्तेमाल किया. एक और नया जुमला उछाला– ‘न खाता हूं और न खाने देता हूं.’ मतलब यह कि उनकी आलोचना करनेवाले लोग वो हैं, जिन्हें मोदी भ्रष्टाचार करने की इजाजत नहीं देते हैं. अपनी साफ छवि दिखाने के लिए मोदी ने पिछली सरकार के उन मजबूत नौकरशाहों को भी किनारे लगा दिया, जिनकी छवि दागी थी. इससे लोगों के बीच एक और संदेश गया कि मोदी भ्रष्टाचार पर काफी सख्त हैं. यह बात अलग रही कि इस दौरान विपक्ष ने मोदी और उनकी सरकार पर घोटालों के कई आरोप भी लगाये.
इस दौरान मोदी ने अपनी छवि चमकाने के लिए कुछ और प्रयोग किये. राज्य में लंबित अदालती मामलों की संख्या कम करने के लिए रात्रि अदालतों की शुरु आत की. इमरजेंसी में अस्पताल पहुंचाने के लिए डायल 108 सेवा पूरे राज्य में लागू की. ब्रांड नमो को मजबूत करने के लिए ये सभी कदम कारगर साबित हुए, क्योंकि मार्केटिंग की रणनीति के मुताबिक मोदी न सिर्फवादे पूरे करते दिखे, बल्किभरोसे को लंबे समय तक बनाये रखा.
इसके साथ ही मोदी ने अपने को गुजरात के साथ जोड़ दिया. अपनी हर आलोचना को गुजरात की आलोचना के बतौर पेश करना शुरू कर दिया. मसलन 2002 दंगों के बाद आलोचना का शिकार होने के बाद उन्होंने विधानसभा चुनावों को गुजरात गौरव के मुद्दे पर लड़ा.
दंगों के कारण न सिर्फ अपनी बल्किगुजरात की भी देश–विदेश में पैदा हुई नकारात्मक छवि दूर करने के लिए मोदी ने ‘गरबा’ का सहारा लिया. नवरात्र के दौरान होनेवाले लोकनृत्य गरबा को दुनिया के सबसे लंबे नृत्य समारोह के तौर पर मार्केट करना शुरू किया और देशी–विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने की कोशिश की. बाद में गुजरात में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने अमिताभ बच्चन का सहारा लिया.
‘ब्रांड नमो’ को मजबूत करने के लिए सरकारी और गैर–सरकारी, सभी स्तरों पर कोशिश हुई. राज्य की योजनाओं और कार्यक्र मों के विज्ञापन व पोस्टरों में ज्यादातर मौकों पर सिर्फमोदी ही नजर आये. इससे संदेश गया कि जो भी हो रहा है, वह मोदी के कारण है. यहां तक कि जब 2007 के विस चुनाव हुए, तो मजबूत नेतृत्व के तौर पर मोदी को पेश करते हुए इसे लड़ा गया और पार्टी कामयाब रही. 2007 से 2012 के बीच ‘ब्रांड नमो’ में कुछ और पहलू कैसे जुड़े, इसका अंदाजा पिछले विस चुनावों के प्रचार अभियान से लग जाता है.
सबका साथ, सबका विकास– इस नारे को आगे बढ़ाते हुए मोदी ने यह चुनाव लड़ा. यानी, 2011 में सभी संप्रदायों को जोड़ने की कोशिश के तौर पर मोदी ने जो सद्भावना उपवास का सिलसिला शुरू किया था, उसी को आगे बढ़ाया गया चुनाव प्रचार के दौरान. फिर जब नतीजे आये और भरूच जैसे मुसलिम बहुल इलाकों में भी भाजपा ने जीत हासिल की, तो मोदी की स्वीकार्यता मुसलिमों में भी बढ़ने का सबूत तुरंत मोदी समर्थकों ने पेश कर दिया.
जाहिर है, करीब 12 साल में ‘ब्रांड नमो’ जिस तरह से विकसित हुआ है, उसके मुख्य रणनीतिकार खुद मोदी हैं, साथ में हैं परदे के पीछे सैकड़ों और लोग. वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन की कामयाबी के लिए पीआर एजेंसियों की सहायता ली गयी, तो चुनावों के दौरान भी उनका इस्तेमाल हुआ.
इसके तहत मोदी के मुखौटे से लेकर थ्रीडी मोदी तक सामने लाये गये. दुनिया की सबसे प्रमुख पीआर एजेंसी एपको की मदद ली गयी विदेश में मोदी की छवि को सुधारने के लिए. इसके अलावा ‘ब्रांड नमो’ को मजबूत करने में लगे कई चेहरे परदे के पीछे ही रहे, बाहर कभी नहीं आये. उदाहरण के तौर पर 2012 विस चुनावों के पहले ‘नमो गुजरात’ नाम से एक सैटेलाइट चैनल लांच हुआ, लेकिन कौन थे उसकी योजना बनाने में, उसका आम आदमी को कभी पता नहीं चला.
‘ब्रांड नमो’ की मजबूती के लिए संचार माध्यमों का भी खूब इस्तेमाल हुआ. मोदी की तरफ से पिछले एक दशक में ये कोशिशें चलती रहीं, तो दूसरी तरफ सियासी विरोधियों और एनजीओ के मोदी पर हमले जारी रहे.
दंगों से लेकर फरजी मुठभेड़ और लोकायुक्त की नियुक्ति में देरी से लेकर सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार के मुद्दों को लेकर मोदी को घेरने की कोशिश की जाती रही. लेकिन इन आलोचनाओं के बीच अब ‘ब्रांड नमो’ औपचारिक तौर पर राष्ट्रीय पटल पर आ गया है एनडीए के पीएम उम्मीदवार के रूप में. ये ब्रांड कितना विश्वसनीय रहेगा, इसके सबसे बड़े इम्तिहान की घड़ी भी नजदीक आती जा रही है, 2014 लोकसभा चुनावों की उल्टी गिनती शुरू होने के साथ.
ऐसे में ‘ब्रांड नमो’ को लेकर बहस भी और तेज होती जायेगी, समर्थकों और आलोचकों के बीच. और इस बहस के बीच ‘ब्रांड नमो’ को विश्वसनीयता के सबसे बड़े लिटमस टेस्ट में पास कराने के लिए मोदी कुछ और नया, कुछ और अनोखा करने की जुगत में जुटे रहेंगे. ‘ब्रांड नमो’ के नये कैंपेन के लांच होने का इंतजार सबको है, खास तौर पर जनता को, जो इसके हिट या फ्लॉप होने का फैसला करने वाली है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)