कोलकाता: दुर्गा पूजा में अब कुछ ही दिन बचे हैं, ऐसे में कोलकाता के विश्व विख्यात कुम्हारटोली में कारीगर देवी प्रतिमाओं के निर्माण में जुटे हुए हैं. हर घर में मूर्तियां तैयार हो रही हैं. इन सबके बीच कुछ घरों में चूड़ियों की खनखनाहट के बीच माता अवतरित हो रही हैं. हम बात कर रहे हैं महिला मूर्तिकारों की. उनकी नजरों की सजगता और मिट्टी से सने-सधे हाथों की कलाकारी देख कोई भी दातों तले उंगली दबा ले. उनकी बनायी प्रतिमाओं की मांग सिर्फ कोलकाता में ही नहीं, बल्कि देश-विदेशों में भी है.
मीनाक्षी पाल भी उन्हीं में से एक हैं, जिन्होंने मूर्ति कला को अपने रोजगार का साधन बनाया है. वह कहती हैं, ढाई सौ साल के इतिहास में कुम्हार टोली में पुरुषों द्वारा ही मूर्तियां बनायी जाती रही है, लेकिन पिछले कुछ सालों में महिलाओं ने पुरुष वर्चस्व को तोड़ दिया है. मीनाक्षी की ही तरह कई अन्य महिलाओं ने भी यहां मूर्तिकला को अपना जीविका का साधन बनाया है.
आसान नहीं है राह : मीनाक्षी कहती है कि मूर्तिकार बनना आसान नहीं है. कुम्हार टोली अपने मूर्तिकला के लिए विश्व विख्यात हैं. यहां विश्व स्तर के कारीगर मौजूद हैं, लिहाजा यहां काम करने के लिए हाथों की कला में माहिर होना जरूरी है.
गर्व है कि मैं एक मूर्तिकार हूं
स्कॉटिश चर्च कॉलेज से बांग्ला साहित्य से ऑनर्स स्नातक की पढ़ाई पूरी करनेवाली व फर्राटेदार अंग्रेजी बोलनेवाली मीनाक्षी को मूर्तिकार होने पर गर्व है. उसने बताया कि उसे कहीं भी अच्छे कार्यालय में नौकरी मिल सकती थी, लेकिन उस पर तो बस मूर्तिकला का जुनून सवार था. उसके पिता एक हुनरमंद कलाकार थे. उन्होंने गुजरात के अक्षरधाम व दिल्ली के अक्षरधाम के साथ कई प्रसिद्ध मंदिरों के निर्माण में काम किया था.
पिता के काम को आगे बढ़ाया : मीनाक्षी बताती हैं कि दो साल पहले उसके पिता प्रदीप कुमार पाल का निधन हो गया था. इसके बाद उनके नाम और पुश्तैनी व्यवसाय को जीवित रखने के लिए उसने इस पेशे को अपनाया है. वह तीन बहनों में सबसे बड़ी है. उसे बचपन से ही मूर्ति बनाने का शौक था. वह कहती है, जिस मूर्तिकला के कारण हम पूरे विश्व में जाने जाते हैं, उस कला को मैं भला कैसे छोड़ सकती थी! उनकी शादी भी एक कुम्हार से हुई है और अब दोनों पति-पत्नी मिल कर मूर्तियां बनाते हैं.