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कस्टमर की संतुष्टि बिजनेस में बढ़ोतरी

।।दक्षा वैदकर।।लंच बॉक्स’ फिल्म देखने के बाद मुंबई डब्बावालाज के बारे में और जानने की इच्छा हुई. तब इसके सीइओ डॉ पवन अग्रवाल का वीडियो मैंने देखा, जिसमें उन्होंने कंपनी के कामकाज के तरीके और उसके सोच को बताया है. आपको बता दें कि मुंबई में पांच हजार डब्बावालाज काम करते हैं और वे 2,00,000 […]

।।दक्षा वैदकर।।
लं बॉक्स फिल्म देखने के बाद मुंबई डब्बावालाज के बारे में और जानने की इच्छा हुई. तब इसके सीइओ डॉ पवन अग्रवाल का वीडियो मैंने देखा, जिसमें उन्होंने कंपनी के कामकाज के तरीके और उसके सोच को बताया है. आपको बता दें कि मुंबई में पांच हजार डब्बावालाज काम करते हैं और वे 2,00,000 डब्बे रोज (दिन ने दो बार) डिलीवर करते हैं. ये खाना खुद नहीं बनाते.

ये खाना आपके घर से लेकर आपके ऑफिस पहुंचाते हैं और वहां से खाली डब्बा ले कर उसे वापस आपके घर पहुंचाते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि मुंबई में लोगों को नौकरी के लिए सुबह साढ़े पांच बजे निकलना होता है और कोई भी पति या बेटा नहीं चाहेगा कि उसकी पत्नी या मां इतनी सुबह उठ कर टिफिन तैयार करे. दूसरी वजह, मुंबई की लोकल ट्रेनों में भीड़ इतनी ज्यादा होती है कि आप खाली हाथ ठीक से खड़े नहीं हो सकते, हाथ में टिफिन ले कर खड़े होना तो दूर की बात है. डब्बावालाज सुविधा देता है कि आप घर का गरम और स्वादिष्ट खाना खाएं और बेफिक्र हो कर सफर करें. इस सुविधा के लिए वे मात्र 300 से 350 रुपये हर महीने चार्ज करते हैं. अच्छी बात यह है कि अगर आप दो महीने शहर में नहीं हैं, तो वे आपसे 12 महीने के नहीं बल्कि 10 महीने के ही रुपये लेंगे.

डॉ अग्रवाल बताते हैं कि इतने सालों में कभी ऐसा नहीं हुआ कि लंच टाइम शुरू हो गया हो और डब्बा नहीं पहुंचा हो. इस कंपनी में हर डब्बावाला 40 टिफिन को लानेले जाने की जिम्मेवारी उठाता है. 50 प्रतिशत कर्मचारी तो अशिक्षित हैं, लेकिन फिर भी वे 40 घरों के पते और 40 ऑफिस के पते अपने दिमाग में रखते हैं.

आप सोच रहे होंगे कि आज इनकी इतनी तारीफ क्यों? वह इसलिए क्योंकि हम इनसे कई चीजें सीख सकते हैं. पहला, कस्टमर को अपना भगवान समङों. दूसरा, समय के पाबंद रहें. तीसरा, अपने काम के साथ किसी भी हालत में समझौता न करें. चौथा, काम में परफेक्शन हो. पांचवां, काम के प्रति ईमानदार रहें. छठा, काम में गलतियां बिल्कुल नहीं होनी चाहिए. सातवां, कस्टमर की संतुष्टि सबसे पहले आती है. आठवां, जितनी सर्विस दो, उतना ही चार्ज करो.

बात पते की..

आप जो भी काम करें, उससे दिल से जुड़ें. उससे नफरत न करें. कस्टमर के प्रति प्रेम व सम्मान रखें. बदले में वह भी आपको प्रेम व सम्मान देगा.

बिजनेस कभी भी अपने कस्टमर को धोखा दे कर नहीं किया जाना चाहिए. जब आप ईमानदार रहते हैं, तो आप कस्टमर से दिल से जुड़ जाते हैं.

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