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पांच हजार करोड़ के बाबा!

‘कबीरा माया पापिनी, हरि से करे हराम’. माया, यानी पैसा, भौतिक-शारीरिक सुख. कबीर ने कितनी सटीक बात कही थी. लेकिन इस ज्ञान को हमारे आधुनिक युग के बाबा भूल गये दिखते हैं. उनका मानना है कि माया के ढेर पर बैठ कर भी ईश्वर की साधना संभव है. माया के ढेर पर बैठे ऐसे ही […]

‘कबीरा माया पापिनी, हरि से करे हराम’. माया, यानी पैसा, भौतिक-शारीरिक सुख. कबीर ने कितनी सटीक बात कही थी. लेकिन इस ज्ञान को हमारे आधुनिक युग के बाबा भूल गये दिखते हैं. उनका मानना है कि माया के ढेर पर बैठ कर भी ईश्वर की साधना संभव है. माया के ढेर पर बैठे ऐसे ही एक बाबा पर विशेष आवरण कथा..

कहते हैं आस्था की आंखें नहीं होती. वह तर्क को नहीं मानती. सवाल नहीं पूछती. वह समस्याओं का आसान समाधान चाहती है. इस भारतीय मानसिकता ने देश में आस्था का बड़ा बाजार तैयार किया है. आस्था के नाम पर करोड़ों के साम्राज्यों को जन्म दिया है. भारत में बाबाओं की संपत्ति के किस्से पुराने हैं. देश में ऐसे अनेक बाबा या संत हुए हैं, जिनकी संपत्ति का हिसाब-किताब सैकड़ों करोड़ रुपये में जाता है. यह संपत्ति अकसर विवादों को न्योता भी देती रही है. पूछनेवाले यह पूछते रहे हैं कि आखिर धर्म और पैसे का क्या संबंध है? जिस धन को माया कहा गया है, जिसेब्रह्नाऔर आत्मा के बीच की सबसे बड़ी दीवार कहा गया है, उसके ढेर पर बैठे हुए व्यक्ति को क्या वाकई संन्यासी कहा जा सकता है? आखिर 20वीं-21वीं शताब्दी में भारतीय अध्यात्म ने वह कौन सा नुस्खा ईजाद कर लिया, जो धन के ढेर पर बैठे व्यक्ति को भी ईश्वर के पथ से भटकाता नहीं, उसके करीब ले जाता है! उसे अवतार, गॉडमैन, संत, महात्मा बना देता है?

हम इस नुस्खे का फॉमरूला खोजने की कोशिश कर ही रहे थे कि देश के एक हाइ-प्रोफाइल संत पर एक सोलह वर्षीय किशोरी ने उसके साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगाकर जैसे आस्था की पवित्र चादर के भीतर चलने और पलनेवाले गोरखधंधे को हमारे सामने उजागर कर दिया. किशोरी ने जिस व्यक्ति पर आरोप लगाये हैं, वह कोई मामूली व्यक्ति नहीं है. वह स्वयं में ईश्वरीय शक्ति होने का दावा करता है. पूरे देश में उसके कथित तौर पर दो करोड़ भक्त हैं. उसकी संपत्ति हैरान करनेवाली है.

यह कथा है संत आसाराम की, जिनकी ख्याति देशभर में उनके द्वारा पिछले कम से कम तीन दशकों से किये जानेवाले सत्संगों और प्रवचनों के कारण है. वे भारत के मॉडर्न संतों में सिरमौर माने जाते हैं. उनके सत्संगों में हजारों की संख्या में भीड़ जुटा करती है. आस्थावान, धर्मभीरू भारतीय उनके सत्संग से पुण्य का प्रसाद लेकर लौटते रहे हैं. उन्होंने कभी खुद से यह सवाल नहीं पूछा कि आखिर यह बाबा है कौन, कहां से आया है, राम कथा, कृष्ण कथा बांचनेवाले इस संत की अपनी जीवन की कथा क्या है? उसका कारोबार क्या है? देशभर में उसके जो आश्रम हैं, वे कैसे, किसके पैसे से, किसकी जमीन पर खड़े किये गये हैं?

संत आसाराम का विवादों से पुराना नाता रहा है. पिछले चार दशक में आसाराम ने आस्था की आड़ में एक बड़ा आर्थिक साम्राज्य खड़ा किया है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक आसाराम का यह साम्राज्य तकरीबन 5000 करोड़ रुपये का है. आसाराम बापू ट्रस्ट देश और विदेश में 400 से ज्यादा आश्रम चलाता है. केरल, तमिलनाडु और उत्तर-पूर्वी राज्यों को छोड़ कर देश के हर राज्य में आसाराम ट्रस्ट से चलाये जानेवाले आश्रम हैं. करीब 40 आश्रमों में गुरुकुल भी चलता है. वर्ष 2008 में इनमें से दो गुरुकुलों से चार बच्चों की मृत्यु की खबर आयी थी, जिसके बाद आसाराम और उनके सहयोगियों पर काला जादू करने का आरोप भी लगा था. आसाराम ट्रस्ट 1400 योग वेदांतसेवा समिति, 17000 बाल संस्कार केंद्र भी चलाता है.

भूमि कब्जाने के भी लगे आरोप
आसाराम पर गैरकानूनी तरीके से सूरत के जहांगीरपुरा में 34,400 वर्गमीटर का आश्रम खड़ा करने का आरोप है. गुजरात सरकार ने जमीन पर अवैध रूप से कब्जे के लिए हाल ही में उनके आश्रम को 18 करोड़ 27 लाख का नोटिस दिया है.

गुजरात के अहमदाबाद में 10 एकड़ में फैले प्रमुख आश्रम सहित सूरत, नवसारी, बनासकांठा इलाकों में आसाराम के कई आश्रम हैं. ज्यादातर जगहों में उनके आश्रम पर अवैध तरीके से भूमी हथियाने के आरोप भी हैं. वर्ष 2000 में गुजरात सरकार ने आसाराम आश्रम को नवसारी जिले के भैरवी गांव में 10 एकड़ जमीन दी थी. बाद में ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि आश्रम ने और छह एकड़ भूमि पर अतिक्रमण कर लिया है.

गुजरात ही नहीं अन्य प्रदेशों में भी उन पर जमीन पर कब्जा करने के आरोप लगते रहे हैं. अप्रैल 2007 में पटना हाईकोर्ट से रिटायर्ड जज ने भी उन पर अपनी जमीन पर कब्जा करने की शिकायत दर्ज करायी थी. त्न2008 में बिहार स्टेट बोर्ड ऑफ रिलीजियस ट्रस्ट ने आसाराम के ट्रस्ट को अपनी 80 करोड़ रुपये की भूमि कब्जाने पर नोटिस दिया था.

2001 में मध्य प्रदेश के रतलाम में आसाराम की योग वेदांत समिति ने सत्संग के लिए 11 दिन तक मंगल्य मंदिर के परिसर का उपयोग करने की अनुमति ली थी. लेकिन आरोप है कि 12 साल बाद भी समिति ने परिसर खाली नहीं किया है. 100 एकड़ की यह भूमि 700 करोड़ की बतायी जाती है.

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