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वापस आ रहा है मेड इन अमेरिका!

एक जमाना था, जब किसी सामान पर ‘मेड इन अमेरिका’ तीसरी दुनिया में श्रेष्ठता का सर्टिफिकेट माना जाता था. लेकिन, वक्त कुछ इस तरह बदला कि यह लेबल भारत और चीन जैसे बाजारों से तो क्या अमेरिकी बाजारों से भी लापता हो गया. दुनिया के मैन्युफैरिंग हब के रूप में चीन और दूसरे एशियाई देशों […]

एक जमाना था, जब किसी सामान पर ‘मेड इन अमेरिका’ तीसरी दुनिया में श्रेष्ठता का सर्टिफिकेट माना जाता था. लेकिन, वक्त कुछ इस तरह बदला कि यह लेबल भारत और चीन जैसे बाजारों से तो क्या अमेरिकी बाजारों से भी लापता हो गया. दुनिया के मैन्युफैरिंग हब के रूप में चीन और दूसरे एशियाई देशों के उभार के बाद धीरे-धीरे ‘मेड इन अमेरिका’ की जगह ‘मेड इन चाइना’, ‘मेड इन साउथ कोरिया’, ‘मेड इन ताइवान’, ‘मेड इन इंडिया’ जैसे लेबलों ने ले ली. एप्पल के जिस आइफोन पर अमेरिका अपना नायाब शाहकार होने के लिए गर्व कर सकता है, उस पर भी ‘मेड इन चाइना’ का लेबल अमेरिकियों के लिए पहचान के संकट जैसा ही था.

‘इतिहास खुद को दोहराता है’. अमेरिका से पिछले कुछ महीनों से आ रही खबर इस बहुप्रयुक्त जुमले की तस्दीक करती दिख रही है. अमेरिका की प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन की अप्रैल, 2013 की कवर स्टोरी ने ‘मेड इन अमेरिका’ की वापसी की दिलचस्प कहानी बयान की थी. टाइम मैगजीन की मानें, तो ‘मेड इन अमेरिका’ के लेबल की वापसी को सिलिकॉन वैली के उदय के बाद आयी सबसे अच्छी आर्थिक खबर कहा जा सकता है. और ऐसा सिर्फ टाइम मैगजीन को ही नहीं लगता.

इसकी आहट एक अरसे से सुनी जा रही है. फरवरी में बीबीसी की एक रिपोर्ट में भी ‘मेड इन अमेरिका’ की वापसी के संकेतों को दर्ज किया गया था. बीबीसी के नॉर्थ अमेरिका एडिटर मार्क मार्डेल ने तब अमेरिका के नये मैन्युफैरिंग बूम पर स्टोरी की थी, जिसमें कहा गया था कि अमेरिका आउटसोर्सिग के अपने शगल से बाहर निकल रहा है और अब ‘इनसोर्सिग’ वहां का नया मंत्र है. मार्डेल के मुताबिक यह वास्तव में विश्व व्यवस्था का नया पुर्नसतुलन है, क्योंकि एशिया अमीर हो रहा है. ‘मेड इन अमेरिका’ की वापसी को अमेरिका में अब एक मुहिम का रूप देने की कोशिश की जा रही है. इस हफ्ते अमेरिका की रिटेल कंपनी वालमार्ट अमेरिकी मैन्युफैरिंग को बढ़ावा देने के लिए दो दिवसीय बैठक आयोजित करनेवाली है.

पिछले दो दशक में जब चीन ने अपने दरवाजे दुनियाभर के उत्पादकों के लिए खोल दिये, सस्ते चीनी श्रम ने, पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित किया. दुनिया की शायद ही कोई ऐसी बड़ी कंपनी हो, जिसने चीन को अपना मैन्युफैरिंग गढ़ न बनाया हो. वजह साफ थी. चीन और दूसरे एशियाई देशों में इतनी बड़ी तादाद में और सस्ते मजदूर मौजूद थे कि अमेरिका और यूरोप की बड़ी कंपनियां अपनी फैक्टरी चीन में री-लोकेट करने और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लोभ से बच नहीं पायीं. वजह यह थी कि हिसाब करने पर पाया गया कि अगर कंपनी को एक-एक पार्ट-पुर्जा चीन भेजना पड़े और वहां से तैयार सामान वापस अमेरिका लाना पड़े, तो भी मुनाफा ही मुनाफा था. जल्दी ही पार्ट-पुजर्ाे का उत्पादन भी चीन में होने लगा और आखिरकार पूरी सप्लाई चेन ही चीन में स्थापित कर दी गयी. लेकिन, पिछले दशक के मध्य से चीन में श्रम लागत सालाना 20 से 30 प्रतिशत की दर से बढ़ने लगी. ईंधन की कीमत में भी बढ़ोतरी हुई, जिसने जहाज पर लाद कर सामान को दुनिया भर में पहुंचाना महंगा बना दिया. अमेरिकी मंदी के बाद अमेरिका में श्रम और उत्पादन लागत एशियाई देशों से प्रतिस्पर्धा करने लगी. यह ‘मेड इन अमेरिका’ की वापसी का अहम कारण बना.

टाइम मैगजीन के मुताबिक अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी से बाहर आ रही है और इसके मैन्युफैरिंग वृद्धि दर ने दूसरे विकसित देशों को पछाड़ दिया है. पिछले तीन वर्षो में अमेरिका में करीब 500,000 से ज्यादा नौकरियों का सृजन हुआ है और यह एक दशक से ज्यादा के समय में पहला मौका है, जब फैक्टरियों में काम करनेवाले लोगों की संख्या घटने की बजाय बढ़ी है. परेडडॉट कॉम पर हाल ही में प्रकाशित एक स्टोरी में उन क्षेत्रों को गिनाया गया है, जिनमें अमेरिका तेजी से अपनी खोयी हुई पहचान को हासिल करने की दिशा में बढ़ रहा है. टाइम पत्रिका के मुताबिक पिट्सबर्ग में एक्स वन के थ्री डी प्रिटिंग प्लांट से लेकर लुसियाना और टेक्सास में डॉ केमिकल द्वारा एथिलीन और प्रोपिलीन उत्पादन प्लांट के विस्तार तक, अमेरिकी कामगार ऐसे उत्पादों के निर्माण में व्यस्त हैं, जिनकी मांग दुनियाभर के ग्राहक करते हैं और इस तरह से वे उस कहानी को झूठा साबित कर रहे हैं, जिसमें यह लिखा गया था कि उत्पादन के मोर्चे पर अमेरिका का पतन निश्चित है.

पिछले कई महीनों में ‘अमेरिका के निश्चित पराभव’ की कहानी लगातार अपनी पटकथा से भटकने का एहसास करा रही है. चीन में शहर जैसे आकार की अपनी फैक्टरियों के लिए मशहूर एप्पल अपने एक डेस्कटॉप कंप्यूटर की एसेंबलिंग यूएस वालमार्ट में कर रही है. एयरबस जेट ब्लू के जेटों का निर्माण अल्बामा में करनेवाली है. इसी बीच एशियाई प्रतिद्वंद्वियों के हाथों पिटने के कारण 70,000 नौकरियां गंवानेवाली नॉर्थ कैरोलिना की फर्नीचर इंडस्ट्री एक नये प्लांट के निर्माण में कम से कम 8 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश कर रही है.

दस वर्ष पहले अमेरिका में शायद ही कोई यह कल्पना कर सकता था कि अमेरिका में फिर कभी मैन्युफैरिंग क्षेत्र ऐसी करवट लेगा. टाइम पत्रिका के मुताबिक यह कोई संयोग नहीं है. इसके पीछे वैश्विक अर्थव्यवस्था के मानचित्र में नये सिरे से आ रहा बदलाव है. अमेरिका में ‘शेल ऊर्जा बूम’ के कारण ऊर्जा लागत कम हुई है. जबकि अमेरिका के बाहर हालात ठीक उलटे हैं. तेल की वैश्विक कीमत में वृद्धि का मतलब है कि वायुयान और समुद्री जहाजों से परिवहन की लागत बढ़ी है.

इसने चीन से हजारों मील दूर सामान भेजने की कीमत को बढ़ा दिया है. इतना ही नहीं टाइम पत्रिका के मुताबिक आज चीन और भारत में कामगारों का वेतन बढ़ गया है, जबकि अमेरिकी कंपनियों ने पिछले दशक में मजदूर यूनियनों से काफी रियायत हासिल की है. इसका असर यह हुआ है कि बाहर से आउट सोर्सिग अब उतना आकर्षक नहीं रहा. कुल मिलाकर यह अमेरिकी इतिहास का नया मोड़ है, और आश्चर्य नहीं कि अगर इससे हम दुनिया का इतिहास भी नये सिरे से लिखा जाता महसूस करें.

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