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झारखंड से निकले हैं कई विश्वस्तरीय मजदूर नेता

झारखंड में शुरू से ही मजदूरों की अलग अहमियत रही है. यही वजह है कि यहां के मजदूर आंदोलन से निकले मजदूर नेताओं ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनायी. विश्व के सबसे बड़े मजदूर संगठन इंडियन लेबर ऑर्गेनाइजेशन (आइएलओ) में इन नेताओं ने भागीदारी कर शहर के मजदूरों को उनका हक दिलाया. वहीं जमशेदपुर […]

झारखंड में शुरू से ही मजदूरों की अलग अहमियत रही है. यही वजह है कि यहां के मजदूर आंदोलन से निकले मजदूर नेताओं ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनायी. विश्व के सबसे बड़े मजदूर संगठन इंडियन लेबर ऑर्गेनाइजेशन (आइएलओ) में इन नेताओं ने भागीदारी कर शहर के मजदूरों को उनका हक दिलाया. वहीं जमशेदपुर में यह संगठन कई बड़े मजदूर नेताओं के साथ पला-बढ़ा. मजदूर दिवस के मौके पर ऐसे ही शिखर पुरुष के बारे में है यह विशेष पेशकश :
श्रमिकों के चहेते थे गोपेश्वर
जमशेदपुर : टेल्को वर्कर्स यूनियन के महामंत्री रहे गोपेश्वर लाल दास का जीवन संघर्ष भरा रहा. एक किसान परिवार में जन्मे, घर के सबसे बड़े बेटे गोपेश्वर ने मजदूर आंदोलन से अपनी पहचान बनायी.
उन्होंने पूरे देश की यूनियन के लिए आदर्श प्रस्तुत किया. वे सहरसा के रामपुर गांव से जमशेदपुर आये थे. यहां मजदूरी की और मजदूर हित में आंदोलन को गति दी. मजदूर नेता से मिली पहचान के कारण वे 1984 में यहां के सांसद बने. सहरसा जिले के रामपुर गांव में 21 दिसंबर 1921 को एक मध्यवर्गीय किसान परिवार में जन्मे श्री गोपेश्वर भागलपुर स्थित टीएनवी कॉलेज के दिनों से ही न्याय की लड़ाई शुरू की. स्नातक के बाद भी श्री गोपेश्वर शिक्षा और पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रहे.
उन्होंने 1942 में भागलपुर में आदर्श विद्यालय की स्थापना की. उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन किया. जमशेदपुर में स्नातकोत्तर डिप्लोमा कराने वाली संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर स्टडीज के चेयरमैन भी रहे. विख्यात मजदूर नेता प्रोफेसर अब्दुल बारी के आदेश पर गोपेश्वर जमशेदपुर आकर 1949 में श्रमिक आंदोलन से जुड़े.
कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय अवार्ड मिले
1954 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) की आयरन एंड स्टील कमेटी की जीनेवा में हुई बैठक में भारत की ओर से वर्कर्स डेलीगेट में शामिल हुए. आइएलओ कांफ्रेंस के भारतीय प्रतिनिधिमंडल में चार बार उपनेता के तौर पर शामिल हुए. वे इंटरनेशनल मेटल वर्कर्स फेडरेशन की केंद्रीय समिति के सदस्य और इंडियन नेशनल मेटल वर्कर्स फेडरेशन के महासचिव पद पर रहे.
वे विश्व की सबसे बड़ी श्रमिक संस्थान इंटरनेश्नल कांफ्रेडरेशन ऑफ फ्री ट्रेड यूनियंस के उपाध्यक्ष रहे. इस संस्था में 138 देशों के 194 प्रतिनिधि शामिल हैं. उनके बेहतर कार्यो के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई अवार्ड मिले.
गोपेश्वर का सफर
– 1949 से टेल्को वर्कर्स यूनियन के महामंत्री रहे.
– बिहार इंटक की कार्यसमिति के सदस्य भी रहे.
– 1951 से 1953 तक मऊभंडार मजदूर यूनियन के उपाध्यक्ष रहे.
– 1957 में बंगाल स्थित दुर्गापुर के लगभग सभी कारखानों के श्रमिक यूनियन को संभाला
– दुर्गापुर स्टील वर्कर्स यूनियन के सभापति रहे.
– कई बार पश्चिम बंगाल इंटक के उपाध्यक्ष चुने गये.
– पश्चिम बंगाल कांग्रेस समिति की कार्यसमिति के सदस्य रहे.
– 1983 में अतुल्य घोष के निधन के बाद हिंदुस्तान केबल वर्कर्स यूनियन से जुड़े
– 1961 में चितरंजन लोकोमोटिव वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष और अध्यक्ष रहे
– 1957 में गुवा माइंस वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष और 1980 में अध्यक्ष चुने गये.
– बिहार और बंगाल के कई मजदूर आंदोलन से जुड़े रहे
– 1969 में जमशेदपुर के इंजीनियरिंग उद्योग की हड़ताल के बाद टेल्को वर्कर्स यूनियन के महासचिव फिर बने
श्रमिक हित के लिए स्व वीजी गोपाल ने छोड़ी थी नौकरी
20 दिसंबर 1917 को जमशेदपुर में वीजी गोपाल का जन्म हुआ. उनके पिता गणपति अय्यर टाटा स्टील के कर्मचारी थे. केएमपीएम स्कूल से पढ़ाई पूरी कर 1936 में टाटा स्टील में अनुसचिवीय वर्ग के कर्मचारी के रूप में सेवा शुरू की.
स्वर्गीय प्रोफेसर अब्दुल बारी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर मजदूर सेवा की ओर आकर्षित हुए. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गोपाल बाबू की महत्वपूर्ण भूमिका रही. माइकल जॉन के नेतृत्व में जमशेदपुर के मजदूर आंदोलन में कूद पड़े. 18 सितंबर को वे गिरफ्तार कर लिये गये. जेल से रिहाई के बाद वे यूनियन के सहायक सचिव बनाये गये. 1946 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और मजदूर आंदोलन में कूद गये. प्रोफेसर अब्दुल बारी की हत्या के बाद माइकल जॉन यूनियन के अध्यक्ष बने, वहीं उनको महासचिव बनाया गया.
वे आइएलओ के बुलावे पर पहली बार 1949 में भारतीय मजदूरों के प्रतिनिधि बनकर जेनेवा गये. 1948 में वे इंटक की स्थापना में गोपाल बाबू ने अपनी सक्रिय भूमिका अदा की. वे 1957 में बिहार विधानसभा के सदस्य एमएलए बने.
1947 से 1977 के बीच वे लगातार 30 वर्षो तक टाटा वर्कर्स यूनियन के महामंत्री निर्विरोध चुने गये. 3 अगस्त 21977 में माइकल जॉन की मौत के बाद वे टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष बने. इसी साल वे भारतीय राष्ट्रीय खान मजदूर संघ के उपाध्यक्ष चुने गये. वे इंडियन नेशनल मेटल वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष पद पर आजीवन रहे. 1980 में वे भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के उपाध्यक्ष चुने गये.
1980 में संयुक्त राष्ट्र संघ के बुलावे पर न्यूयॉर्क में आयोजित निरस्त्रीकरण सम्मेलन में उन्होंने हिस्सा लिया. वे इंटरनेशनल वर्कर्स फेडरेशन, जेनेवा की केंद्रीय समिति के सदस्य मनोनीत किये गये. 14 अक्तूबर 1993 को टाटा वर्कर्स यूनियन से निकलते हुए उनकी हत्या कर दी गयी.
वामपंथ विचारधारा से प्रभावित थे कॉमरेड केदार दास
केदार दास का जन्म 4 जनवरी 1913 को मधुबनी (बिहार) जिले के गुरमहा गांव में हुआ था. जन्मस्थल से ही उन्होंने स्कूली शिक्षा प्राप्त की. 1939 में वे जमुई से जमशेदपुर पहुंचे. उनके भाई श्याम बिहारी टिनप्लेट कंपनी में क्लर्क थे. श्याम बिहारी के प्रयास से केदार दास की टिनप्लेट कंपनी में क्लर्क के पद पर नौकरी हो गयी. इसके बाद वे क्रांतिकारी बारीन डे के साथ हो गये.
बारीन डे का लगाव बर्मा के क्रांतिकारी आंदोलनकारियों के साथ था. क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण उनकी गिरफ्तारी हुई थी. उनके साथ रह कर केदार दास ने मजदूर आंदोलन की शुरुआत की. वामपंथी विचारधारा से प्रभावित होकर केदार दास आंदोलन में कूद गये. वे टिनप्लेट वर्कर्स यूनियन के महासचिव थे. प्रोफेसर अब्दुल बारी से टिनप्लेट के मजदूरों ने नेतृत्व करने का आग्रह किया, तब उन्होंने कहा कि केदार दास जैसा ईमानदार नेता नहीं है, उनके नेतृत्व में ही उन्हें हक मिलेगा. इसके बाद वे लगातार मजदूर हित में आंदोलनरत रहे.
मजदूरों को हक और अधिकार दिलाने की मांग
मजदूर दिवस पर अवकाश घोषित नहीं होने पर नाराजगी
रांची : झारखंड अभियंत्रण कर्मचारी संघ ने एक मई को मजदूर दिवस पर अवकाश घोषित नहीं करने पर सरकार के प्रति नाराजगी जतायी है. संघ के महामंत्री मुक्तेश्वर लाल ने सभी कर्मचारियों से सामूहिक आवेदन देने तथा ऐच्छिक अवकाश का उपयोग करने का आग्रह किया है.
सरकार की नीति मजदूर विरोधी है. इससे पूर्व एक मई को सार्वजनिक अवकाश की घोषणा होती थी. उधर झारखंड राज्य भूमि सुधार कर्मचारी संघ के महामंत्री भरत कुमार सिन्हा, झारखंड राज्य कर्मचारी महासंघ के प्रवक्ता आदिल जहीर ने भी सरकार की नीति पर नाराजगी जताते हुए एक मई को सार्वजनिक अवकाश की घोषणा करने की मांग की है.
मजदूर संगठन अपने उद्देश्यों से ना भटकें
रांची : झारखंड कोलियरी मजदूर यूनियन के महासचिव सनत मुखर्जी ने कहा है कि मजदूर संगठनों को मजदूर दिवस से संबंधित आंदोलन को याद करने की आवश्यकता है. उनका मानना है कि वर्तमान दौर में मजदूर संगठन जो अपने उद्देश्य से भटक गये हैं, इसे पुनर्जीवित करते हुए इसकी प्रासंगिकता को बरकरार रखने के लिए आगे आयें. पूर्व में मई दिवस एक आंदोलन के रूप में मनाया जाता था. अब यह सिर्फ एक औपचारिकता रह गया है.
श्रमिक नेताओं को निजी स्वार्थ और महत्वाकांक्षा से ऊपर उठ कर मजदूरों के सवालों के लिए आंदोलन करने की आवश्यकता है. मजदूरों के कल्याणार्थ चलायी जा रही योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए नैतिकता के साथ काम करना जरूरी है.
मजदूरों का हो रहा है शोषण : लालदेव
रांची : झारखंड एटक के कोषाध्यक्ष लालदेव सिंह ने कहा कि वर्तमान में मजदूरों की पांच सबसे बड़ी चुनौतियां हैं. पहला है मजदूरों का शोषण. मजदूरों के लिए कार्य करने का घंटा तय हुआ था लेकिन इसका पालन बहुत कम जगहों पर हो रहा है. मजदूरों को पारिश्रमिक भी पूरा नहीं दिया जाता है.
दूसरा है श्रम कानून का सही से पालन नहीं होना. तीसरा है आर्थिक उदारीकरण के कारण मालिकों का मुनाफा बढ़ रहा है और मजदूरों का शोषण हो रहा है. चौथा कारण है निजीकरण और पूंजीनिवेश से रोजगार घट रहे हैं और जो मजदूर कार्य कर रहे हैं उन पर लोड अधिक बढ़ रहा है. पांचवां है नयी तकनीक के आने से मैन पावर कम होता जा रहा है. इससे मजदूर बेरोजगार हो रहे हैं और नये लोगों को नौकरी नहीं मिल रही है.
मजदूर संगठनों को एक होने की जरूरत
रांची : यूनाइटेड कोल वर्कर्स यूनियन (एटक) के महामंत्री लखन लाल महतो का कहना है कि मजदूर संगठनों को वर्तमान में एक होने की जरूरत है. श्रम कानूनों में जिस तरह का परिवर्तन हो रहा है, उसकी अनदेखी करने से मजदूरों का ही अहित होगा. मल्टीनेशनल कंपनियां एक हो रही हैं और एक पक्षीय कानून बना रही हैं. ऐसे में अलग-अलग खेमे में बंटे मजदूर संगठनों को एक मंच पर आना होगा. मजदूरों की एकता छिन्न-भिन्न हो रही है. केंद्र सरकार पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट, बोनस एक्ट, औद्योगिक विवाद नियम, पीएफ एक्ट और अन्य में बदलाव कर रही है. इसका विरोध जरूरी है.
श्रमिकों को गोलबंद होने की जरूरत
रांची : एनसीओइए (सीटू) के महामंत्री आरपी सिंह का मानना है कि कॉरपोरेट कल्चर में मजदूर संगठनों को अपने आंदोलन को और धार बनाने की जरूरत है. कॉरपोरेट कंपनियां आज मजदूर विरोधी कदम उठा रही हैं, इससे श्रमिकों का नुकसान हो रहा है. वैश्वीकरण के दौर में श्रमिक संगठनों को गोलबंद होना जरूरी है.
कोयला कंपनियों के कर्मियों ने जनवरी 2015 में दो दिवसीय हड़ताल से केंद्र सरकार के विनिवेश के फैसले को करारा जवाब दिया था. उनका मानना है कि मजदूरों की आर्थिक मांगों के बजाय सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाना चाहिए.

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