शरीर के अनेक अंगों के प्रत्यारोपण के बारे में आपने सुना या पढ़ा होगा, लेकिन सिर के प्रत्यारोपण की खबर जानकर आपको जरूर अचरज हो सकता है. इटली के एक डॉक्टर ने अगले दो वर्षो में सिर का प्रत्यारोपण अंजाम दिया जाना मुमकिन करार दिया है, जिसके बाद से यह खबर सुर्खियों में है.
क्यों हो रही है यह कवायद, कैसे होगा ऑपरेशन, पूर्व में पशुओं पर किये गये परीक्षणों का क्या रहा नतीजा और क्या हैं इसकी राह में जोखिम समेत इसके अन्य कई पहलुओं को बता रहा है आज का नॉलेज..
दिल्ली : प्राचीन ग्रंथों में आपने यह पढ़ा होगा कि युगों पूर्व हमारी धरती पर एक सजीव के सिर को दूसरे सजीव के धड़ से जोड़ने वाली दुर्लभ समझी जाने वाली चिकित्सा पद्धति मौजूद थी. ऐसे कुछ गिने-चुने उदाहरणों के बारे में आपने पढ़ा भी होगा.
एक ग्रंथ में तो बाकायदा एक देवता को हाथी का सिर प्रत्यारोपित करने का उल्लेख है, जो इस ओर संकेत करता है कि ऐसा किया जाना उस समय मुमकिन रहा होगा. प्राचीन ग्रंथों में उल्लिखित हाथी के सिर वाले देवता या अन्य सजीवों का सिर प्रत्यारोपित किये जाने की घटनाओं को आप भले ही कहानी समझते हों, लेकिन हाल ही में एक सजर्न ने भविष्य में इसे हकीकत में बदलने का दावा किया है.
इटली के सर्जन डॉ सर्गियो कैनवेरो ने ऑपरेशन के जरिये एक व्यक्ति का सिर दूसरे के धड़ से जोड़ने का दावा किया है. अगर उनका यह दावा सही साबित हुआ तो, रूसी कंप्यूटर वैज्ञानिक वलेरी स्पिरिदोनोव दुनिया के ऐसे पहले शख्स बन जायेंगे, जिनका सिर दूसरे व्यक्ति के शरीर पर लगाया जायेगा. उल्लेखनीय है कि स्पिरिदोनोव मांसपेशियों से जुड़ी एक दुर्लभ आनुवांशिक बीमारी से जूझ रहे हैं और इससे निजात पाने के लिए उन्होंने ऑपरेशन की इच्छा जतायी है.
हालांकि, डॉ कैनवेरो के आलोचकों समेत मेडिकल साइंस के अनेक विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल यह केवल फैंटेसी है. आलोचकों ने डॉ कैनवेरो के इस दावे की तुलना एक मशहूर भुतहा फिल्म के किरदार डॉ फ्रैंक न्सटीन से भी की है.
वहीं दूसरी ओर रूस की राजधानी मास्को से करीब 200 किमी दूर व्लादिमिर शहर के निवासी और पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर 30 वर्षीय वैलेरी स्पिरिदोनोव को इटली के सर्जन डॉ सर्गियो कैनवेरो पर भरोसा है और वे इस ऑपरेशन को लेकर आशावान हैं. डॉ कैनवेरो के हवाले से मीडिया रिपोर्टो में बताया गया है कि अगले दो वर्षो में दुनिया के पहले मानव सिर का प्रतिरोपण संभव हो सकेगा.
क्यों हो रही कवायद
दरअसल, स्पिरिदोनोव जन्म से ही मांसपेशियों से जुड़ी दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी ‘वर्डनिग-हॉफमैन’ से जूझ रहे हैं. स्पिरिदोनोव के हवाले से ‘डेली मेल डॉट कॉ डॉट यूके’ की रिपोर्ट में बताया गया है कि यह उनका आखिरी फैसला है और वे अपने फैसले को नहीं बदलेंगे. हालांकि, उन्होंने यह जरूर माना है कि वे डरे हुए हैं, लेकिन यह भी कहा है कि उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं है.
‘डेली मेल’ ने स्पिरिदोनोव के हवाले से लिखा है, ‘यदि मैंने इस मौके पर कोशिश नहीं की तो मेरा भविष्य अच्छा नहीं होगा. हर साल बीतने के साथ मेरी हालत बदतर होती जा रही है. मैं नहीं जानता कि मेरे साथ क्या होने वाला है, लेकिन मेरे लिए बेहद सीमित विकल्प हैं.’
उल्लेखनीय है कि डॉ कैनवेरो और स्पिरिदोनोव दोनों ही आपस में स्काइप के जरिये बात करते हैं और अब तक वे आपस में फेस-टू-फेस नहीं मिले हैं. और न ही डॉक्टर ने उनके मेडिकल रिकॉर्ड्स की पूरी तरह से समीक्षा की है. स्पिरिदोनोव का परिवार इस ऑपरेशन के खतरों को समझ रहा है, लेकिन इसके बावजूद तमाम परिस्थितियों को देखते हुए उन्होंने उनके इस फैसले का समर्थन किया है. वे अपनी इस समस्या के लिए काफी प्रयासरत रहे हैं और इसके लिए वे विज्ञान आधारित पत्रिकाओं का अध्ययन करते रहे हैं. हालांकि, शरीर के अंगों के प्रत्यारोपण के आइडिया पर रूस के विशेषज्ञ पिछले कई वर्षो से अध्ययन कर रहे हैं, लेकिन सिर के वास्तविक प्रत्यारोपण को अब तक अंजाम नहीं दिया जा सका है.
इधर, ‘सीएनएन’ के हवाले से इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इटली के डॉक्टर कैनवेरा का दावा है कि उनके पास ऐसे कई लोगों ने इमेल और पत्र के माध्यम से संपर्क करते हुए कहा है कि वे इस प्रक्रिया को अपनाने के लिए तैयार हैं.
डॉक्टर कैनवेरा की इच्छा है कि पहले मरीज वे लोग हों, जो मांसपेशी से जुड़ी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. स्पिरिदोनोव को एक नया शरीर देने के लिए वे उनका ऑपरेशन करने पर राजी हो गये हैं. इसमें उनका सिर धड़ से अलग कर दूसरे शख्स के शरीर में लगाया जायेगा. इसके लिए एक ब्रेनडेड (मस्तिष्क के लिहाज से मृत हो चुके व्यक्ति) शख्स के शरीर का इस्तेमाल किया जायेगा.
कैसे होगा यह ऑपरेशन
इस ऑपरेशन के लिए दोनों धड़ों को एक बेहद तेज ब्लेड से एकसाथ सफाई के साथ अलग किया जायेगा. इसके बाद रीढ़ की हड्डी को एक ‘खास पदार्थ’ से चिपकाया जायेगा. सिर और शरीर की मांसपेशियों को आपस में सिला जायेगा और चार सप्ताह के लिए मरीज को कोमा में भेज दिया जायेगा. इस दौरान सिर और शरीर को बिल्कुल हिलने नहीं दिया जायेगा. मरीज के अपने चेहरे को महसूस करने और उसकी आवाज पहले की तरह होने पर उसे कोमा से जगाया जायेगा. मरीज का शरीर उसके सिर को अस्वीकार न कर दे, इसके लिए उसे काफी ताकतवर दवाएं दी जायेंगी. इन दवाओं में ज्यादातर वे हो सकती हैं, जिन्हें इम्यून सिस्टम में तालमेल कायम बनाने के लिए एंटी-रिजेक्शन सिस्टम के तौर पर दी जाती हैं.
दुनिया के अत्याधुनिक ऑपरेशन थिएटर में अंजाम दिये जाने वाले इस ऑपरेशन में करीब 5.7 मिलियन डॉलर खर्च होने की संभावना जतायी गयी है. हालांकि इस रिपोर्ट के मुताबिक, न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के लैंगोन मेडिकल सेंटर में मेडिकल एथिक्स के डायरेक्टर आर्थर कैपलन डॉ कैनवेरो को पागल करार दे रहे हैं. उनका मानना है कि प्रत्यारोपित सिर मरीज के नये शरीर को अपना नहीं पायेगा, और इस तरह नये शरीर पर उसका नियंत्रण खत्म हो सकता है और यहां तक कि वह पागल भी हो सकता है.
अमेरिकन एसोसिएशन फॉर न्यूरोलॉजिकल सजर्न्स के प्रेसिडेंट डॉ हंट बत्जर के हवाले से ‘डेली मेल’ की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सीएनएन से बातचीत में उन्होंने कहा है कि वे इस तरह के ऑपरेशन के पक्ष में नहीं हैं. साथ ही वे किसी को भी ऐसा करने की मंजूरी नहीं दिये जाने के पक्ष में हैं.
वैज्ञानिकों ने 45 वर्ष पहले एक बंदर का सिर दूसरे बंदर के धड़ पर लगाया था और हाल ही में चीन में एक चूहे के साथ भी इस तरह के ऑपरेशन को अंजाम दिया गया है. हालांकि, वह बंदर सर्जरी के आठ दिन बाद मर गया था, क्योंकि उसके नये शरीर ने सिर को स्वीकार नहीं किया था. बंदर खुद से सांस भी नहीं ले पा रहा था और उसकी रीढ़ की हड्डी ठीक से नहीं जुड़ सकी थी.
क्या होगी पूरी प्रक्रिया
इस ऑपरेशन को कैसे अंजाम दिया जायेगा, इस संदर्भ में डॉ कैनवेरो ने ‘न्यू साइंटिस्ट’ को एक साक्षात्कार दिया है. साथ ही इसे ‘सजिर्कल न्यूरोलॉजी इंटरनेशनल’ में भी प्रकाशित किया गया है. जानते हैं इससे जुड़े प्रमुख तथ्यों को :
– प्राप्तकर्ता (रिसीपेंट) के सिर व दाता (डोनर) के शरीर को ठंडा किया जाता है ताकि ऑक्सीजन के बिना भी उनकी कोशिकाएं कुछ समय तक जीवित रह सकें.
– गर्दन के आसपास के ऊतकों को विच्छेदित कर दिया जाता है और प्रमुख रक्त वाहिकाओं को छोटे ट्यूब्स के इस्तेमाल से लिंक किया जाता है.
– रिसीपेंट और डोनर के स्पाइनल कोर्ड (रीढ़ की हड्डियां) को नैनोनाइफ (खास प्रकार की सजिर्कल चाकू) से काटा जाता है, जिस पर सिलिकॉन नाइट्राइड की एक पतली लेयर होती है.
– रिसीपेंट के सिर को डोनर के धड़ के साथ जोड़ा जाता है और स्पाइनल कोर्ड के दोनों छोरों को आपस में पालीथिलिन ग्लाइकोल नामक एक खास केमिकल की मदद से लपेटा जाता है.
– नव्र्स को एलाइन किया जाता है यानी दोनों ही को एक लाइन में लाया जाता है और फिर मांशपेशियों और रक्त संचार को व्यवस्थित किया जाता है.
– रिसीपेंट को किसी तरह के मूवमेंट से बचाने के लिए उसे तीन से चार सप्ताह तक कोमा में रखा जाता है.
– नये नव्र्स कनेक्शन को मजबूत प्रदान करने के मकसद से स्पाइनल कोर्ड को नियमित रूप से बिजली के झटके दिये जाते हैं और इसके लिए इलेक्ट्रॉड्स को इंप्लांट किया जाता है.
– इस सजर्री को 150 डॉक्टरों और नर्सो की टीम मिल कर वर्ष 2017 में अंजाम दे सकते हैं, जिसमें करीब 36 घंटों का समय लग सकता है.
पूर्व में पशुओं पर किये गये परीक्षण
सिर प्रत्यारोपण की सजर्री को पूर्व में पशुओं पर प्रयोग किया गया है. इनमें से कुछ इस प्रकार हैं :
– 1954 में रूस के सजर्न व्लादिमीर देमिखोव ने कुत्ते के एक बच्चे का सिर दूसरे कुत्ते के सिर पर प्रत्यारोपित किये जाने का प्रयोग किया था. देमिखोव ने कुछ अन्य तरह के प्रयास भी किये, लेकिन यह कुत्ता महज छह दिनों तक ही जीवित रह सका.
– 1970 में अमेरिकी सजर्न रॉबर्ट व्हाइट ने अपनी टीम के साथ मिल कर एक बंदर के सिर को दूसरे बंदर के धड़ पर प्रत्यारोपित किया था. चूंकि इस प्रयोग के दौरान स्पाइनल कॉर्ड को ठीक से नहीं जोड़ा जा सका था, जिस कारण यह बंदर ठीक से सांस नहीं ले पा रहा था और उसे कृत्रिम मदद भी नहीं मिल पा रही थी. यह बंदर नौ दिनों तक जीवित रहा और उसके सिर ने इम्यून सिस्टम को अस्वीकार कर दिया, जिससे उसकी मौत हो गयी.
– 2014 में चीन में हर्बिन मेडिकल यूनिवर्सिटी के जिओ-पिंग रेन के नेतृत्व में एक टीम ने चूहे के सिर का प्रत्यारोपण किया. हालांकि, सिर प्रत्यारोपण को अंजाम दिये जाने की घटना के संदर्भ में जिओ-पिंग रेन के इस बयान ने लोगों में बेहद दिलचस्पी पैदा की है, जिसमें उन्होंने कहा है कि कैनवेरो के मैथॉड को अगले कुछ महीनों में चूहों या बंदरों पर परीक्षण करेंगे.
(स्नेत : न्यू साइंटिस्ट डॉट कॉम)
क्या है जोखिम
त्न यदि डोनर की बॉडी का इम्यून सिस्टम स्पिरिदोनोव के सिर को स्वीकार नहीं करेगा, तो ऐसी स्थिति में क्या किया जायेगा? इस बात को लेकर बड़ा जोखिम है. अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजिकल एंड ऑर्थोपेडिक सजर्न्स (एएएनओएस) के चेयरमैन का मानना है कि इस समस्या को ‘मैनेज’ किया जा सकता है, क्योंकि इसके लिए दवाएं मौजूद हैं और उनके इस्तेमाल से बड़ी संख्या में ऊतकों को आपस में स्वीकारयोग्य बनाया जा सकता है. उन्होंने उम्मीद जतायी है और कहा है कि इम्यून रिजेक्शन से बचाव के लिए सिस्टम मौजूद है, जिसके माध्यम से इस जोखिम को कम किया जा सकता है.
– न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के लेंगोन मेडिकल सेंटर में मेडिकल एथिक्स के डायरेक्टर डॉ ऑर्थर कैपलेन का कहना है कि ज्यादा मात्र में एंटी-रिजेक्शन दवाएं देने की दशा में मरीज को कैंसर और किडनी की बीमारी हो सकती है. उनका मानना है कि शरीर प्रत्यारोपण के बाद मरीज के नये ऑर्गन्स पूरी तरह से कार्य नहीं कर पायेंगे. उन्हें इस बात की पूरी आशंका है कि यह ऑपरेशन सफल नहीं हो पायेगा, क्योंकि पशुओं पर इसके कई प्रयोग किये गये हैं, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पायी है.
– अमेरिकन एसोसिएशन फॉर न्यूरोलॉजिकल सजर्न्स के प्रेसिडेंट डॉ हंट बत्जर भी इस तरह के ऑपरेशन के पक्ष में नहीं हैं. उनका कहना है कि रीढ़ की हड्डी, शरीर की प्रमुख नसों और धमनियों को आपस में जोड़ना भले ही आसान हो, लेकिन उनकी कार्य करने की क्षमता को बनाये रखना बहुत मुश्किल होगा. इसलिए वे किसी को भी ऐसा करने की मंजूरी नहीं दिये जाने के पक्ष में हैं.
पहचान का मसला और नैतिक सवाल
हालांकि, इस अद्भुत ऑपरेशन की कामयाबी पर भले ही अभी से अनेक सवाल खड़े हो रहे हों और इस बात को लेकर आशंका जतायी जा रही हो कि इसके सफल होने की संभावना बहुत कम है, लेकिन डॉ कैनवेरो ने एक नयी बहस को जरूर जन्म दे दिया है कि इस प्रकार दो अलग-अलग व्यक्तियों के सिर और धड़ को प्रत्यारोपित करने के बाद ‘नये व्यक्ति’ की पहचान क्या होगी?
साथ ही इससे नैतिक सवाल भी पैदा होंगे. डॉ कैनवेरो इन तमाम मसलों को अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजिकल एंड ऑर्थोपेडिक सजर्न्स (एएएनओएस) के वार्षिक सम्मेलन में रख सकते हैं और उन्हें उम्मीद है कि वे अपने इस मिशन में कामयाब हो पायेंगे.